भारत में ‘पॉट बेली’ यानी कटोरेनुमा तोंद को लोग बहुत सीरियस नहीं लेते. पुराने जमाने में बढ़ी तोंद को रईसी और खाते-पीते घर की निशानी मान लिया जाता था. लेकिन आज मेट्रो सिटीज में रह रहे परिवारों के सामने तोंद एक बड़ी समस्या बन चुका है. लैंसेट की नई स्टडी के मुताबिक आज भारत उस मुकाम पर खड़ा है, जहां पेट का मोटापा सिर्फ अच्छा दिखने की चिंता तक सीमित नहीं रह गया है. अब ये तोंद डायबिटीज, हार्ट डिज़ीज और कई गंभीर बीमारियों की घंटी है.
The Lancet की ताजा स्टडी बताती है कि 2021 में भारत में 180 मिलियन लोग मोटापे से जूझ रहे थे और 2050 तक यह संख्या 450 मिलियन तक पहुंच सकती है. इसको आसान भाषा में कहें तो देश की एक-तिहाई आबादी के सामने तोंद बड़ी समस्या बनने वाली है.
कैसे बढ़ रही तोंद की समस्या, देखें आंकड़े
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के अनुसार भारत में 40% महिलाएं और 12% पुरुष abdominal obesity यानी पेट की चर्बी से प्रभावित हैं. वहीं 30 से 49 साल की महिलाओं में तो हर दो में से एक महिला इस स्थिति में है. भारतीय मानकों के अनुसार पुरुषों में 90cm (35 इंच) से ज्यादा और महिलाओं में 80cm (31 इंच) से ज्यादा कमर होना abdominal obesity की पहचान है. खास बात ये है कि ये समस्या शहरी आबादी में ज़्यादा पाई जा रही है.
तोंद क्यों खतरनाक है?
बेली फैट दिखने में चाहे जितना हल्का लगे लेकिन इसका असर शरीर के सबसे संवेदनशील सिस्टम्स पर होता है. जानिए- बढ़ी हुई तोंद का असर कैसे शरीर को बीमार कर रहा है.
1. इंसुलिन रेजिस्टेंस: पेट की चर्बी शरीर की इंसुलिन को पहचानने और इस्तेमाल करने की क्षमता को बिगाड़ती है. इससे टाइप-2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है.
2. हार्ट डिजीज: चर्बी जब लीवर और पैंक्रियाज जैसे अंगों में जमती है तो मेटाबॉलिज्म गड़बड़ाता है और कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर बढ़ता है.
3. कमज़ोर जोड़ और थकान: हमारा भारी शरीर खासतौर पर पेट, घुटनों और पीठ पर दबाव बढ़ाता है. इससे शरीर में तमाम तरह के दर्द रहते हैं.
South Asians के लिए ज्यादा अलार्मिंंग
South Asians यानी हम भारतीय और हमारे दूसरे पड़ोसी देशों के लोग वेस्टर्न लोगों के मुकाबले कम BMI पर भी ज़्यादा फैट रखते हैं. यानी वो दिखने में पतले हो सकते हैं लेकिन अंदर से मोटे. इसे TOFI (Thin Outside, Fat Inside) भी कहा जाता है.
नई गाइडलाइन में हैं मोटापे की दो स्टेज
Indian Obesity Commission ने मोटापे की नई क्लासिफिकेशन दी है. इसमें स्टेज वन में ऐसे लोग आते हैं जिनका हाई BMI लेकिन बेली फैट नहीं है. न कोई बड़ी मेडिकल कंडीशन है. वहीं दूसरी स्टेज में पेट की चर्बी के साथ ही डायबिटीज या दिल की बीमारी जैसे लक्षण नजर आते हैं. ये हाई रिस्क ग्रुप है.
वो 4 आदतें जो पेट बढ़ा रहीं
– प्रोसेस्ड और इंस्टेंट फूड
– दिनभर बैठकर काम करना
– नींद की कमी और तनाव
– फिजिकल एक्टिविटी में गिरावट
क्या है समाधान
डाइट कंट्रोल: तला-भुना, चीनी, मैदा कम करें और फाइबर, फल और सब्ज़ी ज़्यादा लें.
एक्सरसाइज़: भारतीयों को 250–300 मिनट प्रति हफ्ते की एक्सरसाइज़ की ज़रूरत है (वेस्ट में ये 150 मिनट होती है).
नए मेडिकेशन: सेमाग्लूटाइड, टिर्जेपाटाइड जैसे वजन घटाने वाली दवाएं अब मौजूद हैं. डॉक्टर की सलाह से ही इसे ले सकते हैं.
Early detection: समय समय पर कमर की माप ज़रूर लें. अपने वजन को मॉनीटर करने से ज्यादा जरूरी ये है.
‘बड़े पेट’ से फैलती बीमारी, क्या कहते हैं एक्सपर्ट
छत्रपति शाहू महाराज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ के मेडिसिन डिपार्टमेंट के वरिष्ठ प्रोफेसर और डायबिटीज रोग विशेषज्ञ डॉ कौसर उस्मान कहते हैं कि तोंद सिर्फ एक फैट डिपॉजिट नहीं है, ये मेटाबॉलिक डिजीज का पहला लक्षण है. कई लोग नॉर्मल वज़न के बावजूद बीमार हो सकते हैं अगर उनकी कमर का घेरा ज़्यादा है. इसलिए बचपन से ही बच्चों को सही खानपान की आदत डालनी चाहिए. ये सिर्फ लुक्स की बात नहीं है, ये जिंदगी और मौत के बीच की डील है. समय रहते तोंद पर काबू नहीं पाया तो देश को डायबिटीज और हार्ट डिजीज की सुनामी झेलनी पड़ेगी.