मुस्लिम धर्म के दो बड़े समुदाय शिया और सुन्नी हैं. दोनों का ही तीर्थस्थल मक्का है और दोनों ही समुदाय हजरत मुहम्मद साहब को आखिरी पैगंबर मानते हैं. इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने को मुहर्रम कहा जाता है. इसकी 10वीं ता्रीख यानी 10वीं मुहर्रम को मातम का त्योहार मनाया जाता है, क्योंकि मुहर्रम के दसवें दिन कर्बला की जंग में हजरत अली के बेटे हुसैन और साथियों की जान ले ली गई थी. तब से शिया समुदाय के लोग मुहर्रम मनाते हैं.
मुगलों के शासनकाल में एक ऐसा वक्त भी आया था, जब औरंगजेब ने मुहर्रम के जुलूस पर प्रतिबंध लगा दिया था. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि उसने ऐसा क्यों किया था?
शिया और सुन्नी में बंटवारा
शिया और सुन्नी मुसलमानों में बंटवारे की कहानी 632 ईस्वी के बाद शुरू होती है. पैगंबर मुहम्मद साहब के बाद विवाद खड़ा हो गया था कि अब इस्लाम की बागडोर किसके हाथ में होगी. तब दो उम्मीदवार सामने आए. इनमें से एक थे पैगंबर मुहम्मद साहब के ससुर अबू बकर और पैगंबर मुहम्मद साहब के चचेरे भाई और दामाद अली. अबू बकर को पैगंबर मुहम्मद साहब का उत्तराधिकारी मानने वाले सुन्नी कहे जाने लगे. वहीं, अबू बकर को पहला खलीफा माना गया. दूसरे धड़े का कहना था कि हजरत अली उत्तराधिकारी हैं. उनको इमाम का दर्जा मिला और उनको मानने वाले शिया कहलाए.
वास्तव में हजरत अली को सुन्नी समुदाय के लोग भी मानते हैं. अबू बकर के बाद खलीफा उमर और उस्मान हुए. इनकी हत्या के बाद सुन्नियों ने हजरत अली को अपना चौथा खलीफा माना. हालांकि, शियाओं के लिए वह पहले इमाम हैं. खिलाफत और इमामत का यही फर्क शिया और सुन्नी में अंतर करता है.
कर्बला से जुड़ी है मुहर्रम की परंपरा
मुहर्रम की परंपरा शुरू होती है इराक के एक पवित्र शहर कर्बला से. बगदाद से करीब 120 किलोमीटर की दूरी पर कर्बला है, जिसका शिया मुसलमानों के लिए मक्का-मदीना के बाद सबसे ज्यादा महत्व है. साल 680 ईस्वी में उमय्यद खिलाफत के दूसरे खलीफा बने यजीद मुआविया. वह साम्राज्य पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते थे. इसलिए हुसैन और उनके समर्थकों पर दबाव डालना शुरू कर दिया.
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार हुसैन और उनका काफिला दो मुहर्रम को कर्बला पहुंचा तो यजीद ने सरपरस्ती मानने का प्रस्ताव रख दिया, मानने से उन्होंने मना कर दिया. हुसैन और उनके परिवार के सदस्य व साथी कर्बला के जंगल में ठहरे थे. बताया जाता है कि यजीद ने उनके काफिले को घेरे में ले लिया और पानी तक बंद कर दिया. फिर भी हुसैन नहीं माने तो यजीद ने खुली जंग की घोषणा कर दी.
वह 10 मुहर्रम की सुबह थी. इमाम हुसैन नमाज पढ़ रहे थे, तभी यजीद की फौज ने उनकी ओर तीरों से हमला शुरू कर दिया. इस पर हुसैन के साथी तीरों के आगे ढाल बन गए. साथियों के जिस्म छलनी होते गए, फिर भी इमाम हुसैन ने अपनी नमाज पूरी की. दिन ढलते-ढलते इमाम हुसैन की ओर से 72 लोग शहीद हो गए. इनमें खुद इमाम हुसैन, छह माह के बेटे अली असगर और 18 साल के अली अकबर के अलावा सात साल के भतीजे कासिम भी थे. शिया मुसलमान इमाम हुसैन और उनके रिश्तेदारों पर हुए जुल्म को याद करने के लिए हर साल मुहर्रम के दौरान मातम मनाते हैं. इसकी 10वीं तारीख को आशूरा कहा जाता है. इसी दिन मातमी जुलूस निकाला जाता है.
हुमायूं के शासन काल में हुई थी शुरुआत
भारत में मुस्लिमों का शासन शुरू हुआ तो ज्यादातर शासक सुन्नी थे. शियाओं की संख्या कम थी. इसलिए शुरू के इतिहास में मुहर्रम का जिक्र न के बराबर मिलता है. मुगल शासनकाल से शियाओं का जिक्र सामने आता है. साल 1540 में शेरशाह सूरी ने चौसा की जंग में हुमायूं को हराया तो उसने काबुल में शरण लेनी चाही. वहां हुमायूं के भाई कामरान मिर्जा ने उसको गिरफ्तार करने की कोशिश की तो हुमायूं को भागकर पर्शिया (ईरान) जाना पड़ा. शिया बहुल ईरान के शाह तहमस्प ने हुमायूं से सुन्नी से शिया बनने को कहा. हुमायूं शिया तो नहीं बना पर उसने बाहर से शिया पंथ के लिए उदारता दिखानी शुरू कर दी.
इसके बाद ईरान के शाह की ही मदद से हुमायूं दोबारा दिल्ली का बादशाह बना और दिल्ली में शियाओं की संख्या भी बढ़ती गई. ईरान के शाह ने हुमायूं को बड़ी फौज दी थी, जिसमें ज्यादातर शिया सैनिक थे. ये सैनिक हिन्दुस्तान में बस गए और शियाओं ने अपनी धार्मिक परंपराओं का पालन शुरू किया. इससे यहां पर भी मुहर्रम मनाने और जुलूस निकालने की शुरुआत हुई.
औरंगजेब ने इसलिए लगाया था प्रतिबंध
हुमायूं के बाद अकबर बादशाह बना तब भी यह परंपरा जारी रही. जहांगीर की बेगम नूरजहां और शाहजहां की पत्नी मुमताज महल भी शिया थीं. तब भी मुहर्रम मनाया जाता रहा. शाहजहां के बाद औरंगजेब का शासन शुरू हुआ, जिसे दूसरे धर्मों के प्रति असहिष्णुता के लिए जाना जाता है. बताया जाता है कि औरंगजेब के शासन काल में कई जगहों पर मुहर्रम के जुलूस में शिया-सुन्नी में दंगे हो गए थे. इसी के चलते साल 1669 में बादशाह औरंगजेब ने जुलूस पर बैन लगा दिया था.