गुलेइन-बैरे सिंड्रोम के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. पीड़ित लोगों में महिला, पुरुष और बच्चे भी शामिल हैं. खासकर बच्चों और बुजुर्ग में यह बीमारी जल्दी अटैक कर रही है.इस बीमारी में इम्यून सिस्टम अपने ही पेरिफेरल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है. इससे मरीज पैरेलाइजड हो जाता है और जान का खतरा भी बना रहता है. बैक्टीरिया और वायरस को इस बीमारी का अहम कारण माना जाता है. इसमें कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया सबसे आम माना जाता है.
ठंड के दिनों में जिस तरह पक्षियों में बर्ड फ्लू का खतरा रहता है. उसी तरह क्या चिकन खाने से जीबीएस सिंड्रोम हो सकता है. इस विषय ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है. ऐसे में एक्सपर्ट से जानते हैं कि क्या ऐसा हो सकता है.
डॉक्टर ने क्या बताया
लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में मेडिसिन विभाग में डॉ. सुभाष कुमार बताते हैं कि संक्रमित चिकन खाने से गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) होने का रिस्क बढ़ सकता है. हालांकि, जीबीएस एक ऑटोइम्यून बीमारी है, लेकिन इसको फैलाने वाला बैक्टीरिया कैम्पिलोबैक्टर जेजुन चिकन ( पोल्ट्री वाले मुर्गे) या मांस में पाया जाता है. अधजला और कच्चा खाने से बैक्टीरिया शरीर के भीतर चला जाता है और व्यक्ति बीमार पड़ जाता है. हालांकि, इस तरह का संक्रमण होने का रिस्क कम ही होता है, लेकिन ये इस बीमारी के फैलने का एक कारण हो सकता है.
जीबीएस के लक्षण
गुलेइन-बैरे सिंड्रोम के शुरुआती लक्षण पेट दर्द, दस्त, उल्टी हो सकते हैं. इसके बाद कमजोरी, झुनझुनी या पैरालाइसिस भी हो सकता है. इसकी शुरुआत हाथ-पैर से होती है.
अटैक का खतरा
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, यह बैक्टीरिया संक्रमित मुर्गे को खाने से हो सकता है. डब्ल्यूएचओ की मानें तो अधजला और बिना पकाएं चिकन खाने से यह रोग हो सकता है. जीबीएस से पीड़ित लोगों को मांसपेशियों में कमजोरी और अटैक का खतरा बढ़ सकता है. जीबीएस से पूरी तरह रिकवर होने में छह महीने तक का समय लग सकता है. जीबीएस को इम्यून ग्लोबुलिन या प्लाज्मा एक्सचेंज करके नियंत्रित किया जा सकता है.