चांद को चीन का ग्रहण लग गया है. वह न सिर्फ यहां से हीलियम निकाल रहा है बल्कि धरती पर लाने की तैयारी में भी जुटा है. इसके लिए चीन के वैज्ञानिक चांद की सतह पर एक मैग्नेटिक लॉन्चर लगाने की तैयारी में हैं. यह इस तरह से डिजाइन किया जाएगा, जिससे यह हीलियम-3 और अन्य मूल्यवान रिसॉर्स को धरती तक भेज सके.
सुनने में बेशक यह किसी रोमांचक साइंस फिक्शन फिल्म की तरह लग रहा हो, लेकिन चीन के वैज्ञानिक इसे सच करने जा रहे हैं. वह चांद की सतह पर मैग्नेटिक लॉन्चर को स्थापित कर अंतरिक्ष खनन में क्रांति लाने जा रहा है. चीन का मानना है कि वह ऐसा करके धरती पर पैदा हो रहे ऊर्जा के संकट को हल करने में मदद कर सकता है.
कैसा होगा मैग्नेटिक लॉन्चर?
चीनी वैज्ञानिक जिस मैग्नेटिक लॉन्चर पर काम कर रहे हैं उसका काम चंद्रमा की सतह से कार्गो को धरती तक भेजना होगा. इसके लिए 18 बिलियन डॉलर, यानी तकरीबन 1510 अरब रुपये का बजट निर्धारित किया गया है. इससे चंद्रमा पर एक 50 मीटर की रोटेटिंग आर्म बनाई जाएगी. यानी तकरीबन 165 फुट लंबा ऐसा यंत्र जो अपनी जगह पर तब तक घूमेगा जब तक उसकी स्पीड 2.38 किमी प्रति सेकेंड नहीं हो जाती. 8568 किमी प्रतिघंटा स्पीड होने के बाद यह उस कैप्सूल को धरती की तरफ फेकेंगा, जिसमें चांद से खनन कर निकाली गई हीलियम व अन्य ऊर्जा होगी.
होगी 8568 किमी प्रतिघंटा तक की स्पीड
वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा का वातावरण अनूठा है और धरती से बिल्कुल अलग है. ऐसे में इस तरह का लॉन्चर एक सफल पहल हो सकती है. दरअसल धरती से उलट चंद्रमा पर गुरुत्वाकर्षण न के बराबर है. उसका कोई वायुमंडल भी नहीं है. ऐसे में लॉन्चर की रोटेटिंग आर्म अपनी गति तक आसानी से पहुंच सकेगी. इसे चलाने के लिए सौर और परमाणु ऊर्जा का प्रयोग किया जाएगा.
ऊर्जा का स्वच्छ और सुरक्षित विकल्प है हीलियम
चीन के वैज्ञानिक हीलियम-3 गैस को धरती पर लाने के लिए इस लॉन्चर को स्थापित करने की योजना बना रहे हैं. दरअसल हीलियम-3 धरती पर सीमित मात्रा में हैं, जबकि चांद पर इसका भंडार है. वैज्ञानिक इसे भविष्य के इंधन के तौर पर देख रहे हैं. जो एक स्वच्छ और बेहद सुरक्षित विकल्प है. चीन के शोधकर्ता मानते हैं कि सिर्फ 20 टन हीलियम से ही चीन को पूरे एक साल तक बिजली मिल सकती है. पृथ्वी की बात करें तो यहां हीलियम-3 की मात्रा सिर्फ 0.5 टन है, जबकि चांद पर यह 1 मिलियन टन से ज्यादा हो सकती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर ये चांद से धरती पर आ जाए तो एक हजार साल से ज्यादा समय तक वैश्विक ऊर्जा की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है.
कैसे काम करेगा लॉन्चर?
मैग्नेटिक लॉन्चर एक तरह से हैमर थ्रो की तरह काम करेगा. यह ठीक उसी तरह से होगा जैसे कि हैमर को थ्रो करने से पहले एथलीट तेजी से घूमता है. लॉन्चर के नजरिए से देखें तो इसकी रोटेटिंग आर्म तब तक तेज गति से घूमेगी जब तक वह चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलने के लिए जरूरी गति तक न पहुंच जाए.
- रोटेटिंग आर्म: यह सुपरकंडक्टिंग मोटर से संचालित होगा, जिसमें चंद्रमा की संपदा से भरे कैप्सूल होंगे. यह तेजी से घूमेगी.
- स्पीड: रोटेटिंग आर्म जब स्पीड से घूमेगी तो 10 मिनट यह तकरीबन 2.38 किमी प्रति सेकेंड तक स्पीड में पहुंच जाएगी.
- लॉन्चिंग: निश्चित गति में पहुंचने के बाद यह चंद्रमा के संसाधनों से भरे कैप्सूल को लॉन्च कर देगा. यह इतना शक्तिशाली होगा कि दिन में दोबार ऐसा कर सकता है.
यह हैं मुश्किलें
चीन के वैज्ञानिकों ने जो योजना बनाई है वह रोमांचक हैं, लेकिन अभी कुछ मुश्किलें हैं जो उनकी राह में बड़ी बाधा हैं. इनमें सबसे प्रमुख है चांद की सतह जो ऊबड़ खाबड़ है. इससे लॉन्चर को स्थापित करने में मुश्किल हो सकती है. इसके अलावा इस सिस्टम को ब्रह्मांडीय विकिरण के साथ ही चांद के मुश्किल मौसम को झेलने लायक बनाना होगा. वैज्ञानिक चाहते हैं कि 2030 तक वह लॉन्चर के प्रमुख घटकों को जुटा लें ओर 2045 तक चांद से धरती पर संपदा लाने का काम शुरू कर दें.
चांद स्पेस रिसर्च का एक बड़ा केंद्र बन गया है. सिर्फ चीन ही नहीं बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका भी मूल्यवान संपदा को वहां से धरती पर लाने के बारे में सोच रहा है. दोनों देशों की स्पेस एजेंसी के साथ निजी क्षेत्र की कंपनियां भी लगातार चंद्र मिशन लॉन्च् कर रही हैं. आर्टेमिस मिशन से NASA चीन पर स्थायी कॉलोनी बनाने की योजना बना रहा है.