भारत के ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए बड़ा अपडेट सामने आया है. ब्यूरो ऑफ़ एनर्जी एफिशिएंसी (BEE) ने कैफ़े 3 (Corporate Average Fuel Efficiency) नॉर्म्स का संशोधित ड्राफ्ट जारी किया है. जिसमें अप्रैल 2027 से औसत कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) उत्सर्जन मानकों को और कड़ा करने का प्रस्ताव रखा गया है. दिलचस्प बात यह है कि जहां कंपनियों पर कड़े लक्ष्य तय किए गए हैं, वहीं 4 मीटर से छोटी पेट्रोल कारों को राहत देने की भी व्यवस्था की गई है. इसके अलावा इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) और रेंज-एक्सटेंडर हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों को विशेष प्रोत्साहन दिया गया है.
क्या है नया प्रस्ताव?
पिछले साल जारी ड्राफ्ट में CAFE 3 के तहत औसत CO2 उत्सर्जन सीमा को वर्तमान CAFE 2 नियमों के 113 ग्राम CO2/किमी से घटाकर 91.7 ग्राम CO2/किमी करने का प्रस्ताव था. हालांकि, नए ड्राफ्ट में यह सीमा और सख्त कर दी गई है. पहले साल में यह 88.4 ग्राम CO2/किमी होगी, जिसके बाद अगले वर्षों में यह क्रमशः 84.7 ग्राम, 81.9 ग्राम, 76.4 ग्राम और 71.5 ग्राम तक कम होगी. यानी हर साल क्रमिक रूप से उत्सर्जन सीमा घटाई जाएगी.
साल-दर-साल CO₂ उत्सर्जन की सीमा:
- 2027 में: 88.4 g/km
- 2028 में: 84.7 g/km
- 2029 में: 81.9 g/km
- 2030 में: 76.4 g/km
- 2031 में: 71.5 g/km
सब-4 मीटर पेट्रोल कारों को राहत
नए ड्राफ्ट में सब-4 मीटर पेट्रोल वाहनों के लिए विशेष राहत दी गई है. जिन वाहनों का वजन 909 किलोग्राम तक, इंजन क्षमता 1200 सीसी तक और लंबाई 4000 मिमी से कम है उन्हें विशेष लाभ मिलेगा. इन कारों को कॉर्पोरेट एवरेज फ्यूल एफिशिएंसी (CAFE 3) नियमों के तहत कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन की गणना में 3 ग्राम का लाभ दिया गया है.
इन कारों को सीधा फायदा
छोटे कारों से जुड़े नए अपडेट का सबसे अधिक लाभ उन ब्रांड्स को मिलेगा, जिनके पोर्टफोलियो में सब-4 मीटर वाली छोटी कारें सबसे ज्यादा हैं. जैसे मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स और हुंडई. मारुति सुजुकी को सबसे ज्यादा फायदा होगा, खासकर स्विफ्ट, वैगनआर, आल्टो K10, डिजायर, बलेनो और अन्य मॉडलों के लिए नया नियम थोड़ी फ्लेक्सिबिलिटी देगा. वहीं, टाटा और हुंडई अपने-अपने पोर्टफोलियो में शामिल मॉडल्स जैसे टियागो, टिगोर, पंच, i10, एक्स्टर और अन्य से इस नियम का लाभ उठा सकेंगे.
EV और हाइब्रिड गाड़ियों के प्रोत्साहन का कैलकुलेशन
नए ड्राफ्ट में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को बढ़ावा देने के लिए क्रेडिट सिस्टम का प्रस्ताव रखा गया है. इसके तहत कंपनियां हाई-इमिशन वाली गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण के प्रभाव को बैलेंस करने के लिए ऐसे वाहनों को ज्यादा वेटेज देंगी जो कम या बिल्कुल प्रदूषण नहीं फैलाते हैं. जैसे इलेक्ट्रिक वाहन या हाइब्रिड वाहन.
यह सिस्टम इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, रेंज-एक्सटेंडर हाइब्रिड, फ्लेक्स-फ्यूल (इथेनॉल) और स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड वाहनों को अतिरिक्त “वेटेज” देता है. इन क्रेडिट्स का उपयोग कंपनी के कुल औसत CO₂ परफॉर्मेंस की गणना में मल्टिप्लायर के रूप में किया जाता है.
