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ईसाई पिता के गांव में दफनाने की अनुमति पर विवाद: SC ने छत्तीसगढ़ HC के रुख पर जताई नाराजगी..

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की ओर से एक ईसाई व्यक्ति की याचिका को खारिज करने पर अपनी नाराजगी जताई, जिसमें उसने अपने पिता के शव को उसके पैतृक गांव में दफनाने की अनुमति मांगी थी. जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने इस बात पर दुख जताया कि मृतक व्यक्ति का शव पिछले 12 दिनों से शवगृह में पड़ा हुआ है, जबकि राज्य के अधिकारियों या हाई कोर्ट की ओर से कोई समाधान नहीं दिया गया है.

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कोर्ट ने कहा कि उसे इस बात से दुख है कि एक व्यक्ति को अपने पिता के शव को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेना पड़ रहा है. इसके अलावा, कोर्ट ने राज्य के प्रतिवादियों से पूछा कि गांव में इस तरह के दफनाने के संबंध में अब तक क्या स्थिति थी. मामले की अगली सुनवाई बुधवार को होगी.

‘7 जनवरी से पड़े शव का क्या हुआ’

देश की सबसे बड़ी अदालत के जज ने यह भी सवाल किया, “इन दशकों में यहां पर क्या स्थिति रही? यह आपत्ति अब ही क्यों उठाई जा रही है?” सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने संबंधित पक्षों से पूछा कि क्या 7 जनवरी से शवगृह में पड़े मृतक के शव से संबंधित दयनीय स्थिति का कोई समाधान हुआ है.

सुप्रीम कोर्ट, छत्तीसगढ़ के एक ईसाई व्यक्ति रमेश बघेल की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपने गांव में अपने परिवार के धार्मिक परंपराओं के तहत अपने मृतक पिता को दफनाने की अनुमति नहीं दी गई थी.

फैसले में HC ने क्या कहा

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि यदि बघेल (याचिकाकर्ता) को अपने मृतक पिता को अपने गांव के सामान्य दफन क्षेत्र (burial area) में दफनाने की अनुमति दी जाती है, तो इससे कानून और व्यवस्था की स्थिति पैदा हो सकती है, क्योंकि ग्रामीणों ने इस पर आपत्ति जताई थी. कोर्ट ने यह भी कहा था कि याचिकाकर्ता के गांव से 20-25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक नजदीकी गांव में ईसाइयों के लिए एक अलग दफन क्षेत्र उपलब्ध है.

फिर जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आया, तो छत्तीसगढ़ की ओर से पेश हुए देश के सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने बताया कि विचाराधीन दफन स्थल हिंदू आदिवासी समुदाय के लिए निर्धारित है, न कि ईसाइयों के लिए. कोर्ट द्वारा यह पूछे जाने पर कि याचिकाकर्ता के पिता को उनकी निजी जमीन पर क्यों नहीं दफनाया जा सकता, जैसा कि याचिकाकर्ताओं ने अनुरोध किया था, इस पर एसजी मेहता ने कहा कि कानून के तहत ऐसा करना प्रतिबंधित है.

SG की दलीलों से SC नाखुश

एसजी मेहता ने आगे कहा, “पूरे देश में शवदाह और दफन के लिए पहले से तय जगह हैं. एक बार जब आप किसी को दफना देते हैं, तो जमीन का चरित्र बदल जाता है. फिर वहां पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं.” हालांकि जस्टिस नागरत्ना एसजी मेहता की दलीलों से खुश नहीं थीं.

जस्टिस ने कहा, “दफन के तीसरे दिन कुछ भी नहीं बचता. लोगों को उनकी भूमि पर दफनाने की अनुमति है.” एसजी मेहता ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता की याचिका का उद्देश्य महज एक व्यक्ति (याचिकाकर्ता) के हितों की रक्षा करना नहीं था. यह किसी और चीज की शुरुआत है.

इसके अलावा, राज्य द्वारा कोर्ट को यह भी बताया गया कि दफन के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र हैं, जो संबंधित गांव से करीब 20 किमी दूर हैं. याचिकाकर्ता के गांव से संबंधित सभी ईसाई अपने अंतिम संस्कार की गतिविधियां उक्त गांव में करते हैं, जो 20 किलोमीटर की दूरी पर है.

दोनों पक्षों के बीच नोकझोंक

दूसरी ओर, याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने एसजी मेहता (राज्य) की दलीलों का विरोध किया और कहा कि राज्य गांव में लंबे समय से चली आ रही धर्मनिरपेक्षता की परंपरा को तोड़ने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने याचिकाकर्ता के परिवार के अन्य मृतक सदस्यों की कब्रों की तस्वीरें कोर्ट के सामने पेश की, जिन्हें संबंधित गांव में स्थित सामान्य दफन क्षेत्र में दफनाया गया था.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कोर्ट को स्पष्ट रूप से बताया कि उन कब्रों पर क्रॉस (ईसाई प्रतीक को दर्शाते हुए) लगे हुए थे. इस मौके पर, एसजी मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता गोंजाल्विस के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई. कोर्ट ने एसजी मेहता के अनुरोध पर मामले की अगली सुनवाई बुधवार को तय कर दी, जब उन्होंने कहा कि वे याचिकाकर्ता की याचिका पर बेहतर जवाब दाखिल करेंगे.

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