Vayam Bharat

ISRO के वीनस ऑर्बिटर मिशन में चंद्रयान-1 का फॉर्मूला, एसिड वाले वायुमंडल में गिराया जाएगा खास यंत्र

भारत सरकार ने हाल ही में ISRO को अपने शुक्र ग्रह मिशन यानी Venus Orbiter Mission – VOM की अनुमति दे दी है. अब इसरो इसकी तैयारी में लग चुका है. इसरो चीफ डॉ. एस. सोमनाथ ने कहा कि शुक्रयान यानी वीनस ऑर्बिटर मिशन ठीक चंद्रयान-1 की तरह होगा. ऑर्बिटर ग्रह के चारों तरफ चक्कर लगाएगा.

Advertisement

इस ऑर्बिटर में से ही एक यंत्र यानी पेलोड शुक्र की सतह की तरफ गिराया जाएगा. जैसे साल 2008 में चंद्रयान-1 ने किया था. यह पेलोड शुक्र की एसिडिक सतह तक जाते-जाते उसके वायुमंडल की स्टडी करेगा. सोमनाथ ने कहा कि अगली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी, अगर हमने अपने आसपास के ग्रहों की स्टडी नहीं की.

इस तरह के मिशन से एक साइंटिफिक माहौल बनता है. कई खुलासे होते हैं. रूस और चीन भी 2028 तक शुक्र मिशन भेज रहे हैं. उसी समय लगभग भारत भी अपना मिशन भेजेगा. शुक्र हमारे ग्रह से नजदीक है. इसलिए इसकी स्टडी से नई जानकारियां मिलेंगी.

खास स्पेसक्राफ्ट तैयार होगा, कई तरह की स्टडी होगी

VOM में एक खास स्पेसक्राफ्ट तैयार किया जाएगा जो सिर्फ शुक्र ग्रह की स्टडी के लिए उसके चारों तरफ चक्कर लगाएगा. ताकि शुक्र ग्रह की सतह, उप-सतह, वायुमंडल, सूरज का प्रभाव आदि समझ सके. कहा जाता है कि एक समय शुक्र ग्रह रहने लायक ग्रह था लेकिन फिर वह बदल गया. इस बदलाव की भी स्टडी की जाएगी.

यह मिशन मार्च 2028 में लॉन्च किया जाएगा. क्योंकि उस समय शुक्र ग्रह धरती के नजदीक होगा. साथ ही इसके लिए सरकार ने 1236 करोड़ रुपए का फंड अप्रूव किया है. जिसमें से 824 करोड़ रुपए सिर्फ शुक्रयान स्पेसक्राफ्ट पर खर्च होगा.

शुक्र ग्रह के व्यवहार को समझना बेहद जरूरी

डॉ. एस सोमनाथ ने कहा था कि शुक्र के वायुमंडल और उसके एसिडिक व्यवहार को समझने के लिए जरूरी है वहां एक मिशन भेजना. ताकि वहां के वायुमंडलीय दबाव की स्टडी की जा सके. शुक्र ग्रह का वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी से 100 गुना ज्यादा है. हमें अभी तक यह नहीं पता कि इतने ज्यादा दबाव की वजह क्या है.

शुक्र के चारों तरफ जो बादलों की परत है. उसमे एसिड है. इसलिए कोई भी स्पेसक्राफ्ट उसके वायुमंडल को पार नहीं कर पाता. सौर मंडल की उत्पत्ति की जानकारी के लिए शुक्र की स्टडी जरूरी है. शुक्र और मंगल ग्रह लगभग एक जैसे ग्रह हैं. वहां कभी न कभी तो जीवन रहा होगा.

भारत का पहला शुक्र मिशन है शुक्रयान

28 में लॉन्चिंग नहीं हुई तो 2031 में बेहतरीन लॉन्च विंडो मिलेगा. शुक्रयान ऑर्बिटर मिशन है. यानी स्पेसक्राफ्ट शुक्र के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए स्टडी करेगा. इसमें कई साइंटिफिक पेलोड्स होंगे. लेकिन सबसे जरूरी दो पेलोड्स हैं- हाई रेजोल्यूशन सिंथेटिक अपर्चर रडार और ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार होंगे.

शुक्रयान अंतरिक्ष से शुक्र ग्रह की भौगोलिक सरंचना और ज्वालामुखीय गतिविधियों की स्टडी करेगा. उसके जमीनी गैस उत्सर्जन, हवा की गति, बादलों और अन्य चीजों की भी स्टडी करेगा. शुक्रयान एक अंडाकार कक्षा में शुक्र के चारों तरफ चक्कर लगाएगा.

चार साल तक करेगा शुक्र ग्रह की स्टडी

शुक्रयान मिशन की लाइफ चार साल की होगी. यानी इतने समय तक के लिए स्पेसक्राफ्ट बनाया जाएगा. उम्मीद जताई जा रही है कि शुक्रयान को GSLV Mark II रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा. शुक्रयान का वजन 2500 किलोग्राम होगा. इसमें 100 किलोग्राम के पेलोड्स लगे होंगे. इसमें फिलहाल 19 पेलोड्स लगाए जाएंगे. इसमें जर्मनी, स्वीडन, फ्रांस और रूस के पेलोड्स भी लगाए जा सकते हैं.

Advertisements