नए प्रस्ताव के अनुसार, एक बैटरी इलेक्ट्रिक व्हीकल या एक रेंज-एक्सटेंडर हाइब्रिड को इस सिस्टम में औसतन 3 वाहनों के बराबर माना जाएगा. एक प्लग-इन हाइब्रिड या स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन को 2.5 वाहन माना जाएगा. वहीं, एक स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड को 2 वाहन और एक फ्लेक्स-फ्यूल (इथेनॉल) वाहन को 1.5 वाहन के बराबर गिना जाएगा.
संक्षेप में समझें ये कैलकुलेशन
- 1 बैटरी EV या रेंज-एक्सटेंडर हाइब्रिड = 3 वाहन
- 1 प्लग-इन हाइब्रिड या स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड = 2.5 वाहन
- 1 स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड = 2 वाहन
- 1 फ्लेक्स-फ्यूल (इथेनॉल) वाहन = 1.5 वाहन
सरकार का मानना है कि, इससे न केवल प्रदूषण को कंट्रोल किया जा सकेगा, बल्कि इससे कंपनियों को EV और हाइब्रिड मॉडल्स लॉन्च करने की अधिक प्रेरणा मिलेगी.
तीन कंपनियां बना सकेंगी कॉम्प्लायंस पूल
इस ड्राफ्ट में एक और अहम प्रावधान यह है कि अधिकतम तीन OEMs (निर्माता कंपनियां) मिलकर कॉम्प्लायंस पूल बना सकती हैं. इस पूल की औसत CO₂ परफॉर्मेंस संयुक्त बिक्री पर आधारित होगी. यदि मानक पूरे नहीं हुए तो ज़िम्मेदारी पूल मैनेजर पर होगी.
क्यों ज़रूरी हैं ये नॉर्म्स?
CAFE नॉर्म्स का मक़सद किसी एक कार नहीं, बल्कि पूरी कंपनी के मॉडल लाइनअप को फ्यूल इफिशिएंट और पर्यावरण अनुकूल बनाना है. यानी यदि कोई कंपनी बड़ी ऐसे वाहन बेचती है जिससे ज्यादा प्रदूषण फैलने का डर है. तो उसे उनकी भरपाई के लिए अधिक इलेक्ट्रिक वाहन(EV) या हाइब्रिड्स भी बाज़ार में लाने होंगे.
क्या होता है CAFE नॉर्म्स?
कॉर्पोरेट एवरेज फ्यूल इफिसिएन्सी जिसे संक्षिप्त रूप में (CAFE) भी कहा जाता है. ये एक सरकारी नियम है जो किसी भी वाहन के लिए एक मिनिमम या औसत फ्यूल इफिसिएन्सी तय करता है. जिसे कार निर्माता द्वारा बेचे जाने वाले सभी वाहनों को पूरा करना होता है. आसान भाषा में समझें तो यह कार के माइलेज को तय करने का एक मानक है. यह नियम कंपनियों को अपने बेचे जाने वाले सभी मॉडलों की फ्यूल इकोनॉमी का औसत निकालकर हाई इफिसिएंसी वाली कारों का निर्माण करने में मदद करता है.
कब शुरु हुआ CAFE स्टैंडर्ड?
CAFE स्टैंडर्ड पहली बार सरकार द्वारा ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत 2017 में जारी किए गए थें, ताकि ईंधन की खपत को कम करते हुए कार्बन (CO₂) उत्सर्जन को कम किया जा सके. इसका उद्देश्य फॉसिल फ्यूल पर निर्भरता और वायु प्रदूषण को कम करना है. इसका पहला फेज साल 2017-18 से शुरू हुआ था.
माइलेज और कार्बन उत्सर्जन पर कितनी सख्ती?
पहले फेज यानी प्रथम चरण के तहत सभी वाहन निर्माताओं के लिए कारों का औसत वजन 1037 किलोग्राम और ईंधन खपत औसतन 5.49 लीटर/100 किमी से कम होना चाहिए. यानी आसान शब्दों में वाहन कम से कम 18 किमी प्रतिलीटर तक का माइलेज देना चाहिए.
वहीं दूसरे फेज को 2022-23 से शुरू माना जाता है. इस फेज में सरकार मानकों को और सख्त किया है. जिसके तहत कारों का औसत वजन 1,082 किग्रा और ईंधन की खपत 4.78 लीटर/100 किमी से कम होना चाहिए. यानी लगभग 20 किमी प्रतिलीटर तक का माइलेज. इसके अलावा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन प्रति किमी 113 ग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए.