देशभर में आज रात 12 बजे से तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं. 51 साल पुराने सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) लेगी. भारतीय दंड संहिता की जगह भारतीय न्याय अधिनियम (BNS) लेगा और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) के प्रावधान लागू होंगे. महिलाओं से जुड़े ज्यादातर अपराधों में पहले से ज्यादा सजा मिलेगी. इलेक्ट्रॉनिक सूचना से भी FIR दर्ज हो सकेगी. कम्युनिटी सेवा जैसे प्रावधान भी लागू होंगे. 20 पॉइंट में जानिए तीनों नए कानून में क्या खास है…
1. एक जुलाई से पहले दर्ज हुए मामलों में नए कानून का असर नहीं होगा. यानी जो केस 1 जुलाई 2024 से पहले दर्ज हुए हैं, उनकी जांच से लेकर ट्रायल तक पुराने कानून का हिस्सा होगी.
2. एक जुलाई से नए कानून के तहत एफआईआर दर्ज हो रही है और इसी के अनुसार जांच से लेकर ट्रायल पूरा होगा.
3. BNSS में कुल 531 धाराएं हैं. इसके 177 प्रावधानों में संशोधन किया गया है. जबकि 14 धाराओं को हटा दिया गया है. 9 नई धाराएं और 39 उप धाराएं जोड़ी गई हैं. पहले CrPC में 484 धाराएं थीं.
4. भारतीय न्याय संहिता में कुल 357 धाराएं हैं. अब तक आईपीसी में 511 धाराएं थीं.
5. इसी तरह भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कुल 170 धाराएं हैं. नए कानून में 6 धाराओं को हटाया गया है. 2 नई धाराएं और 6 उप धाराएं जोड़ी गई हैं. पहले इंडियन एविडेंस एक्ट में कुल 167 धाराएं थीं.
6. नए कानून में ऑडियो-वीडियो यानी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पर जोर दिया गया है. फॉरेंसिंक जांच को अहमियत दी गई है.
7. कोई भी नागरिक अपराध के सिलसिले में कहीं भी जीरो FIR दर्ज करा सकेगा. जांच के लिए मामले को संबंधित थाने में भेजा जाएगा. अगर जीरो एफआईआर ऐसे अपराध से जुड़ी है, जिसमें तीन से सात साल तक सजा का प्रावधान है तो फॉरेंसिक टीम से साक्ष्यों की जांच करवानी होगी.
8. अब ई-सूचना से भी एफआईआर दर्ज हो सकेगी. हत्या, लूट या रेप जैसी गंभीर धाराओं में भी ई-एफआईआर हो सकेगी. वॉइस रिकॉर्डिंग से भी पुलिस को सूचना दे सकेंगे. E-FIR के मामले में फरियादी को तीन दिन के भीतर थाने पहुंचकर एफआईआर की कॉपी पर साइन करना जरूरी होंगे.
9. फरियादी को एफआईआर, बयान से जुड़े दस्तावेज भी दिए जाने का प्रावधान किया गया है. फरियादी चाहे तो पुलिस द्वारा आरोपी से हुई पूछताछ के बिंदु भी ले सकता है.
10. FIR के 90 दिन के भीतर चार्जशीट चार्जशीट दाखिल करनी जरूरी होगी. चार्जशीट दाखिल होने के 60 दिनों के भीतर कोर्ट को आरोप तय करने होंगे.
11. मामले की सुनवाई पूरी होने के 30 दिन के भीतर जजमेंट यानी फैसला देना होगा. जजमेंट दिए जाने के बाद 7 दिनों के भीतर उसकी कॉपी मुहैया करानी होगी.
12. पुलिस को हिरासत में लिए गए शख्स के बारे में उसके परिवार को लिखित में बताना होगा. ऑफलाइन और ऑनलाइन भी सूचना देनी होगी.
13. महिलाओं-बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को BNS में कुल 36 धाराओं में प्रावधान किया गया है. रेप का केस धारा 63 के तहत दर्ज होगा. धारा 64 में अपराधी को अधिकतम आजीवन कारावास और न्यूनतम 10 वर्ष कैद की सजा का प्रावधान है.
14. धारा 65 के तहत 16 साल से कम आयु की पीड़ित से दुष्कर्म किए जाने पर 20 साल का कठोर कारावास, उम्रकैद और जुर्माने का प्रावधान है. गैंगरेप में पीड़िता यदि वयस्क है तो अपराधी को आजीवन कारावास का प्रावधान है.
15. 12 साल से कम उम्र की पीड़िता के साथ रेप पर अपराधी को न्यूनतम 20 साल की सजा, आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान है. शादी का झांसा देकर संबंध बनाने वाले अपराध को रेप से अलग अपराध माना गया है. यानी उसे रेप की परिभाषा में नहीं रखा गया है.
16. पीड़ित को उसके केस से जुड़े हर अपडेट की जानकारी हर स्तर पर उसके मोबाइल नंबर पर एसएमएस के जरिए दी जाएगी. अपडेट देने की समय-सीमा 90 दिन निर्धारित की गई है.
17. राज्य सरकारें अब राजनीतिक केस (पार्टी वर्कर्स के धरना-प्रदर्शन और आंदोलन) से जुड़े केस एकतरफा बंद नहीं कर सकेंगी. धरना-प्रदर्शन, उपद्रव में यदि फरियादी आम नागरिक है तो उसकी मंजूरी लेनी होगी.
18. गवाहों की सुरक्षा के लिए भी प्रावधान है. तमाम इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी कागजी रिकॉर्ड की तरह कोर्ट में मान्य होंगे.
19. मॉब लिंचिंग भी अपराध के दायरे में आ गया है. शरीर पर चोट पहुंचाने वाले अपराधों को धारा 100-146 तक बताया गया है. हत्या के मामले में धारा 103 के तहत केस दर्ज होगा. धारा 111 में संगठित अपराध के लिए सजा का प्रावधान है. धारा 113 में टेरर एक्ट बताया गया है. मॉब लिंचिंग के मामले में 7 साल की कैद या उम्रकैद या फांसी की सजा का प्रावधान है.
20. चुनावी अपराध को धारा 169-177 तक रखा गया है. संपत्ति को नुकसान, चोरी, लूट और डकैती आदि मामले को धारा 303-334 तक रखा गया है. मानहानि का जिक्र धारा 356 में किया गया है. दहेज हत्या धारा 79 में और दहेज प्रताड़ना धारा 84 में बताई गई है.
किन अपराधों में कम्युनिटी सर्विस देनी होगी?
छोटे-मोटे अपराधों के लिए गिरफ्तार किए गए लोगों को सजा के तौर पर सामुदायिक सेवा करनी होगी. संशोधित नए कानून में आत्महत्या का प्रयास, लोक सेवकों द्वारा अवैध व्यापार, छोटी-मोटी चोरी, सार्वजनिक नशा और मानहानि जैसे मामलों में सामुदायिक सेवा के प्रावधान शामिल हैं. सामुदायिक सेवा अपराधियों को सुधरने का मौका देती है. जबकि जेल की सजा उन्हें कठोर अपराधी बना सकती है. अब तक अदालतें पहली बार अपराध करने वाले या छोटे अपराध करने वालों को सामुदायिक सेवा की सजा देती रही हैं, लेकिन अब यह एक स्थायी कानून बन गया है. नए कानून के तहत पहली बार ऐसा प्रावधान किया गया है, जिसमें नशे की हालत में उपद्रव मचाने या 5,000 रुपये से कम की संपत्ति की चोरी जैसे छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा को दंड के तौर पर माना गया है.