‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ का नारा देने वाले केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान अब बिहार की सियासत में एक्टिव होने की तैयारी कर चुके हैं. उन्होंने साफ संकेत दिए हैं कि आगामी विधानसभा चुनावों में वह चुनाव लड़ सकते हैं. इसके लिए बाकायदा उनकी पार्टी की तरफ से एक प्रस्ताव भी पारित किया गया है और अटकलें यह भी हैं कि वह किसी आरक्षित सीट से नहीं बल्कि सामान्य सीट से चुनाव लड़ेंगे.
रणनीति के तहत फैसला
चिराग पासवान में हाल ही में वैशाली में कहा कि अगर पार्टी चाहेगी, तो मैं जरूर चुनाव लड़ूंगा. उन्होंने यह भी कहा कि यह कोई बहानेबाजी या दिखावा नहीं है, बल्कि पार्टी इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर रही है. उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी पार्टी का स्ट्राइक रेट बेहतर करने का लक्ष्य है और कई बार देखा गया है कि जब कोई बड़ा नेता खुद मैदान में उतरता है तो उसका असर पूरे संगठन पर पड़ता है.
चिराग ने यह भी कहा कि उनके चुनाव लड़ने से बिहार में एनडीए को फायदा हो सकता है. उन्होंने कहा कि यह फैसला सिर्फ व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का नहीं है, बल्कि पार्टी और NDA गठबंधन की रणनीति का हिस्सा है.
क्या CM पद के दावेदार होंगे?
लेकिन तीन बार के सांसद और मंत्री चिराग पासवान अब विधायक क्यों बनना चाहते हैं. क्या उनका मकसद सिर्फ विधायक बनने तक सीमित है या इसका अगला कदम मुख्यमंत्री पद की दावेदारी होगा? इसका जवाब तो आगे मिलेगा. लेकिन चिराग पासवान के इस दांव ने बिहार में सियासी सरगर्मी जरूर बढ़ा दी है. एलजेपी के सांसद और प्रदेश प्रभारी अरुण भारती ने अपने नेता का समर्थन करते हुए बिहार में चुनाव लड़ने के फैसले का स्वागत किया है.
उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा कि चिराग हमेशा कहते हैं कि उनकी राजनीति बिहार केंद्रित है और उनका विजन ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ एक विकसित और आत्मनिर्भर बिहार का संकल्प है. यह तभी संभव है जब वे खुद बिहार में रहकर नेतृत्व करें. जब मैं प्रदेश प्रभारी के रूप में गांव-गांव गया, हर जगह लोगों की एक ही मांग थी कि चिराग को अब बिहार में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए. हाल ही में पार्टी कार्यकारिणी की बैठक में भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में खुद चुनाव लड़ें.
अरुण भारती ने आगे कहा कि कार्यकर्ताओं की यह भी भावना है कि इस बार वे किसी आरक्षित सीट से नहीं, बल्कि एक सामान्य सीट से चुनाव लड़ें ताकि यह संदेश जाए कि वे अब सिर्फ एक वर्ग नहीं, पूरे बिहार का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं.
चिराग के दिल में क्या है?
बिहार में चुनाव से पहले चिराग पासवान की रणनीति साफ है. वह बिहार में अपनी सियासी जड़ें मजबूत करना चाहते हैं और उनकी पार्टी एलजेपी इसे बिहार में एक नए नेतृत्व के विकल्प के तौर पर देख रही है. दूसरी बात सामान्य सीट से चुनाव लड़ने के पीछे भी वजह साफ है कि चिराग सिर्फ पिछड़ों के नेता बनकर नहीं रहना चाहते और हर वर्ग के मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं.
उन्होंने खुद भी इस बात को स्वीकार किया था कि दिल्ली में रहकर बिहार की राजनीति नहीं की जा सकती और उन्हें लोगों के बीच बिहार जाने की जरूरत है. लेकिन अब सवाल यह है कि चिराग का बिहार की सियासत में उतरना एनडीए के सहयोगी दलों को रास आएगा या नहीं? बिहार में फिलहाल जेडीयू की अगुवाई में नीतीश कुमार की सरकार है और बीजेपी के दो उपमुख्यमंत्री हैं. ऐसे में अगर चुनाव जीतकर चिराग भी विधानसभा पहुंच जाते हैं तो सरकार में उनकी भूमिका क्या होगी. एनडीए के लिए बड़े कद के नेताओं को पद और सम्मान से संतुष्ट करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है. विपक्ष के लिए भी ऐसे में मौका बन सकता है.
विपक्ष तलाश रहा है मौका
चिराग के चुनाव लड़ने पर आरजेडी नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि बिहार में चुनाव से पहले ही NDA में सिर फुटव्वल शुरू हो गई है और मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हो गए हैं. तिवारी ने कहा कि LJP(R) अब चिराग पासवान को सीएम कैंडिडेट बता रही है और जेडीयू-बीजेपी नीतीश कुमार को सीएम कैंडिडेट बता रहे हैं. उन्होंने कहा कि NDA में चिराग की पार्टी की लगातार उपेक्षा हो रही है.
आरजेडी प्रवक्ता के बयान से साफ है कि चिराग के विधानसभा चुनाव लड़ने को विपक्ष भी अपने लिए एक मौके के तौर पर देख रहा है. अगर चुनाव नतीजों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो ऐसे में चिराग की भूमिका अहम हो सकती है. तेजस्वी यादव के साथ वह पहले ही अपने पारपारिक संबंधों को हवाला दे चुके हैं, ऐसे में उनका पाला बदल भी मुमकिन हो सकता है. लेकिन फिलहाल औपचारिक तौर पर चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव लड़ने के ऐलान का इंतजार है.