पैतृक संपत्ति मामले सैफ अली खान को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट से बॉलीवुड एक्टर सैफ अली खान और उनके परिवार को बड़ी राहत मिली है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल के अंतिम शासक नवाब हमीदुल्ला खान की निजी संपत्ति से जुड़े विवाद की नए सिरे से सुनवाई के लिए निचली अदालत में वापस भेजने के मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के निर्देश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की. इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी.

हाई कोर्ट इसी साल जुलाई में अभिनेता सैफ अली खान, उनकी बहन सोहा-सबा और मां शर्मिला टैगोर को संपत्ति का उत्तराधिकारी मानने के निचली अदालत के आदेश को खारिज कर दिया था. इसके बाद सैफ अली खान के परिवार की ओर से हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. जहां जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल चंदुरकर की बेंच ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए नोटिस जारी किया है.

15 हजार करोड़ के आसपास है संपत्ति की कीमत

पटौदी परिवार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मध्य प्रदेश में लगभग 15 हजार करोड़ रुपए कीमत की कई शाही संपदाओं पर अपनी एकमात्र विरासत को बहाल करने की मांग की है. ट्रायल कोर्ट ने सैफ अली खान, मां शर्मिला टैगोर और उनकी बहनों को संपत्तियों का मालिक माना था, जिसे आदेश को हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया था. हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को फिर से सुनवाई कर एक साल के भीतर मामले का निपटाना करने का निर्देश भी दिया था.

क्या है पूरा विवाद और क्या है मांग?

दरअसल, पूरा मामला नवाब हमीदुल्ला से जुड़ा हुआ है, जो भोपाल रियासत के अंतिम शासक थे. उनकी तीन बेटियों में से एक साजिदा ने इफ्तिखार अली खान पटौदी से शादी की थी जबकि उनके बेटे मंसूर अली खान पटौदी ने शर्मिला टैगोर से विवाह किया था. पटौदी जो कि भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान भी रहे.

 

मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार चाहते हैं विवाद का हल

नवाब हमीदुल्ला की सबसे बड़ी बेटी जिनका नाम आबिदा था वो पाकिस्तान चली गई, जिसके बाद संपत्तियों की मालिक साजिदा बन गई. संपत्ति विवाद को लेकर अदालत में दो अपीलें दायर की गई थी. पहली अपील बेगम सुरैया राशिद और दूसरी नवाब मेहर ताज साजिद सुल्तान की ओर से दायर की गई थी. ट्रायल कोर्ट ने जब अपना फैसला सुनाया था तब अपीलकर्ताओं फैसले को अनुचित बताया था और कहा था कि संपत्तियों का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार किया जाना चाहिए.

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