बिहार की वोटर लिस्ट रीविजन (SIR) के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि 65 लाख वोट हटाए गए हैं उन लोगों का डेटा क्यों सार्वजनिक नहीं किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्हें सार्वजनिक कर दीजिए. चुनाव आयोग ने कहा कि ठीक है, आपका आदेश है तो कर देंगे.
जस्टिस कांत ने कहा कि हम नहीं चाहते कि नागरिकों के अधिकार राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं पर निर्भर हों. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि आपने सुना ही होगा कि ड्राफ्ट रोल में मृत या जीवित लोगों को लेकर गंभीर विवाद है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि आपके पास ऐसे लोगों की पहचान करने का क्या तंत्र है? जिससे परिवार को पता चल सके कि हमारे सदस्य को सूची में मृतक के रूप में शामिल कर दिया गया है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप हटाए गए लोगों की सूची भी वेबसाइट डालें, ताकि लोग हकीकत से वाकिफ हो सकें. आधार नंबर या अन्य जो दस्तावेज दर्ज हो, ईपीआईसी और हटाने का कारण स्पष्ट कर दें.
चुनाव आयोग ने कहा कि ठीक है हम हर एक विधानसभा क्षेत्र के हिसाब से वेबसाइट में यह जानकारी मुहैया करा देंगे. चुनाव आयोग ने कहा कि हटाए गए लोगों की हम जिला स्तर पर सूची जारी करेंगे. जस्टिस बागची ने कहा कि हम बस यह जानकारी सार्वजनिक करना चाहते हैं. जस्टिस कांत ने कहा कि पूनम देवी के परिवार को पता होना चाहिए कि उनका नाम इसलिए हटाया गया है, क्योंकि उनकी मृत्यु हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि आप यह कब तक कर सकते हैं? जस्टिस बागची ने कहा कि हम 48 घंटे में करने का सुझाव देते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा 2003 के बिहार मतदाता सूची संशोधन में विचार किए गए दस्तावेजों के बारे में हमें बताएं. जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने कहा कि हम चाहते हैं कि चुनाव आयोग यह बताए कि 2003 की कवायद में कौन से दस्तावेज लिए गए थे. दरअसल, याचिककर्ताओं के वकील निजाम पाशा ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अगर 1 जनवरी 2003 की तारीख चली जाती है तो सब कुछ चला जाता है. चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि मुझे दूसरे पक्ष के वकीलों की उनके योगदान के लिए सराहना करनी चाहिए. यह भविष्य के नजरिये से एक अच्छा संकेत है.
SC ने क्या-क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपके अनुसार 1 जनवरी 2025 तक 7.89 करोड़ लोग हैं, जिनमें से 7.24 करोड़ फॉर्म पहले ही भरे जा चुके हैं, बाकी 65 लाख हैं. 65 लाख में से 22 लाख लोग मर चुके हैं. आपने सुना होगा कि मृत या जीवित पर गंभीर विवाद है. लोगों को जानने की क्या व्यवस्था है?
ताकि परिवार को पता चल सके कि हमारे सदस्य को सूची में मृत के रूप में शामिल किया गया है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकों के अपने अधिकार हैं. कुछ संविधान से जुड़े हैं, कुछ कानून से. क्या आपके पास कोई ऐसी व्यवस्था नहीं हो सकती, जिससे उन्हें स्थानीय राजनीतिक दल के पीछे न भागना पड़े? चुनाव आयोग ने कहा- बूथों की संख्या बढ़ा दी गई है. वेबसाइट पर हमने बीएलओ की संख्या दी है. मृतकों की पहचान के लिए अधिकारी स्वयंसेवकों के साथ घर-घर जाएंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा-आप इसे इंटरनेट पर भी क्यों नहीं करते? चुनाव आयोग ने कहा-छूटे हुए लोगों की सूची चुनाव आयोग की वेबसाइट पर है. बस नाम और ईपीआईसी नंबर दर्ज करना है, इससे पता चल जाएगा कि व्यक्ति ने गणना फॉर्म भरा है या नहीं.
चुनाव आयोग के वकील ने क्या-क्या कहा?
