वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को बजट पेश किया. इस बार के बजट में उन्होंने कैंसर की तीन दवाओं पर से कस्टम ड्यूटी हटाने की घोषणा की है. वित्त मंत्री ने कहा कि दवाओं पर कस्टम ड्यूटी में छूट मिलने से कैंसर के इलाज में मरीजों को आसानी होगी. कैंसर की जिन दवाओं पर छूट दी गई है उनकी बाजार में कितनी खपत है. इनका यूज किस कैंसर में किया जाता है और ये कितनी सस्ती होंगी. यह सब जानने के लिए हमने एक्सपर्ट्स से बातचीत की है.
कैंसर की जिन तीन दवाओं पर कस्टम ड्यूटी पर छूट दी गई है. उनमें पहली दवा ट्रैस्टुज़ुमैब डेरक्सटेकन है. यह एक एंटीबॉडी-ड्रग है, जिसका यूज एचईआर 2-पॉजिटिव ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में किया जाता है. इसका इस्तेमाल तब किया जाता है जब ब्रेस्ट कैंसर शरीर के अन्य भागों में फैल जाता है. गैस्ट्रिक कैंसर में भी इस दवा का यूज किया जा रहा है. दूसरी दवा का नाम ओसिमर्टिनिब है. यह एक टारगेटेड थेरेपी है जिसका यूज फेफड़ों के कैंसर (एनएससीएलसी) के इलाज के लिए किया जाता है. तीसरी दवा का नाम ड्यूरवैलुमैब है. यह एक इम्यूनोथेरेपी दवा है जो पीडी-एल1 प्रोटीन को रोकने का काम करती है, जिससे इम्यून सिस्टम को कैंसर सेल्स पर हमला करने में मदद मिलती है. इसका यूज नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर (एनएससीएलसी) में किया जाता है.
फिलहाल कितनी है दवाओं कीमत?
ट्रैस्टुज़ुमैब डेरक्सटेकन दवा को अमेरिका से मंगाना पड़ता है. इसको ऐस्ट्राजेनेका ने बनाया है. इसकी कीमत 2 से तीन लाख रुपये के आसपास पड़ती है. वहीं, ओसिमर्टिनिब की कीमत 1 से डेढ़ लाख रुपये तक है. ड्यूरवैलुमैब की बाजार में दो डोज कीमत 1 से 1.5 लाख रूपये के बीच पड़ती है. ऑनलाइन दवा विक्रेताओं के मुताबिक, इन तीनों दवाओं की कीमत ब्रांड के नाम के हिसाब से कम या इससे ज्यादा हो सकती है.
सर गंगाराम अस्पताल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी के चेयरमैन डॉ. श्याम अग्रवाल ने बताया कि जो दवाएं विदेश से मंगवाई जाती है, उनकी कीमत बहुत अधिक होती है. कस्टम ड्यूटी हटाने के बाद यह सस्ती हो जाएंगी. इससे मरीजों को काफी फायदा मिलेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि ये दवाएं ब्रेस्ट और लंग्स कैंसर के इलाज में यूज की जाती है. इन दोनों कैंसर के मामले ही भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं.
छूट के बाद कितने रुपये की होंगी ये दवाएं
सीके बिड़ला अस्पताल में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग में डायरेक्टर डॉ मनदीप सिंह मल्होत्रा बताते हैं कि कस्टम ड्यूटी में छूट मिलने से यह दवाएं 10 से 20 फीसदी तक सस्ती हो सकती हैं. उदाहरण के तौर पर अगर कोई व्यक्ति ट्रैस्टुज़ुमैब डेरक्सटेकन की एक डोज 2 लाख रुपये में खरीद रहा था तो कस्टम ड्यूटी हटने के बाद उसकी कीमत 1 लाख 60 हजार रुपये तक हो सकती है.
इसी तरह की अन्य दवाओं की कीमत में कमी आएगी, हालांकि लागत में सटीक कमी मौजूदा कस्टम ड्यूटी की दरों और इम्पोर्ट टैक्स जैसी अन्य संबंधित लागतों पर निर्भर करेगा. लेकिन कस्टम ड्यूटी हटने के बाद कैंसर मरीजों पर आर्थिक बोझ कम होगा. पहले की तुलना में अधिक लोग इलाज करा सकेंगे.
मरीजों पर कितना होता है इस्तेमाल
स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ और कैंसर सर्जन डॉ अंशुमान कुमार बताते हैं कि इन तीनों दवाओं को काफी डॉक्टर लिखते हैं. यह दवाएं ब्रेस्ट और लंग्स कैंसर के इलाज में ज्यादा यूज की जाती हैं. बीते कुछ सालों में इन दवाओं की भारत में खपत काफी बढ़ी है. ऐसे कई डॉक्टर हैं जो इन दवाओं को मरीजों के लिए लिखते हैं. हालांकि इनका कैंसर के ट्रीटमेंट पर कितना प्रभाव है इसपर अभी और भी रिसर्च करने की जररूत है.
डॉ अंशुमान कहते हैं कि दवाओं के मामलों में भारत को आत्मनिर्भर बनना होगा. विदेशी कंपनी की जगह भारतीय कंपनियों को दवा बनाने पर फोकस करना होगा. इससे लोगों को काफी फायदा होगा. इसके लिएस्वास्थ्य के क्षेत्र में बजट को और बढ़ाने की जरूरत है. दवाओं के रिसर्च और डेवलपमेंट पर बजट का आंवटन बढ़ना चाहिए. इससे देश में ही कई प्रकार की दवाओं को बनाने का रास्ता साफ हो सकेगा. इससे मरीजों को भी फायदा मिलेगी. जो दवाएं भारत में बनेंगी वह विदेशी दवाओं की तुलना में सस्ती होगी.