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पुणे पोर्श कांड के आरोपी के पिता और दादा समेत 5 लोगों पर बिजनेसमैन को सुसाइड के लिए उकसाने का केस दर्ज, जानिए क्या है पूरा मामला

पुणे पोर्श कांड में आरोपी नाबालिग के पिता और दादा की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. अब एक व्यवसायी के बेटे को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में उनकी भूमिका सामने आने के बाद पुलिस ने किशोर के दादा-पिता और अन्य तीन आरोपियों के खिलाफ दर्ज मामले में आईपीसी की धारा 420 और 34 जोड़ दी है.

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पुलिस अधिकारी ने गुरुवार को कहा कि पुलिस ने 19 मई को पोर्श कार दुर्घटना में शामिल किशोर के पिता-दादा और अन्य तीन के खिलाफ पुणे के वडगांव शेरी इलाके में कंस्ट्रक्शन का व्यवसाय चलाने वाले एक व्यक्ति डीएस कतुरे ने चंदननगर थाने में विनय काले नाम के व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी.

शिकायत के अनुसार, डीएस कतुरे के बेटे शशिकांत कतुरे ने विनय काले से निर्माण काम के लिए 5% की दर पर लोन लिया था. वक्त पर लोन न चुका पाने के बाद काले ने कथित तौर पर मूल राशि में चक्रवृद्धि ब्याज जोड़ना शुरू कर दिया और शशिकांत कतुरे को परेशान करना शुरू कर दिया. उन्होंने बताया कि लगातार उत्पीड़न से तंग आकर शशिकांत ने 9 जनवरी, 2024 में आत्महत्या कर ली.

शिकायत मिलने के बाद आरोपी विनय काले के खिलाफ चंदननगर थाना पुलिस ने आईपीसी की धारा 306 और 506 के तहत मामला दर्ज किया था. पुलिस के अनुसार, इस मामले में जांच के बाद किशोर के पिता, दादा और तीन अन्य की भूमिका सामने आने पर पुलिस ने आत्महत्या के मामले में आईपीसी की धारा 420 और 34 जोड़ दी है.

हादसे में हुई 2 इंजीनियरों की मौत

वहीं, पुणे के कल्याणी नगर इलाके में नाबालिग ने नशे की हालत में पोर्श कार दौड़ाते हुए दोपहिया सवार दो आईटी इंजीनियरों को टक्कर मार दी. जिससे दोनों इंजीनियरों की मौत हो गई थी. इसी मामले में किशोर के दादा अपने परिवार के ड्राइवर के कथित अपहरण और गलत तरीके से कैद करने के आरोप में फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं, जिस पर पुलिस को यह बताने के लिए दबाव डाला गया था कि जब घातक दुर्घटना हुई तो वह गाड़ी चला रहा था. साथ ही इस मामले में 17 वर्षीय लड़के के पिता, रियल एस्टेट डेवलपर विशाल अग्रवाल और उसकी मां किशोर के ब्लड सैंपल की अदला-बदली से संबंधित एक मामले में इस वक्त पुलिस की हिरासत में हैं.

HC से लगाई रिहाई की गुहार

इस बीच किशोर के दादा ने गुरुवार को अपने वकील आशुतोष श्रीवास्तव के माध्यम से एक रिट याचिका के साथ बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कहा गया कि उन्हें गलत तरीके से हिरासत में लिया गया था और उनके परिवार के ड्राइवर के अपहरण और गलत तरीके से कैद करने से संबंधित मामले में झूठा फंसाया गया था.

याचिका में कहा गया है कि जांच अधिकारियों ने केवल आरोपों पर और पांच दिनों की अत्यधिक देरी के बाद प्रस्तुत शिकायत के आधार पर 77 वर्षीय वरिष्ठ नागरिक (किशोर के दादा) के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 42 ए के तहत अनिवार्य प्रक्रिया का पालन किए बिना मामला दर्ज किया.

डरा हुआ था ड्राइवर: याचिकाकर्ता

याचिका में यह भी कहा गया है कि जांच के बाद यरवदा पुलिस स्टेशन से 20 मई की रात करीब 11 बजे रिहा होने के बाद ड्राइवर को याचिकाकर्ता (किशोर के दादा) ने रिसीव किया था, क्योंकि वह डरा हुआ और उसकी जान को खतरा था. इसलिए ड्राइवर और याचिकाकर्ता दोनों ने आपसी सहमति से याचिकाकर्ता के घर जाने का फैसला किया. याचिकाकर्ता ने ड्राइवर और उसके परिवार की सुरक्षा का आश्वासन दिया.

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