अगर आप इंद्रधनुष देखकर खुश होते हैं तो इस बात को बिल्कुल मानेंगे कि रंग यानी कलर हमारे लिए कितने ज़रूरी हैं. आप जितना ब्राइट कलर देखते पहनते हैं, आपको उतना अच्छा फील होता है. कुछ रंग ऐसे होते हैं जिन्हें देख या पहन कर आप डल फील करते हैं. इसीलिए कलर थेरेपी वो है जिसमें अलग-अलग तरीके से रंगों का इस्तेमाल करके बीमारियों को ठीक किया जाता है, इसे क्रोमोथेरेपी (Chromo therapy) भी कहा जाता है. इसमें मेन्टल और फिजिकल प्रॉब्लेम्स को दूर करने के लिए कलर और लाइट का इस्तेमाल किया जाता है.
कलर थेरेपी
होलिस्टिक हेल्थ कोच शेफाली बत्रा बताती हैं, कलर थेरेपी अलग-अलग तरह की होती है. इसमें पानी और स्केच पेन के जरिए कलर थेरेपी की जाती है. इसको हाथ और पैर पर इस्तेमाल किया जाता है, जिससे एक्यूट और क्रोनिक बीमारी को काफी हद तक ठीक किया जाता है. ये चिकित्सा पद्धति हजारों साल पुरानी है. इसे भारत के अलावा प्राचीन मिस्र और चीन जैसी कई सभ्यताओं में इस्तेमाल किया गया है.
कैसे काम करती है कलर थेरेपी
शेफाली बत्रा बताती हैं, सूर्य में जिस तरह से केवल सफेद रंग दिखाई देता है लेकिन उसमें कई रंग होते हैं. जब इंसान सूर्य की रोशनी में बैठता है तो अपने आप ही हील हो जाता है. ये जो कलर होते हैं, वो शरीर के पांच तत्व से मिले हुए होते हैं. इसी तरह से कलर पद्धति में भी अलग-अलग बीमारी के लिए अलग-अलग कलर को सूर्य के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है. इस थेरेपी में शरीर के कुछ असंतुलन और प्रमुख चक्रों को बैलेंस करने के लिए रंग और प्रकाश का उपयोग किया जाता है.
किन बीमारियों में कारगर ?
कलर थेरेपी एक्सपर्ट कहते हैं, कलर थेरेपी थायरॉइड, डायबिटीज, चेचक, फोड़ा-फुंसी, दाद, खुजली, अर्थराइटिस, सायटिका और पुराने दर्द पर बहुत कारगर है. महिलाओं से संबंधित समस्याओं पर भी कलर पद्धति बहुत अच्छा काम करती है. इसके साथ कलर थेरेपी तनाव, डिप्रेशन, हाई ब्लड प्रेशर, स्लीप डिसऑर्डर, स्ट्रेस, स्किन एलर्जी और कुछ टाइप के कैंसर पर भी काम करती है.
इलाज का तरीका
पतंजलि योगग्राम में मेडिकल अफसर और कलर थैरेपी के एक्सपर्ट डॉक्टर अजीत राणा बताते हैं रंगों से थैरेपी दो तरह से होती हैं
ये फिजिकल और इमोशनल, दो तरीके से काम करती है.
फिजिकल कलर थेरेपी
नाइट बल्ब: बहुत सारे लोग अलग-अलग डिजाइन और कलर के नाइट बल्ब सोते समय इस्तेमाल करते हैं. ये भी एक थैरेपी है. अगर आप देखते हैं कि आपका बच्चा हाइपरएक्टिव है और रात में सोता नहीं है तो आपने नोटिस किया होगा कि उसके आसपास रेड कलर ज्यादा होता है. उस कलर को धीरे-धीरे ग्रीन या ब्लू में चेंज कर देना चाहिए. इस तरीके से कलर को बैलेंस किया जाता है. इसी तरह से अगर आपको दिखता है कि कोई डिप्रेशन या एंजायटी में है तो उसे ब्लैक कलर या डार्क कलर पसंद होंगे. उसकी लाइफ में धीरे-धीरे लाइट कलर ले आएंगे. ऐसे में ग्रीन बल्ब का इस्तेमाल करना चाहिए, जो कामनेस लेकर आता है.
कपड़ों से इलाज: कपड़ों का रंग मरीज को बताया जाता है. उनको जिस तरह की बीमारी होती है, उसी रंग के कपड़े पहनने की सलाह दी जाती है.
