भीलवाड़ा: विरासत में मिली आंवला खेती को आधुनिक तरीके से संवारा, मिसाल बनीं महिला किसान भावना जैन

भीलवाड़ा: शांति फार्म और सम्पन्न परिवार से निकली हुई महिला भावना जैन न सिर्फ एक मिसाल कायम कर रही है बल्कि अनेक परिवारों को रोजगार देकर उनका भरण पोषण में मदद गार साबित हो रही है.  इनकी प्रेरणा दायक कहानी की शुरुआत आज से ठीक 8 साल पहले सहाड़ा तहसील क्षेत्र के उल्लाई गांव से शुरू होती है जब उनके ससुर शांति लाल जैन का स्वर्गवास होने पर घर का चौका चूल्हा संभालने के बजाय उन्होंने विरासत में मिले आंवले की खेती को आधुनिक तौर तरीके से आगे बढ़ाने का निश्चय किया.

अब वो नियमित रूप से आंवले की खेती की सार संभाल कर हर वर्ष लाखों रुपए का मुनाफा कमाकर आज की महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी है. भीलवाड़ा जिले की सहाड़ा तहसील के गाँव उल्लाई, में लगभग 30 बीघा भूमि में फैला हुआ है. यहां पर करीब 900 आंवले के पौधे लगे हुए हैं.

इस फार्म की स्थापना स्व. शांतिलाल जैन ने 30 साल पहले की थी और पिछले 8 वर्षों से इसे उनकी पुत्रवधु भावना जैन ने अपने साहस और आधुनिक प्रबंधन से आगे बढ़ाया है.  भावना जैन ने एक रूढ़िवादी समाज में महिला होकर खेती संभालकर मिसाल कायम की है. आज शांति फार्म आँवले की उच्चतम उपज के लिए पूरे इलाके में जाना जाता है.


एक पौधा लगभग 50 वर्ष तक जीवित रहता है और तीन साल बाद फल देना शुरू करता है. प्रति पौधे पर 200 किलो से लेकर 600 किलो तक आँवले की पैदावार होती है शांति फार्म से आँवला भारत के अलग-अलग शहर शहर अमृतसर, हरियाणा, यूपी, जबलपुर, कटनी, बैंगलोर, अहमदाबाद में बेचा जाता है और इसे एक्सपोर्ट भी किया जाता है.

आँवले की खूबियाँ और उपयोग
में भारतीय संस्कृति और आयुर्वेद का एक अनमोल उपहार है. यह विटामिन सी से भरपूर, पाचन और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला फल है. इसका उपयोग कई तरह की वस्तुएँ बनाने में होता है. आंवले से कैंडी और मुरब्बा तेल और आयुर्वेदिक दवाइयां, औषधियां और हर्बल उत्पाद जूस और स्वास्थ्यवर्धक सामग्री बनाकर बाजार में बिकने को आती है.

आँवले की फसल साल में एक बार मिलती है और इसका मौसम नवंबर से फरवरी तक रहता है. परिवार में करोड़ों की संपति है लेकिन भावना जैन ने अपने ससुर की विरासत में मिली आंवले की खेती को चुनते हुए उनके सपने के सफर को निरंतर प्रगति को ओर बढ़ा रही है.
शांति फार्म हाउस भावना जैन की मेहनत और हौसला न केवल आँवले की पैदावार में शीर्ष पर है, बल्कि यह महिला सशक्तिकरण, टिकाऊ कृषि और प्रेरणादायी नेतृत्व का प्रतीक भी है.

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