चुनाव आयोग के वकील ने कहा, अगर मैं तर्कों की सीमा पर गौर करूं, तो वे कहते हैं कि ईसीआई नागरिकता के मामले में विचार नहीं कर सकता. फिर, वोटर के रूप में पंजीकृत होने का अधिकार, तीसरा-अनुच्छेद 324 के तहत ईसीआई की शक्ति का दायरा क्या है और निश्चित रूप से अनुच्छेद 14 निष्पक्ष और उचित होने का दायित्व देता है. यह संवैधानिक कैनवास प्रस्तुत किया गया है.
संसद को अनुच्छेद 327 के तहत चुनाव से जुड़े मामलों को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने का अधिकार है. अब सवाल है इन दोनों कानूनों का आपस में क्या संबंध है? क्या 1951 के कानून के तहत चुनाव कराने की प्रक्रिया का असर मतदाता सूची बनाने की प्रक्रिया पर पड़ता है? क्या हमें धारा 21(3) के तहत SIR (Special Intensive Revision) करने का अधिकार है? और अगर हमें यह अधिकार है भी, तो क्या यह नियमों और विनियमों के अनुसार है? क्या ईसीआई इसे संशोधित कर सकता है, इसे उस उद्देश्य के अनुरूप बना सकता है जिसके लिए एसआईआर शुरू किया गया है?
मामलों को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने का अधिकार है. अब सवाल है इन दोनों कानूनों का आपस में क्या संबंध है? क्या 1951 के कानून के तहत चुनाव कराने की प्रक्रिया का असर मतदाता सूची बनाने की प्रक्रिया पर पड़ता है? क्या हमें धारा 21(3) के तहत SIR (Special Intensive Revision) करने का अधिकार है? और अगर हमें यह अधिकार है भी, तो क्या यह नियमों और विनियमों के अनुसार है? क्या ईसीआई इसे संशोधित कर सकता है, इसे उस उद्देश्य के अनुरूप बना सकता है जिसके लिए एसआईआर शुरू किया गया है?
द्विवेदी ने कहा कि दूसरा सवाल यह है कि क्या हम 2003 को कटऑफ मान सकते थे. क्या यह समावेशी है या बहिष्कृत. मैं एक-एक करके एसआईआर के आदेश और नियमों-प्रावधानों का उल्लेख करूंगा. लेकिन, उससे पहले, कुछ सामान्य बातें और एक चेतावनी है. चेतावनी- मैं जो भी प्रस्तुत करूंगा वह तर्कसंगतता और विवेक के साथ होगा. मेरा यह तर्क नहीं है कि चुनाव आयोग जो चाहे करने के लिए सर्वशक्तिमान है. मैं इतना ऊंचा पदमान नहीं मानता. लेकिन, चुनाव आयोग के पास अनुच्छेद 324, धारा 15 और 21(2) और 21(3) के तहत शक्तियों का भंडार है.
SC ने कहा हटाए गए लोगों का आंकड़ा बुहत बड़ा
जस्टिस कांत ने कहा लेकिन बिहार और दूसरे राज्यों में गरीब आबादी है. यह एक सच्चाई है, ग्रामीण इलाकों में अभी समय लगेगा. द्विवेदी ने कहा कि शहरी इलाकों में मतदाताओं को पकड़ना ज्यादा मुश्किल है. वो ऐसा करना ही नहीं चाहते. आज के बिहार में पुरुषों की साक्षरता दर 80% है. महिलाओं की साक्षरता दर 65% को छू रही है. आज के युवा पहले जैसे नहीं हैं. आज तक, लगभग 5 करोड़ लोग जो 2003 की सूची में हैं. 7.24 लाख ड्राफ्ट में हैं, 65 लाख हटे हैं. जस्टिस कांत ने कहा कि लेकिन यह बहुत बड़ा आंकड़ा है. द्विवेदी ने कहा कि इसमें 22 लाख लोग मृत हैं.
ड्राफ्ट वोटर्स लिस्ट 1 अगस्त को पब्लिश की गई थी और अंतिम सूची 30 सितंबर को जारी होने वाली है. विपक्ष का आरोप है कि यह प्रक्रिया लाखों वोटर्स को वोट देने के अधिकार से वंचित कर देगी. इसको लेकर विपक्ष लगातार हंगामा कर रहा है.