चंद्रशेखर लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्षधर थे … उपराष्ट्रपति ने दी श्रद्धांजलि, कहा- उनके नाम से शुरू होगी फेलोशिप

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पुण्यतिथि के मौके पर उनकी समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित की. इस अवसर पर उन्होंने पूर्व पीएम चंद्रशेखर को “भारत माता के महानतम सपूतों में से एक” बताया. धनखड़ ने कहा, उन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए काम किया और ‘यंग तुर्क’ के रूप में अंतर दलिय लोकतंत्र सुनिश्चित करने के लिए पहचाने गए.

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उपराष्ट्रपति ने कहा, वो निर्भीक राजनेता थे. एक ऐसे नेता जो सच्चे मायनों में नेता जैसे काम करते थे. जब बात भारत की राष्ट्रीयता की आती थी, तो उन्होंने कभी भी अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता या आराम की परवाह नहीं की. उन्होंने हमें हमेशा गर्व महसूस करने का मौका दिया. वो भारत की एकता के प्रतीक थे. वो हमेशा विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ खड़े रहे. वे हमारे लिए एक मजबूत स्तंभ थे.

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चंद्रशेखर के राजनीतिक जीवन को किया याद

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने उनके राजनीतिक जीवन को याद करते हुए कहा, उनका राजनीतिक जीवन अनुपम रहा है. वो 1962 से 1977 तक 15 वर्षों तक राज्यसभा के सदस्य रहे. इसके बाद साल 2007 में दुनिया को अलविदा कहने तक, एक बार को छोड़कर, लगातार लोकसभा के सदस्य रहे. लेकिन वो समय भी उनके जीवन का सबसे अहम काल रहा, जब उन्होंने भारत की एकता के लिए सबसे प्रामाणिक पदयात्रा की थी. संसद में 40 वर्षों से भी अधिक का उनका कार्यकाल रहा, उन्होंने अपने जीवनकाल में संसद में सभी प्रधानमंत्रियों को देखा, कोई भी प्रधानमंत्री उनसे छूटा नहीं.

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने पूर्व पीएम चंद्रशेखर की स्मृति में व्याख्यान श्रृंखला शुरू करने की घोषणा करते हुए कहा, मुझे लोकसभा में उनके साथ सदस्य रहने का सौभाग्य हासिल हुआ. ऐसे महान भारत पुत्र, जो हमारी सभ्यतागत परंपराओं से निकली मूल्यों के प्रतीक थे, उनकी स्मृति में व्याख्यान श्रृंखला शुरू करना सबसे सार्थक काम होगा.

व्याख्यान श्रृंखला के लिए समिति का गठन

उपराष्ट्रपति ने आगे कहा, राज्यसभा सचिवालय इस दिशा में कदम उठाएगा. राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, जो एक प्रतिष्ठित पत्रकार और सक्षम सांसद हैं, उन्होंने पूर्व पीएम के साथ काम किया है और उन्हें करीब से जाना है. ऐसे में उनके नेतृत्व में इस व्याख्यान श्रृंखला के लिए समिति का गठन सबसे उचित होगा. मैंने यह निर्णय बहुत सोच-समझकर लिया है. उन सभी सदस्यों से परामर्श किया है, जो चंद्रशेखर जी को करीब से जानते थे. सभी इस पर सहमत थे. हरिवंश इस दिशा में सभी जरूरी कदम उठाएंगे.

उन्होंने आगे कहा, हरिवंश उचित सुझाव देंगे ताकि हम उनकी स्मृति में एक फेलोशिप भी शुरू करें. यह एकमुश्त फेलोशिप होगी, ताकि उनकी गतिविधियों और कार्यों का संकलन किया जा सके, उसे किताब के रूप में पब्लिश किया जा सके. यह भी उसी समिति द्वारा समन्वित किया जाएगा जो व्याख्यान श्रृंखला का संचालन करेगी.

उपराष्ट्रपति ने पुराने दिनों को किया याद

लोकसभा में चंद्रशेखर के साथ काम करने के अपने अनुभव को याद करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, यह समय है कि हमारे युवा यंग तुर्क के बारे में जानें, उस नेता के बारे में जानें जो लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए लड़ने वाले थे.

“पीएम पद से दिया था इस्तीफा”

उन्होंने आगे कहा, इमरजेंसी के समय जब वे सत्तारूढ़ दल के वरिष्ठ नेता थे, उन्हें जेल में डाला गया था. उन्होंने कभी भी राष्ट्र के लिए कोई समझौता नहीं किया. वे सबसे मुश्किल समय में प्रधानमंत्री बने. मैं कई अनमोल क्षण साझा करता हूं. मैं बहुत कनिष्ठ था, लेकिन मैंने उनकी रीढ़ की मजबूती को देखा जब उन्हें लगा कि उनके मूल्य समझौते की ओर जा रहे हैं.उन्होंने एक पल की भी देरी नहीं की. उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. जो किताब प्रकाशित होगी, उसमें मैं अपने व्यक्तिगत विचार भी शेयर करूंगा कि कैसे उन दिनों के प्रभावशाली लोगों ने उन्हें लोकसभा में इस्तीफा देने से रोकने की गंभीर कोशिश की. मैं खुद उस दिन लोकसभा में बैठा था जब नेता जी ने सीधे राष्ट्रपति भवन जाकर अपना त्यागपत्र सौंप दिया.

उपराष्ट्रपति ने कहा, आज जब भारत अभूतपूर्व तरक्की कर रहा है, जब भारत वैश्विक मंच पर एक नई पहचान बना रहा है, जब हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, जब हमने हाल ही में आतंकवादियों और दुश्मनों के खिलाफ सफल अभियान चलाया है, तब हमें चंद्रशेखर जी के मूल्य और आदर्शों की सबसे ज्यादा जरूरत है. चंद्रशेखर जी को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके मूल्यों पर विश्वास रखें, उनके आदर्शों को अपनाएं और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों में आस्था रखें.

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