‘चलो आपको गंगा स्नान करवा लाती हूं…’ पति को पीठ पर बैठाकर 150 KM की कांवड़ यात्रा पर पत्नी, भावुक कर देगी ये कहानी

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में कावड़ यात्रा के दौरान मन को भावुक कर देने वाली तस्वीर सामने आई है. दरसअल, एक पत्नी अपने दिव्यांग पति को अपने पीठ पर बैठाकर तकरीबन 150 किलोमीटर की पैदल कांवड़ यात्रा कर रही है. इस महिला की कामना है कि उसके पति अपने पैरों पर खड़े होने लगें. यह महिला हरिद्वार से गंगाजल लेकर पति को अपनी पीठ पर बैठाकर मोदीनगर तक की कांवड़ यात्रा पर है. महिला के साथ उसके दो बच्चे भी यात्रा कर रहे हैं.

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इस शिवभक्त महिला का नाम आशा है और उसके पति का नाम सचिन है. ये लोग बखरवा मोदीनगर गाजियाबाद के रहने वाले हैं. सचिन 13 साल तक अपने पैरों पर चलकर हर वर्ष कांवड़ यात्रा करते रहे हैं. मगर बीते साल रीढ़ की हड्डी के ऑपरेशन के दौरान सचिन को पैरालिसिस हो गया. इस वजह से अब सचिन अपने पैरों पर नहीं चल पाते.

इस बार जब कांवड़ यात्रा का वक्त आया तो सचिन की पत्नी आशा के मन में आया कि हर बार पति खुद अपने पैरों पर चलकर कांवड़ यात्रा लाते रहे हैं, मगर इस बार वह विवश हैं. इस पर आशा ने पति के साथ हरिद्वार स्नान करने की ठानी. इसके बाद पति सचिन और दो बच्चों के साथ आशा हरिद्वार पहुंच गईं. आशा ने जब हर की पैड़ी से गंगाजल उठाया तो पति से कहा कि इस बार मैं अपनी पीठ पर बैठाकर आपको कांवड़ यात्रा पूरी कराऊंगी.
आशा ने भगवान भोलेनाथ से मन्नत भी मांगी कि उसके पति सचिन के पैर ठीक हो जाएं, ताकि वह दोबारा फिर अपने पैरों पर खड़े होकर कांवड़ यात्रा कर सकें. आशा का कहना है कि पति की सेवा में ही मेवा है, बाकी कुछ नहीं है. आशा ने यह भी कहा कि रास्ते में जो भी शिवभक्त कांवड़िये मिल रहे हैं, वे सराहना करते हैं और हौसला बढ़ाते हैं.

सचिन घर में अकेले कमाने वाले थे. वह रंगाई-पुताई का काम करते था, मगर बीमारी के बाद अब घर में कोई कमाने वाला नहीं है. इस परिवार में पति-पत्नी और दो बेटे हैं. आशा का कहना है कि आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. पति सचिन जब बीमार हुए तो आयुष्मान कार्ड से इलाज हो गया. आशा ने कहा कि अगर आयुष्मान कार्ड न होता तो पता नहीं क्या होता.

पति को पीठ पर बैठाकर 150 किलोमीटर तक पैदल कांवड़ ला रही आशा का कहना है कि मैं गंगाजल लेकर हर की पैड़ी से आ रही हूं. मैं अपने गांव मोदीनगर बखरवा जाऊंगी. मेरे पति का जब से स्पाइन का ऑपरेशन हुआ है, तब से वे चल नहीं सकते. वे 13 बार खुद कांवड़ ला चुके हैं. यह 14वीं कांवड़ है.

आशा ने कहा कि मैं रुक-रुक कर रास्ते में चलती हूं. मैं चलती रहती हूं. दो बेटे हैं, मेरा पूरा परिवार मेरे साथ है. मेरे बच्चे भी पैदल ही चल रहे हैं. मेरे पति का 1 अगस्त को ऑपरेशन हुआ था. अब 1 अगस्त को एक साल हो जाएगा. हमारे बच्चे भी हमारी आर्थिक स्थिति को देखकर कोई जिद नहीं करते. मैं सरकार से मदद चाहती हूं. मेरे पति को कुछ काम मिल जाए, कुछ सुविधाएं मिल जाएं.

दिव्यांग पति सचिन का कहना है कि 13 जुलाई की शाम खाना खाकर बैठे थे. बस ऐसे ही बातचीत कर रहे थे, तभी पत्नी अचानक कहने लगीं कि चलो हम भी हरिद्वार चल रहे हैं. मैंने कहा कि मेरी हालत तो देखो, मुझे खड़ा भी नहीं हुआ जाता. इस पर पत्नी ने कहा कि तुम चलो, तुम्हें नहलाकर लाती हूं.

सचिन ने कहा कि मैंने पत्नी से कहा था कि तुम ही हरिद्वार से कांवड़ लेकर आ जाओ. हरिद्वार में नहलाने के बाद पत्नी कहने लगीं कि बाबा भोलेनाथ के मंदिर में आपको अपने कंधों पर लेकर ही जाऊंगी. मुझे 16 साल हो गए कांवड़ लाते हुए. मैं पैदल ही चलता था. हर की पैड़ी से बाबा कौशल नाथ के मंदिर में 13 कांवड़ चढ़ा चुका हूं.

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