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बिलासपुर: चर्चित किम्स हॉस्पिटल के ‘मंगलसूत्र कांड’ में जांच के नाम पर लीपापोती, सीएमएचओ ने कार्रवाई से किया इनकार

बिलासपुर: किम्स हॉस्पिटल के विवादित ‘मंगलसूत्र कांड’ की जांच तीन सदस्यीय कमेटी द्वारा पूरी कर सीएमएचओ को सौंपी गई. जांच रिपोर्ट में 8 बिंदुओं का उल्लेख है, लेकिन इसमें मुख्य शिकायतों को नज़रअंदाज किया गया है. सीएमएचओ ने स्वीकार किया कि, ऑपरेशन के बाद महज दो दिनों में बुखार से पीड़ित प्रसूता को डिस्चार्ज करना गलत था. बावजूद इसके, उन्होंने कार्रवाई करने में असमर्थता जताते हुए पीड़ित को कोर्ट जाने की सलाह दी.

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क्या है मामला:
गोड़पारा निवासी निगमकर्मी कैलाश सोनी ने अपनी पत्नी रेणु को डिलीवरी के लिए किम्स हॉस्पिटल में भर्ती कराया. 4 सितंबर को ऑपरेशन से बेटे का जन्म हुआ। 6 सितंबर को बुखार से तप रही रेणु को डिस्चार्ज कर यह कह दिया गया कि ईएसआईसी कार्ड मान्य नहीं है और नकद भुगतान करना होगा। कैलाश ने आयुष्मान कार्ड भी दिखाया, लेकिन उसे भी ठुकरा दिया गया. अस्पताल प्रशासन के दबाव में कैलाश को अपनी पत्नी के तीन मंगलसूत्र गिरवी रखकर भुगतान करना पड़ा.

कैसे हुई जांच:
कैलाश की शिकायत पर कलेक्टर के आदेश से तीन सदस्यीय जांच टीम बनाई गई. जांच में तीन महीने लग गए, लेकिन जब रिपोर्ट आई, तो कैलाश को उसकी प्रति लेने के लिए बार-बार कार्यालय के चक्कर लगाने पड़े. रिपोर्ट में कई अहम सवालों का जवाब गायब है, जिससे जांच प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

उठ रहे सवाल:

1. ऑपरेशन के बाद बुखार से पीड़ित प्रसूता को दो दिन में डिस्चार्ज करना कितना उचित है?

2. जांच रिपोर्ट में इस गंभीर लापरवाही का जिक्र क्यों नहीं किया गया?

3. ईएसआईसी और आयुष्मान कार्ड को मान्यता न देना क्या सरकार की योजनाओं की अनदेखी नहीं है?

4. सीएमएचओ ने जांच रिपोर्ट आने से पहले ही पीड़ित को कोर्ट जाने की सलाह क्यों दी?

राजनीतिक मुद्दा बना ‘मंगलसूत्र कांड’:
लोकसभा चुनाव में यह मामला बड़ा मुद्दा बना था, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद कार्रवाई के नाम पर लीपापोती की जा रही है. भाजपा द्वारा उठाया गया यह मुद्दा आज भी unresolved है, और पीड़ित को सिर्फ नसीहत देकर मामला रफा-दफा करने की कोशिश हो रही है.

सीजीडीएनए का संदेह सही साबित:
जांच प्रक्रिया पर सीजीडीएनए ने पहले ही सवाल खड़े किए थे. दो महीने से अधिक समय तक रिपोर्ट न आने और जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी को लेकर संगठन ने शंका जताई थी, जो अब सही साबित हो रही है.

स्वास्थ्य विभाग पर सवालिया निशान:
स्वास्थ्य विभाग की इस उदासीनता ने न केवल पीड़ित को न्याय से वंचित किया है, बल्कि सरकारी योजनाओं की साख पर भी बट्टा लगाया है, विधायक सुशांत की नाराजगी के बावजूद विभाग की चुप्पी और कार्रवाई से बचाव ने मामले को और गंभीर बना दिया है.

निष्कर्ष:
किम्स हॉस्पिटल के ‘मंगलसूत्र कांड’ ने प्रशासनिक व्यवस्था और स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. तीन महीने की जांच के बाद भी पीड़ित को न्याय नहीं मिल पाना न केवल निराशाजनक है, बल्कि यह दर्शाता है कि प्रभावशाली संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई करने में प्रशासन कितना असहाय है.

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