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चौटाला परिवार की चौधराहट जमीन पर, हरियाणा में INLD-JJP पूरी तरह फेल

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में पहली बार चौटाला परिवार का सूपड़ा साफ होता नजर आ रहा है. चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझ रही हैं. परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार रहे हैं.

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चौटाला परिवार से कौन-कौन उम्मीदवार हैं?

दुष्यंत चौटाला- हिसार के उचाना कलां से चुनाव लड़ रहे दुष्यंत चौटाला रेस से बाहर हैं. दुष्यंत यहां से छठवें नंबर पर चल रहे हैं. दुष्यंत के लिए यहां से जमानत बचाना मुश्किल दिख रहा है.

अभय चौटाला- सिरसा के ऐलानाबाद से चुनाव लड़ रहे अभय चौटाला काफी पीछे चल रहे हैं. अभय इनेलो की तरफ से मुख्यमंत्री पद के भी दावेदार हैं. अभय की सीट पर कांग्रेस आगे है

आदित्य चौटाला- डबावाली सीट से चुनाव लड़ रहे अभय चौटाला के बेटे आदित्य दूसरे नंबर पर है. यह सीट एक वक्त में चौटाला परिवार का गढ़ माना जाता रहा है. कांग्रेस यहां से आगे चल रही है.

दिग्विजय चौटाला- दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय डबावाली सीट से ही मैदान में हैं. यहां से दिग्विजय तीसरे नंबर पर चल रहे हैं. दिग्विजय जेजेपी के बड़े नेता माने जाते हैं.

अर्जुन चौटाला- अभय चौटाला के बेटे अर्जुन चौटाला रानियां सीट से आगे है. यहां से उनके दादा रणजीत चौटाला निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. रणजीत इस सीट से दूसरे नंबर पर हैं.

जमीन में धंस रही चौटाला परिवार की चौधराहट?

1967 में हरियाणा को अलग कर पहली बार चुनाव कराया गया था. तब से हरियाणा की सियासत में चौटाला परिवार का सियासी दबदबा रहा है. उस वक्त चौधरी देवीलाल प्रमुख भूमिका में थे. देवीलाल ने 1967 से लेकर 1989 तक हरियाणा की राजनीति की. वे इस दौरान दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे.

1989 में भारत के डिप्टी प्राइम मिनिस्टर बनने के बाद देवीलाल ने सीएम की कुर्सी अपने बेटे चौधरी ओम प्रकाश चौटाला को सौंप दिया. उस वक्त उनके छोटे बेटे रणजीत चौटाला भी सीएम पद के दावेदार थे.

ओम प्रकाश चौटाला कुल 4 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे. 2005 में चौटाला हार गए, तब से सत्ता की चौटाला परिवार सीधे तौर पर सत्ता में नहीं आ पाई. 2018 में चौटाला परिवार का विभाजन हो गया. दादा ओम प्रकाश और उनके छोटे बेटे अभय चौटाला के खिलाफ दुष्यंत चौटाला ने बगावत कर दी.

दुष्यंत ने अपने पिता अजय सिंह चौटाला के साथ खुद की पार्टी बना ली. 2019 के चुनाव में जेजेपी को 10 सीटों पर जीत मिली और उसकी भूमिका सरकार में किंगमेकर की रही.

इस बार दोनों ही पार्टियां अलग-अलग गठबंधन के साथ मैदान में है. हालांकि, इनेलो पहले की तरह ही एक सीट पर आगे चल रही है. वहीं जेजेपी शून्य की ओर बढ़ रही है.

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