राजधानी दिल्ली में BMW कार से हुए सड़क हादसे के पीछे कई कहानियां निकल कर सामने आ रही हैं. यह हादसा सिर्फ एक टक्कर नहीं था, बल्कि एक पूरे परिवार की खुशियों को पल भर में लील गया. धौला कुआं के पास हुए इस हादसे ने वित्त मंत्रालय के डिप्टी डायरेक्टर नवजोत सिंह की जान ले ली, जबकि उनकी पत्नी जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही हैं.
खुशियों से भरा घर, लेकिन पल में मातम
इसी महीने नवजोत सिंह ने अपनी 21वीं शादी की सालगिरह मनाई थी. महज 13 दिन पहले तस्वीरों में हंसी-खुशी झलक रही थी. कल, 16 सितंबर, उनके इकलौते बेटे का जन्मदिन था. परिवार ने सुबह से ही जश्न की तैयारी कर रखी थी. लेकिन किसे पता था कि वही दिन इस घर के लिए मातम बनकर आएगा
गुरुद्वारे से लौटते समय हुआ हादसा
रविवार दोपहर, नवजोत सिंह अपनी पत्नी संदीप कौर के साथ बंगला साहिब गुरुद्वारा से घर लौट रहे थे. दोनों की बाइक जब धौला कुआं फ्लाईओवर के पास मेट्रो पिलर नंबर 67 से गुजर रही थी, तभी पीछे से आ रही तेज रफ्तार BMW ने उनकी गाड़ी को जोरदार टक्कर मार दी. चश्मदीदों के अनुसार, टक्कर इतनी भीषण थी कि बाइक डिवाइडर से टकराकर उछली और बगल से निकल रही एक बस से जा भिड़ी.
20 किलोमीटर दूर अस्पताल क्यों?
प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि BMW महिला चला रही थी और उसके साथ उसका पति भी मौजूद था. हादसे के बाद दोनों ने घायल दंपति को तुरंत अस्पताल ले जाने के बजाय लगभग 20 किलोमीटर दूर उत्तर दिल्ली स्थित न्यू लाइफ अस्पताल पहुंचाया. सवाल यह उठता है कि जब धौला कुआं से 5 किलोमीटर के दायरे में ही एम्स, सफदरजंग और वेंकटेश्वर जैसे बड़े अस्पताल मौजूद थे, तो फिर घायल दंपति को दूर, एक छोटे से अस्पताल क्यों ले जाया गया? परिजनों का आरोप है कि इस देरी और अस्पताल की लापरवाही ने नवजोत सिंह की जान ले ली. वहां न कोई उचित इलाज मिला, न सुविधा. पत्नी संदीप कौर के सिर में 14 टांके आए, शरीर में कई फ्रैक्चर हुए, लेकिन दर्द का एक इंजेक्शन तक नहीं दिया गया. बाद में परिवार खुद उन्हें वेंकटेश्वर अस्पताल लेकर गया.
बड़े अफसर, लेकिन मदद नहीं मिली
नवजोत सिंह भारत सरकार के वित्त मंत्रालय में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर कार्यरत थे. परिजनों का कहना है कि पुलिस ने शुरुआत से ही उन्हें गुमराह किया और न तो सही जानकारी दी, न मदद. सवाल उठता है कि जब इतने बड़े पद पर बैठे अफसर के साथ ऐसा व्यवहार हो सकता है, तो आम आदमी के साथ क्या होता होगा?
मां का दर्द मेरा बच्चा चला गया
मृतक नवजोत सिंह की मां गुरपाल कौर की आंखों में सिर्फ आंसू और सवाल हैं. रोते हुए उन्होंने कहा कि मेरा बच्चा चला गया… बहुत बेइंसाफी हुई है मेरे बेटे के साथ. मेरी बहू को भी बहुत चोट आई है, वो अभी हॉस्पिटल में है. हादसे के वक्त वो बेहोश हो गई थी. होश आया तो देखा, अस्पताल में पड़ी है और कोई देखने वाला नहीं. वहां न कोई इलाज था, न देखभाल. कुछ नहीं किया गया.
पुलिस और अस्पताल पर सवाल
परिवार ने गंभीर आरोप लगाए हैं कि यह पूरा घटनाक्रम एक सोची-समझी योजना का हिस्सा था. आरोप है कि हादसे के बाद आरोपी दंपति, अस्पताल सभी ने मिलकर सच्चाई को छुपाने की कोशिश की. सवाल यह भी है कि क्या जानबूझकर घायल दंपति को छोटे अस्पताल ले जाया गया ताकि हादसे की गंभीरता दबाई जा सके?
एक बेटे का सपना अधूरा
नवजोत का बेटा कल अपना जन्मदिन मनाने वाला था. लेकिन केक काटने और हंसी-खुशी के बीच परिवार को साथ लाने की बजाय, बेटे को अपने पिता की अर्थी देखने को मजबूर होना पड़ा. पड़ोसियों का कहना है कि इस मासूम पर एक ही दिन में जिंदगी का सबसे बड़ा बोझ आ गया पिता का साया खोने का.
मोहल्ले के लोग भी सदमे में
हरिनगर में नवजोत का परिवार रहता है. पड़ोसी बताते हैं कि इतने बड़े पद पर होने के बावजूद नवजोत बेहद सरल स्वभाव के इंसान थे. मिलने वाले हर शख्स से नमस्ते करना उनकी आदत थी. उनकी मौत से पूरी कॉलोनी सदमे में है.
जांच के घेरे में सवाल
– आखिर घायल दंपति को पास के बड़े अस्पताल में क्यों नहीं ले जाया गया?
– अस्पताल में आवश्यक सुविधाएं क्यों नहीं थीं?
– क्या आरोपी दंपति और पुलिस के बीच मिलीभगत थी?