निशिकांत दुबे के समर्थन में उतरे सीएम हिमंता सरमा, गिना दिए कांग्रेस ने कब-कब किया न्यायपालिका का अपमान

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई संजीव खन्ना के ऊपर की गई टिप्पणी ने बवाल मचा दिया है. विपक्षी दल सरकार पर हमलावर हैं इसके साथ ही कई आरोप लगाए जा रहे हैं. तो वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का केस चलाने के लिए याचिका दायर की गई है. इस बीच बीजेपी के कुछ नेता खुले तौर पर न सही पर निशिकांत दुबे के समर्थन में उतर आए हैं. कैलाश विजयवर्गीय के बाद मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कांग्रेस पर निशाना साधा है. उन्होंने कांग्रेस पुराने दिनों के विरोध और बयान याद दिलाते हुए नसीहत दी है.

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सीएम ने कहा कि BJP ने हमेशा न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा को बरकरार रखा है. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक्स पर पोस्ट शेयर करते हुए लिखा कि भारतीय जनता पार्टी ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा को भारत के लोकतंत्र की आधारशिला के रूप में हमेशा बरकरार रखा है.

उन्होंने लिखा कि हाल ही में, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट के संबंध में की गई टिप्पणियों से पार्टी को अलग करके इस प्रतिबद्धता की पुष्टि की है. सीएम ने आगे लिखा कि नड्डा ने इस बात पर जोर दिया कि ये व्यक्तिगत राय है और पार्टी के रुख को नहीं दर्शाती है. उन्होंने न्यायिक संस्थाओं के प्रतिब bjp के गहरे सम्मान को दोहराया. BJP इस सैद्धांतिक स्थिति को बनाए रखती है

कांग्रेस ने हमेशा न्यायपालिका का अपमान किया- सरमा

हिमंता विश्वा सरमा ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि न्यायपालिका के साथ कांग्रेस पार्टी के ऐतिहासिक संबंधों की जांच करना उचित है. कांग्रेस ने कई मौकों पर न्यायपालिका के सम्मानित सदस्यों की सार्वजनिक रूप से आलोचना की है. सीएम सरमा ने कुछ जजों का जिक्र करते हुए एक्स पर लिखा कि जस्टिस दीपक मिश्रा कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने बिना ठोस सबूतों के उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया.

अयोध्या मामले में फैसले समेत कई ऐतिहासिक फैसलों के बाद कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है. जस्टिस अरुण मिश्रा को संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करने के बावजूद अपने न्यायिक फैसलों और कार्यपालिका से कथित निकटता के लिए निशाना बने थे.

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़: महत्वपूर्ण मामलों में अपनी व्याख्याओं को लेकर अनुचित जांच का सामना करना पड़ा, खासकर जब फैसले कुछ राजनीतिक अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं थे. जस्टिस एस. अब्दुल नजीर: रिटायरमेंट के बाद आंध्र प्रदेश के गवर्नर बनाए जाने पर कांग्रेस ने उनकी आलोचना की, जिसमें आरोप लगाया गया कि इससे न्यायिक स्वतंत्रता को खतरा है, जबकि अतीत में भी इसी तरह की नियुक्तियां हुई हैं. ‘

सुविधा नहीं सिद्धांत पर आधारित हों आलोचनाएं- सीएम सरमा

यह पैटर्न कांग्रेस पार्टी के भीतर न्यायपालिका की विश्वसनीयता को चुनौती देने की मानसिकता को दर्शाता है, जब फैसले उनके राजनीति के हिसाब से नहीं होते हैं. इस तरह की चुनिंदा आलोचना न्यायिक प्रक्रियाओं की पवित्रता को कमजोर करती है. न्यायपालिका का सम्मान करना उसके निर्णयों की अनुकूलता पर निर्भर नहीं होना चाहिए. अंत में, जबकि BJP न्यायपालिका की भूमिका का निष्पक्ष रूप से सम्मान करना जारी रखती है, विपक्षी दलों के लिए अपने दृष्टिकोण पर विचार करना महत्वपूर्ण है, यह सुनिश्चित करना कि आलोचनाएं सुविधावाद के बजाय सिद्धांत पर आधारित हों.

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