मोहन भागवत हो चाहे नरेंद्र मोदी या यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ… सबकी जुबान पर इन दिनों एक ही नारा है- बंटोगे तो घटोगे. कहा जा रहा है कि हरियाणा के दंगल में अगर कांग्रेस इस नारे का सियासी मतलब समझती तो आसन्न हार के खतरे से बच सकती थी. हरियाणा में 60 सीटों पर जीत का दावा करने वाली कांग्रेस 40 के नीचे ही सिमट गई है.
हरियाणा में कांग्रेस की हार की जो सबसे बड़ी वजह बताई जा रही है, वो बंटना ही है. पूरे चुनाव में संगठन से लेकर सहयोगी तक के स्तर पर कांग्रेस पूरी तरह बंटी नजर आई.
आखिर वक्त तक सैलजा ने खोले रखा मोर्चा
5 बार की सांसद कुमारी सैलजा कांग्रेस की कद्दावर नेता हैं. पूरे चुनाव में सैलजा ने हुड्डा गुट के खिलाफ मोर्चा खोले रखा. कांग्रेस ने दोनों के पेचअप की खूब कोशिश की. राहुल ने मंच से दोनों के हाथ भी मिलवाए, लेकिन सब ढाक के तीन पात ही साबित हुए.
सैलजा आखिर वक्त तक कांग्रेस से नाराज रही. उनके पोस्टर पर न तो हुड्डा गुट की तस्वीरें दिखी और न ही उन्होंने हुड्डा समर्थकों के लिए कोई रैली की.
हरियाणा के चुनाव परिणाम का इसका सीधा असर देखने को मिला. एक तरफ जहां सैलजा की करीबियों को हार का सामना करना पड़ा है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस उन सीटों पर बुरी तरह हारी है, जहां दलितों की बाहुलता थी.
हरियाणा में INDI गठबंधन को नहीं लिया साथ
कांग्रेस को छोड़ इंडिया गठबंधन की 3 पार्टियां हरियाणा की सियासत में मजबूत स्थिति में है. इनमें आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी और सीपीएम का नाम शामिल हैं. कांग्रेस ने शुरुआत में इन तीनों ही दलों के साथ गठबंधन की कवायद की, लेकिन आखिर में पार्टी ने सिर्फ सीपीएम को साथ लिया.
भूपिंदर सिंह हुड्डा और अजय माकन के दबाव में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से गठबंधन नहीं किया, जबकि सपा को भी पार्टी ने सीट देने से इनकार कर दिया. गठबंधन टूटने के बाद आप ने 88 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए थे.
पूरे चुनाव में आम आदमी पार्टी को 1 प्रतिशत वोट मिली है. पार्टी के उम्मीदवार कई सीटों पर 10 हजार से ज्यादा वोट लाने में कामयाब रहे हैं. 2024 में कांग्रेस और आप मिलकर लड़ी थी. इस चुनाव में विधानसभा की 90 में से 46 सीटों पर कांग्रेस और आप को बढ़त मिली थी.
इसी तरह अहीरवाल बेल्ट में कांग्रेस बेहतरीन प्रदर्शन नहीं कर पाई है. कहा जा रहा है कि अगर यहां सपा को कुछ सीटें कांग्रेस ने दी होती और अखिलेश यादव से रैली कराई होती तो उसे कुछ सीटों का लाभ हो सकता था.
कांग्रेस की करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने बयान दिया है. केजरीवाल ने कहा है कि किसी भी चुनाव को हल्के में न लें. सब मिलकर अगर काम करेंगे तो इसका फायदा ज्यादा होगा.
हिंदी पट्टी में अकेले नहीं जीत पाई है कांग्रेस
दिलचस्प बात है कि कांग्रेस अपने अतीत से भी सबक नहीं ले पाई है. हिमाचल को छोड़ दे तो पिछले 5 सालों में कांग्रेस हिंदी पट्टी के किसी भी राज्य में अकेले नहीं जीत पाई है. 2023 के आखिर में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव हुए थे.
यहां पर कांग्रेस अकेले मैदान
यहां पर कांग्रेस अकेले मैदान में उतरी. पार्टी को इन तीनों ही राज्यों में करारी हार का सामना करना पड़ा. इसी तरह 2022 में कांग्रेस यूपी, उत्तराखंड और पंजाब में अकेले मैदान में उतरी. इन तीनों ही राज्यों में भी कांग्रेस जीत नहीं पाई.
इसके उलट लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के साथ जब कांग्रेस लड़ी तो परिणाम चौंकाने वाले रहे. राजस्थान में कांग्रेस को 8 सीटों पर जीत मिली. इसी तरह हरियाणा में पार्टी ने 5 सीटों पर जीत हासिल की.
कांग्रेस के लिए आगे की राह और होगी मुश्किल
कांग्रेस के लिए आगे की राह आसान नहीं है. इस साल के अंत में महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा के चुनाव होने हैं. दोनों ही जगहों पर कांग्रेस का बार्गेनिंग पावर कम होगा. अभी तक कांग्रेस महाराष्ट्र में खुद को मजबूत स्थिति में बताकर सीएम पद पर दावा ठोक रही थी, लेकिन अब हरियाणा के जनादेश ने पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी है.
कांग्रेस महाराष्ट्र और झारखंड में अगर अपनी शर्तों पर आगे बढ़ती है तो यहां पर भी हरियाणा की तरह ही खेल हो सकता है.
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