पटना: आज शारदीय नवरात्र का चौथा दिन है और इस दिन मां कूष्मांडा की पूजा का विशेष महत्व है. इस वर्ष की चतुर्थी तिथि दो दिन रहेगी, 25 और 26 सितंबर, जो पिछले 9 साल में पहली बार हो रहा है. चतुर्थी तिथि में स्वाति नक्षत्र, वैधृति योग और रवियोग का संयोग बन रहा है, जिससे इस बार की पूजा और भी पावन मानी जा रही है.
ज्योतिषाचार्य राकेश झा के अनुसार, देवी कूष्मांडा अपनी हल्की और मधुर हंसी से ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने वाली हैं. उनकी पूजा से भक्तों को भवसागर से पार पाने का मार्ग सरल और श्रेयस्कर बनता है. माता कूष्मांडा की उपासना से मनुष्य को आधि-व्याधियों से मुक्ति मिलती है और उसे सुख, समृद्धि एवं उन्नति की प्राप्ति होती है.
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में चारों तरफ अंधकार व्याप्त था, तब माता कूष्मांडा ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की. इसी कारण इन्हें सृष्टि की आदिस्वरूपा और अष्टभुजा कहा जाता है. माता के सात हाथों में कमण्डल, धनुष-बाण, कमल-पुष्प, अमृतकलश, चक्र और गदा हैं, जबकि आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों की प्राप्ति देने वाली जप माला है. इनका वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़ा की बलि प्रिय है.ज्योतिषाचार्य झा के अनुसार, मां कूष्मांडा सूर्यलोक में निवास करती हैं और उनके शरीर की प्रभा सूर्य के समान प्रकाशित है. उनके तेज से पूरे ब्रह्मांड में आलोक फैला हुआ है. नवरात्र के चौथे दिन अचंचल और पवित्र मन से पूजा करने से रोग, शोक और बाधाएं दूर होती हैं. साथ ही आयु, यश, बल और आरोग्य की प्राप्ति होती है.सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्त को मां कूष्मांडा का आशीर्वाद आसानी से प्राप्त होता है और परम पद की प्राप्ति होती है.