Code Word ‘छोटी फाइल-बड़ी फाइल’, 50 हजार से 4 लाख तक का सौदा… नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से बच्चों की चोरी का शातिर गैंग कैसे करता था काम?

21 जनवरी की सुबह थी. जगह थी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन. लोग प्लेटफार्म पर आ जा रहे थे. तभी वहां 30 साल की महिला प्लेटफार्म नंबर-1 पर चीखने चिल्लाने लगी. वो यहां से वहां हड़बड़ी में भाग रही थी. बस यही कह रही थी- किसी ने मेरी चार महीने की बच्ची चुरा ली है. मेरी मदद करो. महिला दिखने में बेहद गरीब लग रही थी. वो यहां पेन बेचने का काम करती थी. दोपहर तक वो बच्चे को तलाशती रही. हर किसी से मदद मांगती रही. लेकिन जब बच्ची नहीं मिली तो उसने पुलिस से मदद लेने की सोची.

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अपनी सात साल की बेटी को लेकर वह सीधे रेलवे स्टेशन के थाने में पहुंची. महिला ने पुलिस को बताया- साहब, मैं बिहार की रहने वाली हूं. हम बहुत गरीब हैं. पैसा कमाने के लिए मैं दिल्ली आई थी. यहां हमारे पास रहने का भी कोई ठिकाना नहीं है. इसलिए दोनों बच्चों के साथ मैं रेलवे स्टेशन पर ही रह रही हूं. दिन रात पेन बेचकर जो पैसा मिलता उससे अपने बच्चों को खिला-पिलाकर गुजारा करती हूं.

महिला ने कहा- मेरा एक बेटा भी है, जो 14 साल का है. उसे नशा करने की आदत है. इसलिए वो नशा मुक्ति केंद्र में है. मेरे पहले पति की मौत हो चुकी है. उसके बाद मैंने पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान में काम करने वाले एक शख्स से शादी कर ली. हम दोनों को चार महीने पहले ही एक बेटी हुई. महिला ने पुलिस को बताया, ‘शाम 7 बजे (20 जनवरी को) मैं अपनी दो बेटियों के साथ प्लेटफॉर्म-1 पर बने वेटिंग हॉल में गई थी. हमने वहां खाना खाया और रात करीब 1 बजे मैं सो गई. मेरी बेटियां पहले से ही सो चुकी थीं. सुबह करीब 5 बजे मैं उठी और देखा कि मेरी चार महीने की बेटी वहां नहीं थी. मैंने उसे इधर-उधर ढूंढा, लेकिन वह नहीं मिली.’

सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए

पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की. इंस्पेक्टर विश्वनाथ पासवान की टीम पर इस मामले की जांच की जिम्मेदारी थी. सबसे पहले वेटिंग हॉल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई. इंस्पेक्टर पासवान ने कहा, ‘हमने फुटेज में एक महिला को बच्चे को गोद में लिए देखा. जब हमने फुटेज को दोबारा देखा, तो हम चौंक गए. महिला की चाल-ढाल एक अन्य मामले में अपहरणकर्ता से मेल खाती थी. दरअसल, इसी तरह अक्टूबर 2024 में भी ढाई साल के एक बच्चे का रेलवे स्टेशन से अपहरण कर लिया गया था. दोनों मामलों में एक और आश्चर्यजनक समानता थी. दोनों मामलों में, महिला अपहरणकर्ता ऑटो-रिक्शा में बदरपुर (हरियाणा की सीमा पर) गई थी.’

पहले सुलझा नहीं, आ गया दूसरा केस

इंस्पेक्टर पासवान ने बताया- उस केस को अभी तक सुलझाया नहीं जा सकता था. इस बीच अब दूसरा केस हमारे सामने आ गया. उस और इस केस में काफी समानताएं थीं. उस वक्त भी अपहरणकर्ता जिस ऑटो पर सवार होकर निकली थी, उसके ड्राइवर से हमने पूछताछ की थी. लेकिन ड्राइवर को कुछ भी पता न था. हमें लगा कि इन दोनों केस का आपस में कोई तो लिंक जरूर है. हो सकता है ये एक बड़े रैकेट के द्वारा करवाया जा रहा हो. यानि मामला चाइल्ड ट्रैफिकिंग का हो सकता है.

पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, पिछले तीन सालों में दिल्ली में बच्चों के अपहरण के 11,869 मामले सामने आए हैं.

  • 2024 में 3,948 मामले
  • 2023 में 3,974 मामले
  • 2022 में 3,947 मामले

डेटा से पता चलता है कि पिछले तीन सालों में 18,246 बच्चे लापता हुए हैं. पुलिस ने बताया कि 80% मामलों में इन बच्चों का पता लगा लिया गया और उन्हें उनके परिवारों से मिलवाया गया.

कैसे सुलझा किडनैपिंग का ये केस?

पुलिस उपायुक्त, रेलवे, केपीएस मल्होत्रा ​​ने मामले को संभालने के लिए एसीपी संजीव चाहर और इंस्पेक्टर पासवान और विजय समारिया की एक टीम बनाई. उन्होंने टीम से पहले के मामले (17 अक्टूबर, 2024) की जांच में शामिल पुलिसकर्मियों को शामिल करने को कहा, जहां सुराग ठंडे बस्ते में चले गए थे. इंस्पेक्टर पासवान ने कहा, ‘महिला को बदरपुर ले जाने वाले ऑटो-रिक्शा की पहचान कर ली गई. इस बार भी, ड्राइवर को कुछ भी पता नहीं था. लेकिन उसने हमें एक ऐसी जानकारी दी जो महत्वपूर्ण साबित हुई. उसने हमें बताया कि जैसे ही वे बदरपुर के करीब पहुंचे, महिला ने किसी को फोन किया और दूसरी तरफ मौजूद व्यक्ति से उन्हें लेने के लिए कहा.’

पुलिस ने ऑटो-रिक्शा चालक से पूछा कि वह उन्हें सटीक स्थान दिखाए जहां उसने अपहरणकर्ता को छोड़ा था. इंस्पेक्टर पासवान ने कहा, ‘पहले के मामलों में भी, हमने उस स्थान की पहचान की थी जहां ऑटोरिक्शा ने उसे छोड़ा था. फिर हमने दो स्थानों से डेटा डंप का मिलान किया और उस विशेष समय पर सक्रिय हर नंबर को स्कैन किया.’ हालांकि, पुलिस ने उसके कॉल डिटेल रिकॉर्ड को स्कैन किया और कुछ ऐसे नंबरों पर ध्यान केंद्रित किया. हमें एक संदिग्ध नंबर मिला, जो कि आरती नामक महिला का था. इंस्पेक्टर समारिया ने कहा, आरती एक नंबर पर सबसे ज्यादा बात करती थी. वो ता सूरज नामक शख्स का.

आरती-सूरज को उठाया

हमने आरती और सूरज को उठा लिया. पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले की रहने वाली आरती ने बताया कि उसने 17 साल पहले शकूर नाम के एक व्यक्ति से शादी की थी और उनके दो बेटे हैं. अलग होने से पहले वे सात साल तक साथ रहे. तलाक के बाद उसने अपने बच्चों को अपने पहले पति के पास छोड़ दिया और एक परिचित के साथ फरीदाबाद चली गई. 2017 में, उसने यूपी के बदायूं जिले के निवासी सूरज से शादी की, जो एक दिहाड़ी मजदूर है. उनके दो बच्चे हैं – एक छह साल का बेटा और एक 15 महीने का लड़का. आरती ने बताया- मेरा नाम पहले रजीना था. लेकिन सूरज से शादी के बाद मैंने नाम बदलकर आरती रख लिया.

पुलिस के अनुसार, आरती ने बताया कि दो साल पहले फरीदाबाद में उसकी मुलाकात प्रिया नाम की एक महिला से हुई थी. आरती ने पुलिस को बताया, ‘उसने बताया कि वह डॉक्टर है और अपना क्लीनिक चलाती है. कई निःसंतान दंपत्तियों को जानती है जो बच्चे गोद लेने के लिए अच्छी खासी रकम देने को तैयार हैं. उसने यह भी बताया कि वह कई गिरोहों को जानती है जो बच्चों को चुराते हैं और जानबूझकर उनके अंग तोड़ देते हैं और उनसे भीख मंगवाते हैं.’

