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पैतृक गांव से 20 किमी दूर दफनाया जाएगा ईसाई का शव… SC का फैसला

छत्तीसगढ़ के एक गांव में ईसाई को दफनाने से रोकने के खिलाफ याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है. दो सदस्यीय पीठ में दोनों जजों की विभाजित राय रही है. जस्टिस बीवी नागरत्ना के फैसले से जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की राय अगल है. जस्टिस नागरत्ना ने अपीलकर्ता को अपने पिता को अपनी निजी संपत्ति में दफनाने की अनुमति दी, जबकि जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि दफन केवल ईसाइयों के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में ही किया जा सकता है, जो कि करकापाल गांव में है. ये जगह अपीलकर्ता के मूल स्थान से लगभग 20-25 किलोमीटर दूर है.

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असहमति के बावजूद पीठ ने विवाद को बड़ी पीठ के पास भेजने से परहेज किया क्योंकि शव 7 जनवरी से ही शवगृह में पड़ा हुआ है. पीठ ने सर्वसम्मति से निर्देश पारित करने का निर्णय लिया कि शव को ईसाइयों के लिए निर्धारित स्थान पर ही दफनाया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई आदिवासियों के लिए पर्याप्त सहायता और पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने का निर्देश राज्य सरकार को दिया है.

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अपने फैसले में क्या कहा?

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि भाईचारा बढ़ाना सभी नागरिकों का दायित्व है. अजीबोगरीब तथ्यों को ध्यान में रखा जाए क्योंकि युवक के पिता का शव 7 जनवरी से पड़ा हुआ है. अपीलकर्ता अपनी निजी कृषि भूमि में शव को दफन करेगा और अन्य कोई इस तरह के निर्देश का कोई लाभ नहीं उठाएगा. उन्होंने कहा कि राज्य सररार को सुरक्षा देनी होगी, ताकि शव को दफन उसकी निजी कृषि भूमि में किया जा सके. राज्य सरकार पूरे राज्य में ईसाइयों के लिए कब्रिस्तान चिन्हित करेगा. यह आज से 2 महीने के भीतर किया जाएगा.

दरअसल, इस मामले की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के दो जजों जस्टिस बी वी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा ने सुनवाई की है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाना बेहतर होगा. इसलिए शव को करकापाल गांव में ईसाइयों के लिए निर्दिष्ट स्थान पर दफनाया जाए. उससे पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह देखकर दुख हुआ कि एक व्यक्ति ने छत्तीसगढ़ के एक गांव में अपने पिता को ईसाई रीति-रिवाज के अनुसार दफनाने के लिए शीर्ष अदालत का रुख करना पड़ा क्योंकि अधिकारी इस मुद्दे को हल करने में विफल रहे.

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने ठुकरा दी मांग

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि किसी विशेष गांव में रहने वाले व्यक्ति को उस गांव में क्यों नहीं दफनाया जाना चाहिए? शव 7 जनवरी से मुर्दाघर में पड़ा हुआ है. इस मामले में रमेश बघेल की ओर से याचिका दायर की गई थी. याचिका में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी गई थी. हाई कोर्ट ने रमेश के पादरी पिता को दफनाने के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में दफनाने की मांग ठुकरा दी थी.

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