भोपाल: मध्य प्रदेश में कांग्रेस और गुटबाजी का गहरा नाता हो चला है. दोनों एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं. यह बात चुनाव में होने वाले टिकट वितरण से लेकर जिम्मेदारियां सौंपे जाने तक में नजर आती है. इसका ताजा उदाहरण प्रदेश कार्यकारिणी है. प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाले जीतू पटवारी को लगभग 8 माह हो गए हैं, मगर अब तक कार्यकारिणी का गठन नहीं हो पाया है. राज्य में किसी दौर में कांग्रेस सत्ता में थी, संगठन भी मजबूत हुआ करता था, मगर वर्ष 2003 के बाद ऐसी स्थितियां बनी कि कांग्रेस लगातार कमजोर होती गई.
2023 में करारी हार के बाद बदला था मुखिया
पार्टी विधानसभा के लगातार तीन चुनाव हार गई. लेकिन साल 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अन्य दलों के सहयोग से सत्ता हासिल की. पार्टी को सत्ता जरूर मिल गई, मगर गुटबाजी के रोग ने उसे ज्यादा दिन सत्ता हाथ में नहीं रहने दिया. 15 महीने ही कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ने काम किया. इसी तरह पार्टी को 2023 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर हार मिली और उसके बाद कमलनाथ की प्रदेश अध्यक्ष पद से विदाई हो गई. पार्टी ने दिसंबर 2023 विधानसभा में करारी हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष की कमान जीतू पटवारी को सौंपी.
‘पार्टी की गुटबाजी कार्यकारिणी गठन में बाधक’
नए प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी के सक्रिय नेताओं को जिम्मेदारी का इंतजार है, मगर कांग्रेस का फिर वही गुटबाजी का रोग नई कार्यकारिणी के गठन में बाधक बना हुआ है. मीडिया विभाग के अलावा कुछ नेताओं के पास जिम्मेदारी है, मगर ज्यादातर पद अब भी खाली हैं और दावेदार जोर आजमाइश कर रहे हैं, साथ में जिम्मेदारी का इंतजार भी. पार्टी लगातार सत्ता के खिलाफ आंदोलन, धरना, प्रदर्शन कर रही है, मगर वैसी ताकत दिखाने में असफल है जो पार्टी के नेता और कार्यकर्ता करते हैं.
बिना पद के नेताओं की सक्रियता में कमी
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि राजनीति में कोई भी व्यक्ति अपने रुतबे को बढ़ाने के लिए आता है और यह तभी संभव है जब उसे कोई पद हासिल हो. संबंधित नेता के पास अगर कोई पद नहीं है तो वह न तो सक्रिय रहता है और न ही कार्यकर्ताओं के बीच उसकी पकड़ होती है. इसका असर पार्टी की गतिविधियों पर पड़ता है और राज्य में यही हो रहा है. राजनीति विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस हमेशा से क्षत्रपों की पार्टी रही है. यह बात अलग है कि कई बड़े नेता या तो आज सक्रिय नहीं हैं या पार्टी छोड़ चुके हैं. उसके बावजूद अंदर खाने की खींचतान कम नहीं हो रही है. उसी का नतीजा है कि जीतू पटवारी अपने मनमाफिक टीम नहीं बना पा रहे हैं.