कॉमेडियन समय रैना सुप्रीम कोर्ट में हुए पेश, दिव्यांगों पर आपत्तिजनक जोक्स मामले में हुई सुनवाई

समय रैना के शो इंडियाज गॉट लेटेंट में अश्लील टिप्पणियों के संबंध में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई. समय रैना व अन्य कोर्ट के सामने पेश हुए. उनके वकील ने क्योर एसएमए इंडिया फाउंडेशन मामले में अपना जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा. रणवीर अल्लाहबादिया की याचिका के साथ क्योर एसएमए इंडिया फाउंडेशन द्वारा दायर याचिका भी सूचीबद्ध थी. इसमें रैना पर स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी के महंगे इलाज पर असंवेदनशील टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था. रैना पर एक विकलांग व्यक्ति का उपहास करने का भी आरोप है.

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याचिका में विकलांग व्यक्तियों के जीवन और सम्मान के अधिकार का उल्लंघन करने वाली ऐसी ऑनलाइन सामग्री के प्रसारण के लिए नियमन की भी मांग की गई है. मई में सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया था कि वो अगली सुनवाई की तारीख पर रैना, विपुल गोयल, बलराज परमजीत सिंह घई, सोनाली ठाकर उर्फ सोनाली आदित्य देसाई और निशांत जगदीश तंवर की अदालत में उपस्थिति सुनिश्चित करें.

बाजार में कई मुफ्त सलाहकार मौजूद हैं

सोशल मीडिया नियमन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मसले पर बाजार में कई मुफ्त सलाहकार मौजूद हैं. सोशल मीडिया और ऑनलाइन सामग्री के नियमन के लिए प्रस्तावित तंत्र को संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप होने पर जोर देते हुए ये बात कही. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ कॉमेडियन और पॉडकास्टरों से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जो अपने ऑनलाइन आचरण को लेकर कानूनी पचड़े में फंस गए हैं.

प्रस्तावित दिशा-निर्देशों पर चर्चा की जरूरत

सर्वोच्च न्यायालय ने पहले संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर उचित प्रतिबंधों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए नियामक उपायों का आह्वान किया था. आज अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि प्रस्तावित दिशानिर्देशों पर चर्चा की आवश्यकता है. न्यायमूर्ति कांत ने सहमति जताते हुए कहा कि सभी हितधारक इस मुद्दे पर अपने विचार दे सकते हैं.

स्वतंत्रता और अधिकारों व कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाएं

न्यायमूर्ति कांत ने टिप्पणी की और कहा कि बाजार में कई स्वतंत्र सलाहकार मौजूद हैं. उन्हें नजरअंदाज करते हुए दिशानिर्देश संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप होने चाहिए जो स्वतंत्रता और अधिकारों व कर्तव्यों के बीच संतुलन स्थापित करें. हम ऐसे दिशानिर्देशों पर खुली बहस करेंगे. सभी हितधारक भी आकर अपने विचार रखें. सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि मान लीजिए कि अनुच्छेद 19 और 21 के बीच प्रतिस्पर्धा होती है, तो अनुच्छेद 21 को अनुच्छेद 19 पर भारी पड़ना होगा.

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