पटना : पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को बिहार राज्य के विभिन्न विद्यालयों में वर्ष 2012 से पहले नियुक्त शिक्षकों को स्नातक प्रशिक्षित वेतनमान प्रदान करने का निर्देश दिया. जस्टिस पूर्णेंदु सिंह ने राजेश कुमार पांडे द्वारा दायर रिट याचिका पर सभी सम्बन्धित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया.
कोर्ट ने क्या कहा ? : पक्षों की सुनवाई के बाद, जस्टिस सिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता और उनके जैसे नियोजित शिक्षक, जो मध्य विद्यालय में नियुक्त और कार्यरत हैं और जिनके पास ‘स्नातक प्रशिक्षित’ या इसके समकक्ष योग्यता है, उक्त पद से जुड़े वेतन के अधिकारी होंगे. 78 पृष्ठों में दिये गये निर्णय का समापन करते हुए, अदालत ने शिक्षा विभाग को आदेश दिया कि वह अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए न्यायसंगत तरीके से कार्य करे.
शिक्षा विभाग को निर्देश दिया गया है कि 2006 से 2012 के बीच नियुक्त सभी शिक्षकों को स्नातक प्रशिक्षित ग्रेड-पे का समान लाभ प्रदान करें, जिन्हें स्नातक प्रशिक्षित ग्रेड और सभी परिणामी लाभों से वंचित किया गया है. ताकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 के तहत दिए गए उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जा सके.
3 महीने का दिया गया वक्त : कोर्ट ने आगे कहा कि यह प्रक्रिया तीन महीने की अवधि के भीतर पूरी की जानी आवश्यक है. याचिकाकर्ता ने अपनी शिकायत उठाई. वर्ष 2005 में पंचायत शिक्षा मित्र के रूप में नियुक्त किए गए याचिकाकर्ताओं ने प्राथमिक शिक्षा निदेशक के उस आदेश के खिलाफ अपील की थी. इसमें उन्हें इस संबंध में नियम की अधिसूचना की तिथि से 2012 से स्नातक प्रशिक्षित शिक्षक का दर्जा देने और संशोधित वेतन और उसके बकाया के परिणामी लाभों से वंचित किया गया था.
BMSICL के MD का मामला पहुंचा न्यायालय : वहीं दूसरी तरफ, बिहार मेडिकल सर्विसेस एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीएमएसआईसीएल) के प्रबंध निदेशक डॉ. निलेश रामचंद्र देवरे के खिलाफ गंभीर आरोपों को लेकर पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. यह याचिका धीरेंद्र सिंह पासवान ने जनहित में दाखिल की है.
इसमें वित्तीय अनियमितता, पक्षपातपूर्ण खरीद प्रक्रियाएं और बिहारवासियों के प्रति अपमानजनक व्यवहार के आरोप लगाए गए हैं. याचिका में कहा गया है कि बीएमएसआईसीएल के तहत दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति में भारी कमी है।इससे राज्य के सरकारी अस्पतालों में मरीजों को गंभीर संकट झेलना पड़ रहा है. सर्पदंश और रेबीज के मामलों में टीकों की अनुपलब्धता भी दर्शाई गई है.
याचिकाकर्ता ने बीएमएसआईसीएल के कार्यकाल की स्वतंत्र ऑडिट और उच्चस्तरीय जांच की मांग की है. यह भी आरोप लगाया गया है कि डॉ. देवरे का व्यवहार पूर्व में मधुबनी, पश्चिम चंपारण और अन्य विभागों में भी विवादास्पद रहा है. हाल में पीएमसीएच में भी उनकी टिप्पणियों को लेकर विरोध हुआ. याचिकाकर्ता ने संबंधित अधिकारियों को पूर्व में शिकायत दी थी, पर कार्रवाई न होने पर कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की है. इस जनहित याचिका पर शीघ्र सुनवाई होने की संभावना है.