उदयपुर में ग्रामीणों का बड़ा प्रदर्शन, बोले: हमारी जमीन, हमारी पंचायत चाहिए

उदयपुर :  सोमवार को ग्राम पंचायत कानपुर और मटून के सैकड़ों ग्रामीणों ने जिला कलेक्ट्रेट पर जोरदार प्रदर्शन किया. ग्रामीणों की मुख्य मांग थी कि उनके गांवों को नगर निगम की सीमा में शामिल नहीं किया जाए. प्रदर्शनकारियों ने इस संबंध में मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन जिला कलेक्टर को सौंपा.

Advertisement

ग्रामीणों ने बताया कि मटून गांव आदिवासी बहुल क्षेत्र है, जो चारों ओर से पहाड़ियों और जंगलों से घिरा हुआ है. यहां अधिकांश मकान घाटियों में बसे हुए हैं और ग्रामीण पूरी तरह से कृषि पर निर्भर हैं. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यह क्षेत्र अब तक पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत आता है.

ग्रामीणों के अनुसार, नगर निगम में शामिल होने से उन्हें कई प्रकार के आर्थिक और सामाजिक नुकसान उठाने पड़ेंगे. पंचायत व्यवस्था में जहां उनके सभी काम स्थानीय स्तर पर आसानी से हो जाते हैं, वहीं नगर निगम के अधीन आने पर उन्हें दूर-दराज स्थित नगर निगम मुख्यालय तक जाना पड़ेगा, जिसकी दूरी 16 से 20 किलोमीटर है.

वहीं, कानपुर क्षेत्र के ग्रामीणों ने भी अपनी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि ग्राम पंचायत कानपुर, खेड़ा कानपुर, मटून, खरबड़िया और भोइयों की पंचोली जैसे क्षेत्रों की भौगोलिक और आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि उन्हें नगर निगम में शामिल किया जाए. यहां 80 प्रतिशत लोग खेती और पशुपालन पर निर्भर हैं और क्षेत्र में किसी भी प्रकार की विकसित कॉलोनी नहीं है.

नगर निगम में शामिल होने से ग्रामीणों पर कई तरह की शहरी पाबंदियां लागू हो जाएंगी, जो उनकी आजीविका और जीवनशैली को प्रभावित करेंगी. ग्रामीणों ने सरकार से मांग की है कि उनकी पंचायतों को पूर्ववत ग्रामीण क्षेत्र ही बनाए रखा जाए. 





इसको 300 शब्दों में लिखें




उदयपुर में सोमवार को ग्राम पंचायत कानपुर और मटून के सैकड़ों ग्रामीणों ने जिला कलेक्ट्रेट पर जोरदार प्रदर्शन किया। ग्रामीणों की मुख्य मांग थी कि उनके गांवों को नगर निगम की सीमा में शामिल नहीं किया जाए। प्रदर्शनकारियों ने इस संबंध में मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन जिला कलेक्टर को सौंपा।

ग्रामीणों का कहना है कि मटून गांव एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है, जो चारों ओर से पहाड़ियों और जंगलों से घिरा हुआ है। यहां अधिकांश मकान घाटियों में बसे हुए हैं और ग्रामीण पूरी तरह से कृषि पर निर्भर हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यह क्षेत्र अब तक पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत आता है। ग्रामीणों का कहना है कि नगर निगम में शामिल होने से उन्हें कई प्रकार के आर्थिक और सामाजिक नुकसान उठाने पड़ेंगे। पंचायत व्यवस्था में जहां उनके सभी काम स्थानीय स्तर पर आसानी से हो जाते हैं, वहीं नगर निगम के अधीन आने पर उन्हें दूर-दराज स्थित नगर निगम मुख्यालय तक जाना पड़ेगा, जिसकी दूरी 16 से 20 किलोमीटर है।

कानपुर क्षेत्र के ग्रामीणों ने भी अपनी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि ग्राम पंचायत कानपुर, खेड़ा कानपुर, मटून, खरबड़िया और भोइयों की पंचोली जैसे क्षेत्रों की भौगोलिक और आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि उन्हें नगर निगम में शामिल किया जाए। यहां 80 प्रतिशत लोग खेती और पशुपालन पर निर्भर हैं और क्षेत्र में किसी भी प्रकार की विकसित कॉलोनी नहीं है। नगर निगम में शामिल होने से ग्रामीणों पर कई तरह की शहरी पाबंदियां लागू हो जाएंगी, जो उनकी आजीविका और जीवनशैली को प्रभावित करेंगी।

ग्रामीणों ने सरकार से मांग की है कि उनकी पंचायतों को पूर्ववत ग्रामीण क्षेत्र ही बनाए रखा जाए।

Advertisements