रीवा में कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा का कार्यक्रम फ्लॉप, कमिश्नर तक नही पहुँचे ज्ञापन लेने, डिप्टी कलेक्टर को थमाया

रीवा में इन दिनों राजनीतिक गलियारों में एक नई बहस छिड़ी हुई है, जिसने कांग्रेस की अंदरूनी स्थिति पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. हाल ही में हुई पार्टी की एक सभा को लेकर चौंकाने वाले दावे सामने आए हैं, जो पार्टी की जमीनी हकीकत पर गंभीर सवाल उठाते हैं.

एक तरफ जहाँ कांग्रेस की एक सभा को ‘बड़ी भीड़’ बताकर पेश किया गया, वहीं दूसरी तरफ BJP नेता बालेन्द्र शुक्ला ने  दावा किया कि सभा में मुश्किल से 1500 से 2000 लोग ही मौजूद थे. यह विरोधाभास तब और भी गहरा हो जाता है जब हम उन नेताओं की बात करते हैं जो मंच पर मौजूद थे. कहा जाता है कि रीवा में सुखेंद्र सिंह बन्ना मउगंज और लक्ष्मण तिवारी जैसे दिग्गज नेता हैं, जो अकेले दम पर 10,000 से अधिक लोगों की भीड़ जुटाने का माद्दा रखते हैं. ऐसे में इतनी कम भीड़ का जुटना यह संकेत देता है कि शायद पार्टी अपने ही गढ़ में पकड़ खो रही है.

जब ज्ञापन देने के लिए भी तरसे नेता

इस घटना का सबसे हैरान करने वाला पहलू यह था कि कथित रूप से इतनी बड़ी भीड़ जुटाने का दावा करने वाले कांग्रेस के नेताओं को रीवा के कलेक्टर और कमिश्नर से मिलने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा. अधिकारियों ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया, जिससे नेताओं को खाली हाथ वापस लौटना पड़ा अगर कमिश्नर उस कार्यक्रम में जाकर ज्ञापन लेते और इनकी मागों को पूर्ण करते तो यह नेता सड़को पर चलकर कमिश्नरी में एडिशनल कलेक्टर को ज्ञापन नही देते. यह घटना न केवल पार्टी के मनोबल को तोड़ने वाली है, बल्कि यह भी दिखाती है कि प्रशासन के बीच उनकी पैठ कितनी कमजोर हो चुकी है.

राजनीतिक उठापटक के बीच रीवा की कानून-व्यवस्था और विकास की भी चर्चा हो रही है. इस पर बात करते हुए बालेन्द्र शुक्ला  ने रीवा के पुलिस कप्तान की तारीफ की, जिन्हें वह बेहद ईमानदार मानते हैं और जो कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, उनका यह भी मानना है कि अपराधों के बढ़ने का एक बड़ा कारण बेरोजगारी है. इसके अलावा, क्षेत्र के धार्मिक विकास की भी एक सकारात्मक खबर सामने आई है. पहाड़िया में मां पीतांबरा का एक विशाल मंदिर बनाया जा रहा है, और उम्मीद है कि इसका उद्घाटन इसी नवरात्रि में होगा.

यह घटना दर्शाती है कि जहां एक तरफ रीवा में विकास और कानून-व्यवस्था पर काम हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए कड़े संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है. क्या यह घटना कांग्रेस की आंतरिक कमजोरियों को उजागर करती है, या फिर यह सिर्फ एक छोटी सी असफलता है? आने वाला समय ही इसका जवाब देगा.

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