सी. मुनियप्पन और अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले पर भरोसा करते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे अभियोजन गवाहों के साक्ष्य को पूरी तरह से नष्ट या रिकॉर्ड से मिटाया हुआ नहीं माना जा सकता है, लेकिन इसे उसी हद तक स्वीकार किया जा सकता है.
Supreme Court ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाह के साक्ष्य को केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि अभियोजन पक्ष ने उसके साथ बयान से मुकरने जैसा व्यवहार (Hostile Treatment) किया और उसका क्रॉस-एग्जामिन किया. हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने आरोपी की सजा को खारिज करने से इनकार कर दिया, क्योंकि अभियोजन पक्ष के गवाह ने जिरह में अभियोजन पक्ष का समर्थन नहीं किया था.
यह देखते हुए कि अभियोजन पक्ष के गवाहों की मुख्य परीक्षा और जिरह के बीच काफी अंतर था, जस्टिस बीआर गवई ने फैसले में संकेत दिया कि गवाहों को अभियुक्तों ने अपने पक्ष में कर लिया था और वे दिए गए हयान से मुकर गए थे, जो पूरी तरह से आरोपी को दोषी ठहराता है.
सी. मुनियप्पन और अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले पर भरोसा करते हुए, अदालत ने कहा कि ऐसे अभियोजन गवाहों के साक्ष्य को पूरी तरह से नष्ट या रिकॉर्ड से मिटाया हुआ नहीं माना जा सकता है, लेकिन इसे उसी हद तक स्वीकार किया जा सकता है.
हालांकि CRPC की धारा 164 के तहत अभियोजन पक्ष के गवाहों और पीड़िता की गवाही की जांच करने के बाद चिकित्सीय साक्ष्य के आधार पर और पीड़िता द्वारा मुख्य परीक्षण में दिए गए बयान की पर्याप्त पुष्टि हुई है.
जब पीड़िता के साथ-साथ अभियोजन पक्ष के गवाहों के साक्ष्य का एफआईआर के साथ परीक्षण किया जाता है, तो धारा 164 CRPC के तहत बयान दर्ज किया जाता है और चिकित्सा विशेषज्ञ (पीडब्लू-8) के साक्ष्य से हम पाते हैं कि अभियोजक द्वारा अपने मुख्य परीक्षण में दिए गए बयान की पर्याप्त पुष्टि है.