भारत में दिवाली की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. धनतेरस से ही त्योहार की शुरुआत हो जाएगी. दुनिया के उन सभी देशों में यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाएगा, जहां भारतीय रहते हैं पर श्रीलंका एक ऐसा देश है, जहां दिवाली का अपना ही अंदाज है. बौद्ध, हिन्दू, ईसाई और मुस्लिम आबादी वाले इस देश में तमिल हिन्दू धूमधाम से दिवाली मनाते हैं. आइए जान लेते हैं कि भारत की पांच दिनों वाली दिवाली वहां किस तरह से मनाई जाती है और भारत से कितना अलग है रीति-रिवाज?
श्रीलंका में दिवाली की धूम उन इलाकों में खासतौर से होती है, जहां तमिल हिन्दू रहते हैं. इसमें जाफना का नाम सबसे ऊपर है. कोलंबो और कुछ अन्य स्थानों पर भी दिवाली धूमधाम से मनाई जाती है. इसे वहां राम की रावण पर विजय नहीं, बल्कि बुराई पर अच्छाई की जीत का ही त्योहार माना जाता है.
हफ्तों पहले घरों की सफाई
दिवाली पर वहां भी राष्ट्रीय अवकाश रहता है, जिसकी तैयारी हफ्तों पहले शुरू हो जाती है. भारत की ही तरह वहां भी लोग पहले से ही घरों की सफाई शुरू कर देते हैं, जिसे पारंपरिक रूप से सुथु कांडू के नाम से जाना जाता है. यह निगेटिविटी को हटाकर पॉजिटिविटी को समाहित करने के लिए किया जाता है. भारत की ही तरह दिवाली नजदीक आने पर जाफना में दुकानें और स्टॉल सज जाते हैं. नए कपड़ों, गहनों और उपहारों की खरीदारी शुरू हो जाती है.
रंगोली और पारंपरिक लैंप से सजावट
दिवाली पर जाफना में आश्चर्यचकित करने की हद तक सजावट की जाती है. लोग अपने रंगों में चावल के आटे, फूलों की पंखुड़ियों और रंगीन पाउडर से रंगोली सजाते हैं. खास कर घरों के मुख्य द्वार पर रंगोली के जरिए मेहमानों का स्वागत किया जाता है. जाफना में भी दिवाली पर दीये और मोमबत्तियां जलाई जाती हैं पर वहां स्थानीय लोग पारंपरिक लैम्प से भी घरों की खिड़कियों, बॉलकनी और परिसर के अन्य हिस्सों में रोशनी करते हैं.
मिठाइयों के बिना अधूरा त्योहार
दिवाली की बात हो और मिठाइयों का जिक्र न हो, ऐसा न भारत में होता है और न ही श्रीलंका में. श्रीलंका में पारंपरिक स्वादिष्ट मिठाइयां तैयार की जाती हैं. जाफरा में दूध की टॉफी, अरिसी थेंगई पयासम और मुरुक्कू जैसी स्वादिष्ट मिठाइयां बनती हैं. लोग दोस्तों और रिश्तेदारों को ये मिठाइयां त्योहार पर भेंट करते हैं.
सांस्कृतिक संगम
जाफना में वैसे तो तमिल हिन्दू दिवाली का त्योहार धूमधाम से मनाते हैं पर वहां रहने वाले दूसरे धर्मों बौद्ध, ईसाई और मुस्लिम भी सांप्रदायिक सद्भाव पेश करते हुए इसका हिस्सा बनते हैं. वहां चारों धर्मों के लोग साथ-साथ रहते हैं और दिवाली के दौरान उनका सद्भाव और चमक कर सामने आता है. अलग-अलग समूहों के लोग साथ आकर एक-दूसरे की परंपराओं का सम्मान करते हुए त्योहार मनाते हैं.
दिवाली पर खास पूजा
जाफना में बहुत से मंदिर हैं, जिन्हों कोविल्स के नाम से जाना जाता है. दिवाली सेलिब्रेशन में इनका अहम स्थान है. इनमें से भगवान मुरुगन का नल्लुर कंडास्वामी कोविल सबसे प्रतिष्ठित है. मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि दिवाली के दिन सुबह लोग तेल से स्नान करते हैं. नए कपड़े पहनते हैं और इन मंदिरों में जाकर लोग विशेष पूजा करते हैं. भारत की ही तरह जाफना में भी पटाखों से पूरा आसमान रोशन हो उठता है. दिवाली की शाम होते ही जाफना के सभी मंदिर और घर अनगिनत लैंप से जगमगाने लगते हैं. लोग एक-दूसरे को उपहार और मिठाइयां भेंट करते हैं.
सामूहिक भोज का आयोजन
जाफना में दिवाली पर सगे-संबंधी इकट्ठा होकर एक साथ सामूहिक रूप से भोज का आनंद लेते हैं. खासतौर से बिरयानी, करी और मिठाइयों को इसमें शामिल किया जाता है. सभी पड़ोसी एक-दूसरे के लिए अपने-अपने दरवाजे खोल देते हैं. साथ में मिठाइयों, स्नैक्स और कहानियों का आदान-प्रदान होता है. सभी तरह के भेदभाव भुलाकर दोस्ती और एकता को सेलिब्रेट किया जाता है. नृत्य और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है.