75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में नवरात्र के चौथे दिन फूल रथ की दूसरी परिक्रमा पूरी हुई। दरअसल, एक दिन पहले रथ परिक्रमा को लेकर विवाद हुआ था।
जिसमें रथ खींचने वालों और पटेल संघ का कहना था कि करीब 60 साल पुरानी परंपरा के अनुसार राज परिवार के सदस्य कलमचंद भंजदेव और उनकी पत्नी रथ पर बैठेंगी। फिर ग्रामीण रथ खींचेंगे।
देश में राजशाही व्यवस्था खत्म हो गई है। इसलिए प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी थी। इसी वजह से नवरात्र के तीसरे दिन पहली रथ परिक्रमा को लेकर विवाद हुआ था।
हालांकि, राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव की समझाइश के बाद ग्रामीण मान गए थे। बस्तर दशहरा के 617 साल के इतिहास में पहली बार रथ की परिक्रमा देरी से हुई थी।
देवी दंतेश्वरी के छत्र को किया विराजित
4 चक्कों वाले 2 मंजिला रथ पर देवी दंतेश्वरी के छत्र को विराजित किया गया। जिसके बाद सैकड़ों ग्रामीणों ने सिरहासार भवन से लेकर गोलबाजार चौक से होते हुए फिर से दंतेश्वरी मंदिर तक रथ को खींचा।
गुरुवार (25 सितंबर) को करीब 617 साल से चली आ रही परंपरा निभाई गई। रथ परिक्रमा देखने और देवी से आशीर्वाद लेने के लिए हजारों भक्त जगदलपुर पहुंचे थे।
अब जानिए कैसे हुई परंपरा की शुरुआत
बस्तर के तात्कालिक राजा पुरुषोत्तम देव भगवान जगन्नाथ स्वामी के भक्त थे। प्रभु के दर्शन करने के लिए उन्होंने बस्तर से जगन्नाथ पुरी तक दंडवत यात्रा की थी। कहा जाता है कि उनकी भक्ति से जगन्नाथ स्वामी बेहद खुश हुए थे।
जब राजा पुरुषोत्तम देव जगन्नाथ मंदिर पहुंचे तो मंदिर के प्रमुख पुजारी को स्वप्न में भगवान आए। उन्होंने कहा कि राजा की भक्ति से मैं प्रसन्न हुआ हूं। उपहार स्वरूप उन्हें रथपति की उपाधि दी जाए। एक रथ भी भेंट किया जाए।
इसके बाद अगले दिन पुजारी ने इसकी जानकारी राजा पुरुषोत्तम देव को दी। पुजारी ने पुरी में ही उन्हें रथपति की उपाधि दी और 16 चक्कों का विशाल रथ भी भेंट किया था। जिसे राजा ने स्वीकार कर लिया था।
3 हिस्सों में बांटा था रथ
उस समय 16 चक्कों के 2 मंजिला रथ को बस्तर तक लाने के लिए सड़कें अच्छी नहीं थीं। इसलिए राजा ने रथ को 3 हिस्सों में बांट दिया था। इनमें दो रथ 4-4 चक्के का और एक रथ 8 चक्के का बनाया गया था।
वहीं एक 4 चक्के के रथ को बस्तर गोंचा के लिए दे दिया गया। एक अन्य 4 चक्के के रथ को फूल रथ और 8 चक्के के रथ को विजय रथ नाम दिया गया। ये दोनों रथ बस्तर दशहरा के लिए रखे गए।
दो गांव के ग्रामीण बनाते हैं रथ
बेड़ा-उमड़ और झाड़-उमड़ गांव के ग्रामीणों को रथ निर्माण की जिम्मेदारी दी गई थी। पूरे बस्तर में सिर्फ इन्हीं दो गांव के ग्रामीण मिलकर पीढ़ियों से रथ निर्माण करते आ रहे हैं।
बस्तर के माचकोट और दरभा के जंगल से साल, बीजा की लकड़ी लाई जाती है। इसी से रथ का निर्माण किया जाता है। रथ निर्माण के लिए किसी भी तरह के आधुनिक औजार का इस्तेमाल नहीं होता, बल्कि पारंपरिक औजार से ही परिक्रमा होती है।