कार एक्स-शोरूम प्राइस में सस्ती, ऑन रोड में महंगी! जानिए कहां जाता है ये पैसा?

जब आप एक नई कार या बाइक खरीदने की योजना बनाते हैं, तो आप अक्सर दो अलग-अलग कीमतों के बारे में सुनते हैं: एक्स-शोरूम प्राइस और ऑन-रोड कीमत. ये दोनों ही टर्म वाहन के प्राइस को दिखाते हैं, लेकिन इनमें अंतर होता है.

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ये समझना जरूरी है कि ये कीमतें क्या हैं, इनमें क्या शामिल होता है और एक्स-शोरूम कीमत से अधिक होने वाला पैसा कहां जाता है? आज हम आपको इस खबर के माध्यम से बताने जा रहे हैं कि इन दोनों में कितना अंतर होता है.

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एक्स-शोरूम कीमत क्या है?

एक्स-शोरूम प्राइस वो बेसिक कीमत होती है, जो वाहन निर्माता या डीलर द्वारा तय की जाती है. ये वो कीमत है, जो शोरूम में गाड़ियों के लिए विज्ञापनों, ब्रोशर या ऑनलाइन लिस्टिंग में दिखाई देती है. इसमें कुछ चार्ज शामिल होते हैं.

मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट: इसमें वाहन के प्रोडक्शन, रिसर्च एंड डेवलपमेंट और लॉजिस्टिक्स की लागत शामिल होती है. ये वो अमाउंट है, जो निर्माता ने वाहन को बनाने में खर्च की है.

GST : भारत में कारों पर 28% जीएसटी लागू होता है (इलेक्ट्रिक वाहनों पर 5-18% तक). ये टैक्स एक्स-शोरूम कीमत में शामिल होता है.

डीलर का मार्जिन: डीलर अपने परिचालन खर्चों, कर्मचारी वेतन और मुनाफे के लिए 2-5% तक का मार्जिन जोड़ता है. इसी वजह से अलग-अलग शहर में एक्स शोरूम कीमत भी कम-ज्यादा होती है.

उदाहरण के लिए अगर किसी कार की एक्स-शोरूम कीमत 7 लाख रुपए है, तो इसमें निर्माता की लागत, जीएसटी और डीलर का मार्जिन शामिल होता है. हालांकि ये कीमत वाहन को सड़क पर चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि इसमें कई अनिवार्य और वैकल्पिक चार्ज लगने अभी बाकी रहते हैं.

ऑन-रोड कीमत क्या है?

ऑन-रोड कीमत वो कुल अमाउंट है, जो आपको वाहन को शोरूम से घर लाने और इसे कानूनी रूप से सड़क पर चलाने के लिए चुकानी पड़ती है. ये एक्स-शोरूम कीमत से हमेशा अधिक होती है, क्योंकि इसमें कई अतिरिक्त चार्ज और टैक्स शामिल होते हैं.

रोड टैक्स: ये राज्य सरकार द्वारा लगाया जाने वाला टैक्स है, जो एक्स-शोरूम कीमत का 4-15% हो सकता है. ये राज्य दर राज्य और वाहन के प्रकार (पेट्रोल, डीजल, इलेक्ट्रिक) के आधार पर अलग-अलग होता है. उदाहरण के लिए, दिल्ली में 10 लाख रुपए से कम कीमत वाली कारों पर 10% और उससे अधिक कीमत वाली कारों पर 12.5% रोड टैक्स लगता है.

रजिस्ट्रेशन फीस: भारत में हर वाहन को क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO) में रजिस्टर्ड करना अनिवार्य है. इस प्रक्रिया में नंबर प्लेट और पंजीकरण प्रमाणपत्र (RC) प्राप्त करने की लागत शामिल होती है. ये टैक्स वाहन के इंजन साइज और राज्य के आधार पर 5,000 से 20,000 रुपए तक हो सकता है.

इंश्योरेंस अमाउंट: मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अनुसार कम से कम थर्ड-पार्टी बीमा हर वाहन के लिए अनिवार्य है. इसके अलावा, व्यापक (कॉम्प्रिहेंसिव) बीमा भी लिया जा सकता है, जो दुर्घटना, चोरी और प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करता है. बीमा प्रीमियम वाहन की कीमत, मॉडल और ड्राइविंग हिस्ट्री पर निर्भर करता है, जो आमतौर पर एक्स-शोरूम कीमत का 2-3% हो सकता है.

हैंडलिंग और लॉजिस्टिक चार्ज : कुछ डीलर वाहन को फैक्ट्री से शोरूम तक लाने या ग्राहक को डिलीवर करने के लिए अतिरिक्त चार्ज लेते हैं. ये चार्ज वैकल्पिक होते हैं और डीलर के साथ बातचीत के जरिए कम किए जा सकते हैं.

टैक्स कलेक्टेड एट सोर्स (TCS): 10 लाख रुपए से अधिक कीमत वाली कारों पर डीलर 1% TCS वसूलता है, जो सरकार को जाता है. कुछ राज्यों में डीजल वाहनों पर 25% तक ग्रीन सेस लगाया जाता है.

बाकी पैसा कहां जाता है?

एक्स-शोरूम और ऑन-रोड कीमत के बीच का अंतर कई अनिवार्य और वैकल्पिक चार्ज के कारण होता है.

सरकारी खजाने में: रोड टैक्स, जीएसटी, TCS और ग्रीन सेस जैसे टैक्स सीधे केंद्र या राज्य सरकार को जाते हैं. ये टैक्स रोड मेंटेनेंस, पर्यावरण संरक्षण और अन्य पब्लिक सर्विस के लिए उपयोग किए जाते हैं. पंजीकरण शुल्क RTO को जाता है, जो वाहन के रजिस्ट्रेशन और नंबर प्लेट जारी करने के लिए उपयोग होता है. बीमा प्रीमियम इंश्योरेंस प्रोवाइडर को जाता है, जो वाहन और थर्ड पार्टी को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए जिम्मेदार होता है.

डीलरशिप: हैंडलिंग फीस, एक्सेसरीज और मेंटेनेंस पैकेज की लागत डीलर को जाती है. हालांकि, कुछ मामलों में ये पैसा बातचीत के जरिए कम किए जा सकते हैं.इस तरह, ऑन-रोड कीमत एक्स-शोरूम कीमत से लगभग 17% अधिक हो सकती है. हालांकि, ये महज एक उदाहरण है. ऑन-रोड और एक्स-शोरूम कीमत शहर व डीलरशिप के हिसाब से कम ज्यादा होती है.

कीमत को कैसे कम कराएं

एक्स शोरूम और ऑन रोड प्राइस के बीच के अंतर को कम कराया जा सकता है. इसमें इंश्योरेंस अमाउंट, एक्सेसरी की कीमत और तमाम चीजें शामिल है. हमेशा ऑन-रोड कीमत को ध्यान में रखकर बजट बनाएं, क्योंकि यही वो अमाउंट है, जो आपको वास्तव में चुकाना होगा.

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