भोपाल शहर में इस नवरात्रि धार्मिक उत्सव और पर्यावरण संरक्षण का अनूठा संगम देखने को मिला। इस वर्ष करीब 4500 दुर्गा पंडालों से विसर्जन के समय एकत्र किए गए 10 टन नींबुओं से लगभग 10,000 लीटर प्राकृतिक बायो एंजाइम तैयार किया जा रहा है। यह जैविक घोल शहर के तालाबों और जलकुंडों की सफाई में इस्तेमाल होगा।
भोपाल नगर निगम ने इस पहल को ‘वेस्ट टू वेल्थ’ के तहत शुरू किया है। इसके अंतर्गत पूजन सामग्री को बेकार मानने के बजाय पुनः उपयोग में लाया जा रहा है। दुर्गा प्रतिमाओं पर चढ़ाए गए नींबू, संतरे के छिलके और सड़ा गुड़ मिलाकर बायो एंजाइम तैयार किया जाता है। यह घोल पूरी तरह प्राकृतिक, गैर-विषैला और पर्यावरण के अनुकूल है। 10 से 15 दिनों में तैयार होने वाला यह बायो एंजाइम पानी में मौजूद प्रदूषकों को नष्ट करता है और जलकुंभी जैसे हानिकारक पौधों के फैलाव को रोकता है।
नगर निगम ने बताया कि इस बार तैयार किया जा रहा 10,000 लीटर बायो एंजाइम शहर के बड़े तालाबों की सफाई के लिए पर्याप्त है। इसका पहला सफल प्रयोग गणेश विसर्जन के दौरान शाहपुरा विसर्जन कुंड में किया गया था, जिसमें 500 लीटर एंजाइम का छिड़काव किया गया।
इस वर्ष विसर्जन के दौरान लगभग 4500 दुर्गा पंडालों से पूजन सामग्री एकत्र की गई। प्रारंभिक छह दिनों में 2 टन और अंतिम तीन दिनों में 8 टन नींबू अलग किए गए। नींबुओं का रस निकालकर उसमें संतरे के छिलके, गुड़ और पानी मिलाया गया। मिश्रण को एयरटाइट ड्रम्स में भरा गया और 10-15 दिनों में बायो एंजाइम तैयार हो गया।
भोपाल नगर निगम के प्रभारी उपायुक्त चंचलेश गिरहरे ने बताया कि यह पहल केवल जल स्रोतों को साफ करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं डालती। विसर्जन घाटों पर इकट्ठे बांस से ट्री गार्ड भी बनाए जाएंगे। इस पहल से शहर में सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा मिलेगा और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी जाएगा।
भोपाल में इस प्रकार धार्मिक आयोजन और प्रकृति संरक्षण का सफल संगम देखने को मिला है, जो अन्य शहरों के लिए प्रेरणास्रोत भी बन सकता है।