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‘बुलडोजर जस्टिस मंजूर नहीं, कहीं सभ्य समाज में ऐसा नहीं होता’, अपने आखिरी जजमेंट में बोले CJI डी वाई चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल के आखिरी फैसले में ‘बुलडोजर जस्टिस’ की कड़ी निंदा की. सीजेआई ने कहा कि ‘कानून के शासन के तहत बुलडोजर न्याय बिल्कुल अस्वीकार्य है. अगर इसे अनुमति दी गई तो अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता एक डेड लेटर बनकर रह जाएगी.’

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सीजेआई ने अपने जजमेंट में कहा, ‘बुलडोजर के माध्यम से न्याय न्यायशास्त्र की किसी भी सभ्य प्रणाली के लिए ठीक नहीं है. गंभीर खतरा है कि अगर राज्य के किसी भी विंग या अधिकारी द्वारा गैरकानूनी व्यवहार की अनुमति दी जाती है, तो बाहरी कारणों से नागरिकों की संपत्तियों को चुनिंदा प्रतिशोध के रूप में ध्वस्त कर दिया जाएगा.’

‘घरों को तोड़कर आवाज को नहीं दबाया जा सकता’

उन्होंने कहा कि नागरिकों की आवाज को उनकी संपत्तियों और घरों को नष्ट करने की धमकी देकर दबाया नहीं जा सकता. एक इंसान के पास सर्वाधिक सुरक्षा के रूप में अगर कुछ होता है तो वह है घर. हम सुरक्षा उपायों की कुछ न्यूनतम सीमाएं निर्धारित करने का प्रस्ताव करते हैं जिन्हें नागरिकों की संपत्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले पूरा किया जाना चाहिए.

‘बुलडोजर न्याय बिल्कुल अस्वीकार्य’

जजमेंट में कहा गया, ‘अवैध अतिक्रमणों या अवैध निर्माण को हटाने के लिए कार्रवाई करने से पहले राज्य को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए. कानून के शासन के तहत बुलडोजर न्याय बिल्कुल अस्वीकार्य है. यदि इसकी अनुमति दी गई तो अनुच्छेद 300ए के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता एक डेड लेटर बनकर रह जाएगी.’

‘अधिकारियों के खिलाफ होनी चाहिए कार्रवाई’

सीजेआई ने कहा, ‘अधिकारी जो इस तरह की गैरकानूनी कार्रवाई को अंजाम देते हैं या मंजूरी देते हैं, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए. उनके द्वारा कानून का उल्लंघन करने पर आपराधिक प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. सार्वजनिक अधिकारियों के लिए सार्वजनिक जवाबदेही होनी चाहिए. सार्वजनिक या निजी संपत्ति के संबंध में कोई भी कार्रवाई कानून की उचित प्रक्रिया द्वारा समर्थित होनी चाहिए.’

यूपी सरकार को 25 लाख का मुआवजा देने का निर्देश

सर्वोच्च अदालत ने 2019 में उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में एक घर को ध्वस्त करने से संबंधित मामले में अपना फैसला सुनाया. यह मानते हुए कि राज्य द्वारा अपनाई गई पूरी प्रक्रिया ‘क्रूर’ थी, पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को अंतरिम उपाय के रूप में याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया, जिसका घर एक सड़क परियोजना के लिए तोड़ दिया गया था.

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