बिहार के बक्सर जिले के ब्रह्मपुर प्रखंड का रघुनाथपुर गांव, जहां रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की पावन स्मृतियां आज भी अमर हैं .यही वह तपोभूमि है जहां तुलसीदास जी ने न सिर्फ रामकथा का प्रसार किया, बल्कि मानस के कुछ अंशों की रचना भी की. अब इस ऐतिहासिक स्थल को धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की मांग जोर पकड़ रही है.
स्थानीय सामाजिक संगठन तुलसी विचार मंच के संयोजक शैलेश ओझा ने बताया, ”यह स्थल न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से, बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. रघुनाथपुर का पुराना नाम बेला पतवत था. गांव के दक्षिणी हिस्से में स्थित एक छोटे से राम मंदिर को देखकर गोस्वामी तुलसीदास इस अरण्य वातावरण में प्रवास करने लगे थे. यही नहीं, उन्होंने यहां बोधिवृक्ष के नीचे साधना करते हुए रामकथा का वाचन भी शुरू किया.”
गोस्वामी तुलसीदास के नाम से दर्ज है जमीन
ग्रामीणों का मानना है कि जमींदार रघुनाथ सिंह ने तुलसीदास जी को इस स्थल पर चार एकड़ भूमि दान में दी थी. यह दावा केवल जनश्रुति तक सीमित नहीं है, बल्कि वर्ष 1910 और 1970 के सर्वे खतियान और मालगुजारी रसीदों में भी गोस्वामी तुलसीदास के नाम से भूमि दर्ज है. 2025 तक की अपडेट रसीदें इस बात की पुष्टि करती हैं.
इस जमीन का अभिभावक पुजारी राम कृपा दास को माना गया है.
स्थानीय लोग हर वर्ष मालगुजारी भरते हैं.
स्थानीय ग्रामीणों के मुताबिक रघुनाथपुर से 2 किलोमीटर दक्षिण राजपुर गांव में भी तुलसीदास जी के नाम से 9 बीघा जमीन थी.
राजपुर गांव में इन जमीनों पर अवैध अतिक्रमण हो चुका है.
लेखक द्वारकाधीश प्रसाद ने भी जमीन का किया जिक्र
‘गोस्वामी तुलसी दास जीवन दर्शन’ के लेखक द्वारकाधीश प्रसाद ने भी अपनी पुस्तक में इस बात का उल्लेख किया है. पुस्तक के एक अंश के अनुसार तुलसीदास के नाम पर भोजपुर जिले के राजपुर गांव में 9 बीघा खेत था, जो उनकी मृत्यु के पश्चात उनके शिष्य बनवारी दास को मिला. मुगलों के आक्रमण से गांव बर्बाद हुआ तो ये परिवार दूसरे गांव चला गया. बाद में इस जमीन पर लोगों ने अवैध कब्जा जमा लिया
धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग
इसी पावन स्थल पर दो दिवसीय तुलसी जयंती समारोह भी आयोजित किया जाता है, जिसमें रामकथा, संगीतमय सुंदरकांड पाठ और विचार गोष्ठी का आयोजन होता है.
स्थानीय लोगों और तुलसी विचार मंच के सदस्यों ने पर्यटन विभाग को ज्ञापन सौंपकर इस स्थल को रामायण सर्किट में शामिल कर धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने, मानस ग्रंथालय की स्थापना करने और तुलसीदास जी की भव्य प्रतिमा स्थापित करने की मांग की है.
आश्रम परिसर में ही ग्रामीणों द्वारा बनवाया गया महाकाल मंदिर धार्मिक गतिविधियों का एक नया केंद्र बन गया है, जिससे यहां की आस्था और धार्मिक पर्यटन की संभावनाएं और भी प्रबल हो गई हैं.