गोंडा में मधुमक्खी पालन से बढ़ी शहद की मिठास: मदन प्रसाद का सफलता की कहानी

गोंडा :  टिकरी रेंज की वादियों और आबोहवा से डुमरियाडीह(जमुआ) में मधुमक्खी पालन करने वाले मदन प्रसाद के शहद की मिठास बढ़ गई है. साल में तीन बार अक्टूबर, फरवरी व जून में शहद निकालते हैं. 250 डिब्बों में मधुमक्खी का पालन कर रहे हैं. 20 डिब्बों में पालन करके शुरूआत की थी. इसमें 30 किलो शुद्ध शहद मिला था. 500 रुपये किलो बेच दिया था.

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मदन प्रसाद मुजफ्फरपुर विहार प्रांत में खेती किसानी कर जीवकोपार्जन करते थे. खेती किसानी से उठकर कुछ अलग करने का जज्बा लेकर विहार प्रांत छोड़कर उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में डुमरियाडीह क्षेत्र को चुना. विहार के मुजफ्फरपुर में स्ट्राबेरी की खेती करने वाले मदन प्रसाद मधुमक्खी पालन का गौरव भी मिल चुका है. विहार प्रांत के मुजफ्फरपुर से सम्मान भी मिला है. टिकरी जंगल 142 वर्ग किलोमीटर में फैला है.

 

टिकरी जंगल बस्ती जिले की सीमा को छूता है. यहां की जलवायु शहद उत्पादन के लिए अनुकूल है. मदन प्रसाद ने एक वर्ष पूर्व 20 डिब्बों में मधुमक्खी पालन शुरू किया था. इससे करीब 30 किलो शहद तैयार हुआ था. स्थानीय लोगों समेत बस्ती व बलरामपुर के लोगों ने शहद खरीदा. शहद की मिठास लोगों को खूब पसंद आई. अपने ही गांव में शुद्ध शहद पाकर लोगों ने हाथों-हाथ इसे खरीद लिया. इसके बाद मदन प्रसाद ने 250 डिब्बों में मधुमक्खी का पालन शुरू किया है. बताते हैं कि शहद के लिए जिला मुख्यालय समेत बहराइच, श्रावस्ती व बलरामपुर से भी मांग की गई है. अब वह धीरे-धीरे मधमुक्खी पालन के व्यवसाय को बढ़ाने को सोच रहे हैं. साथ ही इसके लिए स्थानीय लोगों को भी प्रेरित कर रहे हैं.

 

 

ऐसे होता हैं मधुमक्खी पालन

बकौल मदन प्रसाद मधुमक्खियों को पालने के लिए खेत में लकड़ी का डिब्बा तैयार करते हैं. इसमें मधुमक्खियों को रखने के बाद ऊपर जूट की बोरी रखी जाती है. इसके ऊपर डिब्बे का ढक्कन रखते हैं. इसके संरक्षण के लिए अनुदान पर खेत में ही सौर ऊर्जा चलित पंप लगाया जाता है.

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