एक के बाद एक खुलती गई कई परतें

जांच के दौरान इस बाल अपहरण और तस्करी रैकेट की कई परतें उजागर हुईं. इंस्पेक्टर पासवान ने कहा, ‘यह रैकेट एक जाल की तरह है. हर बार जब हम कोई गिरफ्तारी करते हैं, तो हमें इसमें और लोगों की संलिप्तता का पता चलता है. यह लगातार आगे बढ़ता रहता है. हम पहले ही चार लोगों को गिरफ्तार कर चुके हैं और एक दर्जन से अधिक लोग हमारी निगरानी में हैं.’

पुलिस ने पाया कि आरती की भूमिका बच्चों का प्रबंध करना था. वह ज़्यादातर गरीब, दलित और बेघर लोगों के बच्चों का अपहरण करती थी क्योंकि वो जानती थी कि कुछ समय बाद कोई भी उनके बच्चों की तलाश नहीं करेगा. एक बार जब वह किसी बच्चे का अपहरण कर लेती थी तो वह कांता और निम्मी दोनों को तस्वीरें भेजती थी. सौदा तय होने के बाद, आरती और सूरज बच्चे के जैविक माता-पिता होने का नाटक करते और जब बच्चे को पालक माता-पिता को सौंप दिया जाता तो वे गोद लेने के कागजात पर हस्ताक्षर कर देते थे ताकि यह वैध लगे.

पुलिस ने बताया कि कांता नामक एक महिला कुछ डॉक्टरों और कई निःसंतान दंपत्तियों के संपर्क में थी. वह पैसों की सख्त जरूरत वाली महिलाओं से नवजात शिशुओं को भी खरीदती थी. इंस्पेक्टर पासवान ने बताया, ‘कांता का कॉन्टेक्ट आरती और दूसरे सप्लायरों से था. इनसे बात करते समय कोड का इस्तेमाल करती थी. ‘छोटी फाइल’ का इस्तेमाल बच्ची के लिए किया जाता था. बच्चे को ‘बड़ी फाइल’ कहा जाता था. जहां एक बच्ची को 50,000 से एक लाख रुपये में बेचा जाता था, वहीं एक बच्चे की कीमत 2 लाख रुपये से 4 लाख रुपये के बीच तय की जाती थी.

बच्चों से भीख मंगवाने वाला गिरोह

पुलिस ने बताया कि कांता ने आरती से यह भी कहा था कि अगर वह प्रसव के बाद अपना नवजात बच्चा दे देगी तो वह उसे 2.5 लाख रुपये की जमीन का टुकड़ा देकर मुआवजा देगी. इसी तरह निम्मी नामक महिला का भी एक चेन है. वो दिल्ली में भीख मांगने वाले गिरोहों को अपहृत बच्चों की आपूर्ति करने में संलिप्त थी. आरती की निम्मी से भी कई दफे बात होती थी. पुलिस ने बताया कि निम्मी के मोबाइल फोन की जांच के बाद इस चेन का पता चला. इंस्पेक्टर समारिया ने बताया, ‘आरती के अलावा वह पुरानी दिल्ली के मलका गंज में एक अन्य सप्लायर के संपर्क में थी, जिसकी पहचान केवल पीबी के रूप में हुई है. निम्मी एक महिला के संपर्क में भी थी, जो उसके लिए खरीदार तय करती थी.

दोनों बच्चे किए गए बरामद

इस बीच, पुलिस ने आरती द्वारा अपहृत दोनों बच्चों को बरामद कर लिया है. आरती ने पिछले साल अपहृत ढाई साल के बच्चे को निम्मी को बेचा था. पुलिस ने बताया कि लोनी के एक व्यक्ति के साथ सौदा 3 लाख रुपये में तय हुआ था. पुलिस ने बताया कि इस व्यक्ति ने आगे बच्चे को लोनी के एक दंपति को बेच दिया. पुलिस ने पाया कि दंपति की दो बेटियां थीं और वे एक बेटा चाहते थे.

इंस्पेक्टर समारिया ने कहा, ‘हमने लोनी से लड़के को बरामद किया और गोद लेने के फर्जी दस्तावेज जब्त किए. जबकि, चार महीने की बच्ची को पहाड़गंज की एक महिला से बरामद किया गया. इंस्पेक्टर समारिया ने बताया, ‘आरती ने बच्ची को कांता को सौंप दिया था, जिसने बाद में उसे बेच दिया गया था. आरोपियों के खिलाफ आगामी कार्रवाई जारी है.

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