चार्ज वॉटर बॉटल: इसमें व्यक्ति को खास रंग की पानी की बोतल दी जाती है. बोतल कांच की होती है. अगर किसी के थॉट क्लियर नहीं हैं या फिर वह बहुत आलसी है तो ऐसी स्थिति में डायरेक्ट उसको लाल कलर की थेरेपी ना देकर ऑरेंज कलर की थेरेपी दी जाती है. उसमें दो दिन ग्रीन और तीन दिन ऑरेंज कलर की बोतल में पानी रखकर पीने को कहा जाता है. जब दिखने लगता है कि व्यक्ति की समस्या कम होने लगी है तो फिर उसे धीरे-धीरे लाल बॉटल थेरेपी दी जाने लगती है.
कलर शीट से इलाज: कई रंग की कलर शीट भी आती है. कांच के ग्लास पर उस कलर शीट को लगाया जाता है. उसके नीचे मरीज को बैठाया जाता है. जब सूरज निकलता है तो कलर बाथ लेते हैं. उससे उन्हें काफी एनर्जी मिलती है. अगर किसी को डाइजेस्टिव या नर्वस इशू है तो येलो सीट लगाकर उसके नीचे बैठाया जाता है.
क्रोमोथरमेलियम : इसमें अलग-अलग कलर के ग्लास इस्तेमाल किए जाते हैं. अगर किसी को अस्थमा की समस्या है तो उसे वार्मनेस ज्यादा चाहिए होती है, उसमें रेड कलर की ग्लास लगाई जाती है. उसी ग्लास में मरीज को बैठाया जाता है. जब सूरज की रोशनी ग्लास पर पड़ती है तो उसके उतने ही एरिया पर पड़ती है, जितनी उसकी जरूरत होती है.
सुजोक या एक्यूप्रेशर- शेफाली बत्रा बताती हैं, कलर थेरेपी को सुजॉक थेरेपी और एक्यूप्रेशर के जरिए भी इस्तेमाल करते हैं. हमारे हाथ और हमारे तलवे पर ही हमारी पूरी शरीर के अंग निर्धारित हैं. ऐसे में बॉडी में जो सुजॉक पॉइंट्स होते हैं, उनको बेस बनाकर, फिर अलग-अलग रंगों से थेरेपी दी जाती है. अगर किसी के लिवर में समस्या है तो लिवर पॉइंट पर कलर थेरेपी दी जाती है. कलर का इस्तेमाल बेसिक स्केच पेन से किया जाता है. स्केच पेन से उस पॉइंट पर कलर कर दिया जाता है.
इमोशनल कलर थेरेपी:
इसमें आंखें बंद करके मरीज के आसपास कलर क्रिएट करते हैं या फिर उसे चक्र मेडिटेशन पर कराते हैं. इसमें हर एक चक्र का अलग-अलग काम होता है और वो अलग-अलग कलर के होते हैं. चक्र में देखा जाता है कि मरीज के किस लक्षण से कलर मैच हो रहा है. अगर कोई बोलता है कि उसकी इम्यूनिटी बहुत कमजोर है, उसको स्वाधिष्ठान चक्र एक्टिवेट कराया जाता है. जो नारंगी और पीले कलर का होता है, उस पर ध्यान कराया जाता है. इस थेरेपी को करने में 7 से 15 दिन का समय लगता है. ये अल्टरनेट थेरेपी है.
कलर थेरेपी की फीस
कलर थेरेपी की अलग-अलग फीस होती है. ये डॉक्टर पर निर्भर करता है कि वह कितनी फीस लेते हैं. कुछ लोग 1100 रुपए में थेरेपी देते हैं.
कौन कर सकता है क्रोमोथेरेपी?
जो लोग सुजोक थेरेपी, एक्यूप्रेशर और एक्युपंचर करते हैं, वो कलर थेरेपी कर सकते हैं लेकिन उन्हें इस बात की भी जानकारी होनी चाहिए कि किस बीमारी के लिए किस कलर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. एक बेहतर क्रोमोथेरेपिस्ट बनने के लिए आपको व्यक्ति पर प्रत्येक रंग के प्रभाव के बारे में जानकारी होनी चाहिए. क्रोमोथेरेपिस्ट बनने के लिए आपके पास क्रोमोथेरेपी में डिप्लोमा या बैचलर डिग्री होनी चाहिए. कलर थेरेपी में डिप्लोमा व बैचलर कोर्स की अवधि छह महीने से एक साल की होती है. अगर आप अपनी डिग्री और डिप्लोमा कंप्लीट कर लेते हैं तो आप हॉस्पिटल्स से लेकर नेचुरोपैथी क्लिनिक, हेल्थ सेंटर्स में काम कर सकते हैं या अपना क्लिनिक भी खोल सकते हैं.