बिलासपुर: मोपका चौक पर पटवारी कार्यालय के लिए आरक्षित भूखंड पर अवैध रूप से निर्मित 10 शटर वाले काम्प्लेक्स को नगर निगम प्रशासन ने सील कर दिया. निगम ने दीवार पर “नगर निगम बिलासपुर का आधिपत्य” लिखवा दिया है. हालांकि, इस कार्रवाई में राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप भी सामने आए हैं.
जर्जर दुकानों का मरम्मत या नया निर्माण?
जोन क्रमांक 7, राजकिशोर नगर के जोन कमिश्नर का कहना है, कि यह दुकाने पंचायत काल में बनी थीं और जर्जर हालत में थीं, जिनका मरम्मत कराया गया. हालांकि, स्थानीय लोग सवाल उठा रहे हैं कि अगर यह मरम्मत थी, तो लेंटर और शटर किसने लगवाए? क्या निगम प्रशासन ने इसकी अनुमति दी थी, या फिर यह नेताओं के दबाव में किया गया?
किराया खाने वाले नेताओं पर आरोप
स्थानीय निवासियों का आरोप है कि इन दुकानों को किराए पर देने का खेल कई सालों से चल रहा है. दो मंत्रियों के करीबी नेताओं का नाम इस प्रकरण में सामने आ रहा है. बताया जा रहा है कि कुछ दुकानों के किराए पर लेने के लिए 50-50 हजार रुपये की पगड़ी ली गई थी. अब किरायेदार इस राशि को वापस पाने के लिए नेताओं के पीछे भाग रहे हैं, जबकि नेता बैकफुट पर जाने के बजाय उन्हें टाल रहे हैं.
किरायेदारों में दहशत
इन दुकानों के किरायेदार इस प्रकरण में खुलकर सामने आने से डर रहे हैं. एक किरायेदार ने बताया कि वह हर महीने 8 हजार रुपये किराए के रूप में देता था, लेकिन यह रकम किसे दी जा रही थी, इसका खुलासा करने में वह असमर्थ है.
एक दुकान में कथरी-चादर का बिछौना
पीछे की एक दुकान में कथरी-चादर बिछा पाया गया. जब इसके बारे में स्थानीय लोगों से पूछा गया, तो वे बिना कुछ बताए वहां से खिसक गए.
निगम प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल
निगम प्रशासन की कार्रवाई के बावजूद यह सवाल बना हुआ है कि अवैध निर्माण किसके आदेश पर हुआ और इसे इतने सालों तक कैसे नजरअंदाज किया गया? स्थानीय निवासियों का कहना है कि यदि निगम प्रशासन ईमानदारी से काम करता, तो यह स्थिति कभी नहीं आती.