सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को बिहार में चुनाव आयोग (ECI) द्वारा किए जा रहे Special Intensive Revision (SIR) प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है. यह सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच के सामने हो रही है. सुनवाई के दौरान जस्टिस बागची ने याचिकाकर्ताओं के वकील से कहा कि हम समझ रहे हैं कि आप आधार के बारे में बात कर रहे हैं… पहचान पत्रों की संख्या बढ़ाना वोटर-फ्रेंडली कदम है, और यह बाहर किया जाने वाला यानी एक्सक्लूजनरी कदम नहीं है. उन्होंने कहा कि पहले 7 दस्तावेज मान्य थे, अब 11 हैं, जिससे लोगों के पास और विकल्प होंगे.
मामले की सुनवाई में शामिल जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “अगर कोई कहता है कि सभी 11 दस्तावेज जरूरी हैं, तो यह एंटी-वोटर होगा, लेकिन अगर कहा जाता है कि 11 विश्वसनीय दस्तावेजों में से कोई भी दें…?” जजों की टिप्पणियों के बाद याचिकाकर्ताओं के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने जस्टिस बागची की टिप्पणी पर कहा कि वह उनसे असहमत हैं और बताया कि असल में यह एक्सक्लूजनरी है.
सिंघवी ने कहा, “(1) आधार शामिल नहीं है – यह एक्सक्लूजनरी है. यह वह दस्तावेज है जिसका कवरेज सबसे अधिक है. (2) पानी, बिजली, गैस कनेक्शन – इसमें (मांगे गए डॉक्यूमेंट्स में) शामिल नहीं हैं (3) इंडियन पासपोर्ट – 1-2% से कम कवरेज है. संख्या के संदर्भ में, वे प्रभावित करने के लिए इसे बरकरार रख रहे हैं. लेकिन स्वभाव से, यह न्यूनतम कवरेज वाला दस्तावेज है. (4) अन्य सभी दस्तावेजों का कवरेज 0-2-3% के बीच है. अगर किसी के पास जमीन नहीं है, तो दस्तावेज 5,6,7 बाहर हैं. मुझे आश्चर्य है कि बिहार में कितने लोग इसके लिए योग्य होंगे? बिहार में निवास प्रमाण पत्र मौजूद नहीं है. फॉर्म 6 में केवल सेल्फ-डिक्लेरेशन की जरूरत होती है.”
अभिषेक मनु सिंघवी ने इस बात पर इसपर आपत्ति क्यों है? वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा, “कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन चुनाव से महीनों पहले क्यों? बाद में करवािए, पूरा साल लग जाएगा. चुनाव आयोग 11 दस्तावेजों का हवाला देकर प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है… 3 दस्तावेजों के सोर्स उन्हें नहीं पता, बाकी 2 बेहद संदिग्ध और अप्रासंगिक हैं… ये 11 की लिस्ट ताश के पत्तों की तरह हैं. ये आधार, पानी और बिजली के बिलों की जगह ले लेते हैं.
नागरिकता प्रमाण के मुद्दे पर पूरी तरह 180 डिग्री टर्न लिया- सिंघवी
सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि चुनाव आयोग ने नागरिकता प्रमाण के मुद्दे पर पूरी तरह 180 डिग्री का रुख बदल लिया है. किसी को नागरिक न मानने के लिए पहले कोई आपत्ति करने वाला होना चाहिए, फिर ERO नोटिस देगा और जवाब का समय देगा. उन्होंने सवाल किया कि इतने बड़े ज्यूडिशियल टास्क दो महीने में कैसे पूरे होंगे? सिंघवी ने सुझाव दिया कि SIR दिसंबर से शुरू कर एक साल में पूरी की जाए, और कोई भी इसके खिलाफ नहीं है.
जज की सिविल सर्विसेज वाली टिप्पणी पर सिंघवी ने क्या जवाब दिया?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह दिलचस्प है कि सीमा क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के पास पासपोर्ट हैं. पंजाब में भी देखा गया है कि लोग पासपोर्ट बनवाते हैं. सिंघवी ने आपत्ति जताई कि मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट के आंकड़े 2005-2025 के बीच के क्यों दिए जा रहे हैं, जबकि इस अवधि में पास करने वाले सभी वोटर नहीं हो सकते. इस पर कोर्ट ने कहा कि सर्टिफिकेट उसी साल पास करने वालों को दिया जाता है, इसलिए यह समसामयिक है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि बिहार को कमतर न आंका जाए, IAS और IFS में बिहार का प्रतिनिधित्व सबसे ज्यादा है.
अभिषेक सिंघवी ने कहा कि यह प्रतिनिधित्व केवल एक वर्ग तक सीमित है, जबकि बाढ़ प्रभावित और ग्रामीण गरीब वर्ग के लोगों को दस्तावेज हासिल करने में मुश्किल होती है. कई राज्यों में स्थायी निवास प्रमाण पत्र नहीं होते.
’13 करोड़ स्थायी निवास प्रमाण पत्र जारी होने का आंकड़ा कैसे आया?’
कोर्ट ने पूछा कि बिहार में 13 करोड़ स्थायी निवास प्रमाण पत्र जारी होने का आंकड़ा कैसे आया, जबकि यह राज्य की कुल जनसंख्या से ज्यादा है. ECI ने कहा कि यह डेटा राज्यों या अन्य अथॉरिटी से लिया गया उदाहरण है. सिंघवी ने आपत्ति जताई कि तीन दस्तावेजों के लिए सोर्स नहीं दिया गया, दो दस्तावेज बिहार में लागू ही नहीं होते. उन्होंने कहा कि आधार, EPIC को छोड़कर पानी-बिजली बिल जैसे सरल दस्तावेज नहीं शामिल किए जा रहे हैं, और ये आंकड़े दानिश केस के हलफनामे में दिए गए हैं.
जस्टिस बागची ने कहा कि स्थायी निवास प्रमाण पत्र के लिए जारी करने वाला विभाग भी खाली छोड़ा गया है. सिंघवी ने दोहराया कि किसी को गहन पुनरीक्षण से समस्या नहीं है, लेकिन दो महीने में इसे लागू करना व्यावहारिक नहीं है.