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क्या RSS में महिला सर-संघचालक हो सकती है, क्या करती है राष्ट्रीय सेविका समिति?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर लिए हैं. इस मौके पर पूरे देश में अनेक आयोजन हो रहे है. वर्ष 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में इसकी स्थापना की थी. प्रारम्भिक दौर से ही संघ स्वयं को एक सिद्धांत आधारित सांस्कृतिक संगठन के रूप में प्रस्तुत करता रहा है, जिसने भारतीय समाज जीवन को संगठित राष्ट्र जीवन की दिशा में प्रेरित करने का प्रयास किया.

लेकिन एक प्रश्न प्रायः उठता है कि क्या संघ में महिलाओं की भी उतनी ही प्रत्यक्ष भूमिका है जितनी पुरुषों की? क्या कभी कोई महिला इस संगठन का सर्वोच्च पद, यानी सर संघचालक हो सकती है? आइए, इन सवालों को हल करने की कोशिश करते हैं.

महिला संगठनों की पृष्ठभूमि

संघ की गतिविधियां परंपरागत रूप से शाखा पद्धति पर आधारित रही हैं. शाखाएं प्रतिदिन पार्कों और मैदानों में लगती हैं, जिनमें शारीरिक, बौद्धिक और सांस्कृतिक प्रशिक्षण दिया जाता है. प्रारंभिक वर्षों में इन शाखाओं में केवल पुरुष और युवा लड़के ही आते थे, क्योंकि तत्कालीन सामाजिक संरचना में महिलाओं की सार्वजनिक भागीदारी अपेक्षाकृत सीमित थी.

स्थापना के 11 वर्ष बाद हुआ राष्ट्रीय सेविका समिति का गठन

स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक सुधारों के प्रभाव से महिलाएं शिक्षा और समाज सेवा में सक्रिय होने लगीं. इसी पृष्ठभूमि में सन् 1936 में राष्ट्रीय सेविका समिति का गठन हुआ. यह संगठन सीधे तौर पर महिलाओं के लिए बना, जिसके सिद्धांत संघ के अनुरूप थे, लेकिन यह स्वतंत्र रूप से महिलाओं द्वारा संचालित हुआ.

राष्ट्रीय सेविका समिति की भूमिका

इसका उद्देश्य महिलाओं को राष्ट्र निर्माण, समाज सेवा, परिवार प्रबंधन और सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण में प्रशिक्षित करना है. इस समिति की शाखाओं में भी खेल, व्यायाम, योग, गीत, बौद्धिक चर्चा और देशभक्ति के कार्यक्रम होते हैं.

महिलाओं के हाथ में है समिति का संचालन

महत्वपूर्ण यह कि राष्ट्रीय सेविका समिति पूरी तरह से महिलाओं द्वारा संचालित है. इसकी प्रमुख को प्रमुख संचालिका कहा जाता है, और यही संगठन की सर्वोच्च पदाधिकारी होती हैं. इस प्रकार एक अलग लेकिन समानांतर मंच पर महिलाओं को नेतृत्व और प्रशिक्षण का अवसर दिया गया है.

क्या संघ में महिला “सर संघचालक” हो सकती हैं?

RSS का संविधान और उसकी परंपरा यह कहती है कि सर संघचालक पुरुष होता है. यह परंपरा अब तक एक रूप रही है. इसका कारण ऐतिहासिक और संगठनात्मक दोनों है.

ऐतिहासिक कारण

जब संघ की स्थापना हुई, तब सामाजिक परिपाटियां ऐसी थीं जिनमें पुरुष नेतृत्व को ही स्वाभाविक माना जाता था. महिला नेतृत्व की स्वीकृति बाद के दशकों में बढ़ी.

संगठनात्मक कारण

संघ और सेविका समिति दो समानांतर धाराओं के रूप में काम करते हैं. पुरुषों के लिए RSS है, और महिलाओं के लिए सेविका समिति. इस प्रकार संघ ने महिला नेतृत्व को सीधे अपने भीतर समाहित करने के बजाय, एक अलग मंच प्रदान किया.अर्थात्, निकट भविष्य में संघ स्वयं किसी महिला को सर संघचालक नहीं बना पाएगा, क्योंकि उसकी संगठनात्मक संरचना इस तरह से डिज़ाइन की गई है कि महिलाओं को उनका नेतृत्व उनके स्वयं के संगठनों से मिलता है.

आलोचना और विमर्श

कभी-कभी यह कहा जाता है कि संघ में महिलाओं को बराबरी का अवसर नहीं मिलता क्योंकि उन्हें अलग संगठन में भेज दिया जाता है. परंतु समर्थक यह तर्क देते हैं कि इससे महिलाएं अपने दृष्टिकोण के अनुसार बेहतर नेतृत्व विकसित कर सकती हैं और एक स्वतंत्र मंच पर कार्य कर सकती हैं.

एक दृष्टिकोण यह भी है कि महिलाओं के संगठन ने समाज में महिला सशक्तिकरण और राष्ट्रवादी चेतना के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. वे केवल सामाजिक या परिवारिक मुद्दों तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि शिक्षा, राजनीति और नीति-निर्माण तक प्रभाव डाला है.

100 सालों की उपलब्धियां और महिला सहभागिता

सौ वर्षों की यात्रा में संघ परिवार के महिला संगठनों ने कई बड़े परिवर्तन देखे और कराए हैं:

  • शिक्षा का प्रसार: सेविका समिति और अन्य महिला संगठनों ने ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों तक शिक्षा पहुंचाने का काम किया.
  • संस्कृति और परंपरा: महिलाओं ने भारतीय कला, शास्त्रीय नृत्य, लोक गीत और मातृभाषा के संरक्षण में बड़ी भूमिका निभाई.
  • सामाजिक सेवा: प्राकृतिक आपदाओं और महामारी के समय सेविका समिति की कार्यकर्ताओं ने राहत कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाई.
  • राजनीतिक परोक्ष प्रभाव: संघ परिवार से प्रेरित कई महिलाओं ने राजनीति और प्रशासन में महत्वपूर्ण पद प्राप्त किए.

भविष्य की दिशा

जब संघ शताब्दी वर्ष मना रहा है, तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आने वाले दशकों में महिला नेतृत्व किस रूप में आगे बढ़ेगा. समाज बदल रहा है, शिक्षा और कार्यक्षेत्र में महिलाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं. हो सकता है कि आने वाले समय में संघ की परंपराएँ भी नए बदलाव देखें.

  • संयुक्त नेतृत्व का विचार: भविष्य में संभव है कि पुरुष और महिला संगठनों के बीच और अधिक संवाद व समन्वय स्थापित हो.
  • नेतृत्व की साझेदारी: यह भी भविष्य की संभावना हो सकती है कि संघ की सर्वोच्च समिति या निर्णय प्रक्रिया में महिला संगठनों के प्रतिनिधियों को औपचारिक स्थान दिया जाए.
  • नई पीढ़ी की अपेक्षा: आज की युवा पीढ़ी समान अवसर और समान प्रतिनिधित्व की ओर देखना चाहती है. यदि संघ इस दिशा में कदम बढ़ाता है, तो उसका सामाजिक प्रभाव और व्यापक हो सकता है.

संघ की सौ वर्षों की यात्रा यह दिखाती है कि संगठन ने समाज की बदलती जरूरतों के अनुसार स्वयं को ढाला है. महिलाओं के लिए अलग संगठन खड़ा करके उन्हें नेतृत्व का अवसर देना, शुरुआती दशकों में एक अभिनव प्रयोग था. परंतु 21वीं सदी की अपेक्षाएं अलग हैं.

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