सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का 4:1 के बहुमत से फैसला आया है कि अदालतें मध्यस्थता के फैसलों में संशोधन कर सकती है. बहुमत के फैसले में CJI ने कहा कि कोर्ट के पास कुछ परिस्थितियों में मध्यस्थ पुरस्कारों को संशोधित करने की सीमित शक्ति है.
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई, संजय कुमार और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने कहा कि कुछ परिस्थितियों में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के प्रावधानों का उपयोग करके मध्यस्थता पुरस्कारों को संशोधित किया जा सकता है. यह फैसला वाणिज्यिक विवादों में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता पुरस्कारों को प्रभावित करेगा. हालांकि, फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने अदालतों को मध्यस्थता पुरस्कारों को संशोधित करने में “सावधानी” बरतने का आदेश दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निम्न परिस्थितियों में अदालतें मध्यस्थ पुरस्कारों को संशोधित कर सकती है: जब पुरस्कार अलग-अलग हो, किसी भी लिपिकीय, गणना या टाइपोग्राफिकल त्रुटि को ठीक करना हो, कुछ परिस्थितियों में पुरस्कार के बाद ब्याज को संशोधित करना हो, संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत संशोधन बहुत सावधानी से किया जा सकता है.
5 जजों की संविधान पीठ ने सुनाया फैसला
CJI संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया, हालांकि जस्टिस केवी विश्वनाथन ने अपने फैसले में असहमति की राय दी.
उन्होंने कहा कि धारा 34 के तहत न्यायालय तब तक पुरस्कार में संशोधन नहीं कर सकता जब तक कि कानून द्वारा स्पष्ट रूप से अधिकृत न किया जाए, क्योंकि यह योग्यता समीक्षा करने के समान है. धारा 34 की शक्ति का प्रयोग करने वाले न्यायालय मध्यस्थता पुरस्कारों को बदल, परिवर्तित या संशोधित नहीं कर सकते क्योंकि यह मध्यस्थता अभ्यास के मूल और मूल चरित्र पर प्रहार करता है.
जस्टिस विश्वनाथन इस दृष्टिकोण से भी असहमत थे कि संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग पुरस्कारों को संशोधित करने के लिए किया जा सकता है. यदि ऐसी शक्ति को मान्यता दी जाती है, तो इससे मध्यस्थता मुकदमेबाजी में अनिश्चितताएं पैदा होंगी. हालांकि, जस्टिस विश्वनाथन इस बात से सहमत थे कि धारा 34 के तहत लिपिकीय या टाइपोग्राफ़िकल गलतियों को ठीक किया जा सकता है.
19 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा था सुरक्षित
19 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर फैसला सुरक्षित रखा था. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि अदालतों को मध्यस्थता निर्णयों में संशोधन करने का अधिकार है, जबकि केंद्र का कहना था कि इसे विधायिका पर छोड़ दिया जाना चाहिए. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट को आज तय करना था कि क्या अदालतें 1996 के मध्यस्थता और सुलह कानून के तहत मध्यस्थता पुरस्कारों को संशोधित कर सकती हैं?