देश की दिल्ली में 2020 में हुए दंगे के मामलों में शरजील इमाम और उमर खालिद बीते पांच सालों से जेल में बंद हैं. कई बार हाईकोर्ट ने उनकी ज़मानत याचिकाएं ख़ारिज की है. आज (मंगलवार) को भी हाईकोर्ट से दोनों को बड़ा झटका लगा है. हाईकोर्ट ने उनकी ज़मानत याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए सख्त टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुसार शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अधिकार सबके पास है, लेकिन इसके नाम पर साज़िशन हिंसा की जाए इसकी इजाज़त नहीं दी जा सकती.
शरजील को दंगे से जुड़े मामलों में 25 अगस्त 2020 को गिरफ्तार किया गया था और तब से ही वो जेल में हैं. उमर ख़ालिद भी 2020 से जेल में बंद हैं, उन्हें 14 सितंबर 2020 को गिरफ्तार किया गया था. फरवरी 2020 में दिल्ली में दंगा भड़की थी और 50 लोगों की जान चली गई थी. इसके साथ ही दर्जनों लोग घायल हुए और करोड़ों रुपये का नुक़सान हुआ था.
2 अगस्त को ज़मानत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत विरोध का अधिकार सबके पास है. लेकिन सीमओं के साथ. लेकिन, अगर किसी को बिना-रोक टोक के प्रदर्शन करने की छूट दी जाए तो यह क़ानून व्यवस्था और संवैधानिक ढांचे को नुक़सान पहुंचा सकता है.
हाईकोर्ट ने कहा कि प्रदर्शन की आड़ में किसी भी तरह की हिंसा अस्वीकार्य है. ऐसे स्थितियों पर राज्य की मशीनरी को नियंत्रण रखना होगा.
शरजील इमाम और उमर खालिद पर अदालत की टिप्पणी
ज़मानत याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि शरजील इमाम और उमर खालिद की भूमिकाओं को हल्के में नहीं लिया जा सकता है. नागरिकता संशोधन क़ानून पास होने के तुरंत बाद इन दोनों ने व्हाट्सएप ग्रुप बनाए, पैम्फलेट बांटे और मुस्लिम बहुल इलाकों में चक्का जाम सहित विरोध की अपील की.
हाईकोर्ट के अनुसार, अभियोजन पक्ष का आरोप है कि दोनों लोगों ने CAA और NRC क़ानून को मुस्लिम विरोधी बताते हुए लोगों को भड़काया.
हाईकोर्ट ने माना कि शरजील और उमर के बयान भड़काऊ और उत्तेजक प्रतीत होते हैं और साज़िश की ओर इशारा करते हैं.
अनुपस्थिति से भूमिका कम नहीं होती
हाईकोर्ट ने कहा कि शरजील और उमर, दंगों से कुछ सप्ताह पहले मौके पर मौजूद नहीं थे. इसका मतलब ये नहीं होता कि उनकी भूमिका इस दंगे में कम हो जाती है. दंगे की साज़िश रचने और घटनाओं की रूपरेखा तैयार करने वाले प्रमुख लोगों में ये लोग शामिल हैं.
ट्रायल में देरी पर कोर्ट की टिप्पणी
दिल्ली हाईकोर्ट में ट्रायल में देरी पर भी टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में सुनवाई स्वाभाविक तौर पर धीरे-धीरे चलती और जल्दबाजी में ट्रायल करना दोनों पक्षों के लिए अच्छा नहीं होगा. फ़िलहाल केस में आरोप तय करने पर बहस जारी है यानि की मुकादमा आगे बढ़ रहा है. इस केस में कई जटिल मुद्दे हैं, इसलिए मुकदमे की प्रगति स्वाभाविक है.