सूखे और भीषण गर्मी में भी लहलहाएंगी फसलें, टमाटर के पौधों पर हो रही रिसर्च ..

पिछले दो तीन दशकों से मौसम में देखने मिल रहे बदलाव के कारण कृषि क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. खासकर बेमौसम सूखे के हालात और तेज गरमी जैसी परिस्थितियों में खेती किसानी बुरी तरह प्रभावित हो रही है. जिसका सीधा असर अन्नदाता किसान पर पड़ रहा है.क्योंकि हमारी फसलें इन हालातों से मुकाबला नहीं कर पा रही है. खासकर सूखे और भीषण गरमी के हालात में पौधे झुलस कर मर रहे हैं.

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इन हालातों का सामना करने के लिए कृषि और वनस्पति विज्ञान जगत काफी चिंतित है.ऐसे में सागर की डॉ हरीसिंह गौर यूनिवर्सिटी का वनस्पति विज्ञान विभाग में इस बात पर रिसर्च शुरू हुई है कि इन विपरीत परिस्थितियों से लड़ने के लिए एक पौधे को कैसे तैयार किया जाए. ये रिसर्च टमाटर के पौधे पर की जा रही है और मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव को इन पौधों की जड़ों से जोड़कर विपरीत परिस्थितियों से लड़ने और वृद्धि करने की क्षमता विकसित की जा रही है.

वनस्पति विज्ञान की डॉ आरती गुप्ता कर रहीं रिसर्च

दरअसल भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी विभाग ने सागर यूनिवर्सिटी की वनस्पति विज्ञान की असि.प्रोफेसर डॉ आरती गुप्ता को ये जिम्मेदारी सौंपी है.

डॉ आरती गुप्ता बताती हैं कि “नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के जरिए मिले प्रोजेक्ट में हमें 3 साल के भीतर ऐसे सूक्ष्मजीव की खोज करना है जो किसी भी पौधे को अलग-अलग तरह की विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करने के लिए तैयार कर सकें. उनका कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण उच्च तापमान और पानी का संकट बढ़ रहा है. इन हालातों में एक पौधे को कई तरह की विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में कृषि क्षेत्र में उत्पादकता पर विपरीत असर देखने मिलता है. खासकर सूखे के साथ भीषण गरमी के कारण पौधे बुरी तरह झुलसकर नष्ट हो जाते हैं. इन हालातों को लेकर कृषि और वनस्पति विज्ञान के वैज्ञानिक काफी चिंतित हैं.”

टमाटर के पौधों पर हो रही रिसर्च

डॉ आरती गुप्ता बताती हैं कि “हम ये रिसर्च टमाटर के पौधे पर कर रहे हैं. फिलहाल मई-जून की स्थिति में टमाटर के पौधे की की पत्तियां एक तरह से जल जाती हैं. ज्यादा गरमी के कारण फसल का नुकसान हो रहा है. अगर हम इन पौधों में पहले से ही ऐसे बैक्टीरिया पहुंचा दे,जो पौधों को इन दोनों परिस्थितियों से लड़ने में सक्षम बना दें, तो इन हालातों से पौधा आसानी से लड़ सकेगा. इससे किसानों को ये फायदा होगा कि उसकी उत्पादकता में कमी नहीं आएगी. दूसरी तरफ आम जनता के लिए स्वास्थ्य के लिहाज से भी ठीक होगा. क्योंकि इन परिस्थितियों से लड़ने के लिए कैमिकल फर्टिलाइजर की जगह मिट्टी के अंदर पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव का उपयोग करेंगे.जनता को ईकोफ्रेंडली भोजन मिलेगा और किसानों को कम खर्च पर बिना हार्मोन और कैमिकल उपयोग कर अच्छी उत्पादकता मिलेगी. “

पौधों में होती है इन हालातों से लड़ने की क्षमता

डॉ आरती गुप्ता बताती हैं कि “हमारी रिसर्च का आधार बड़ा सामान्य है. हर पौधे की पत्तियों में रंध्र (stomata) पाए जाते हैं. जिनका उपयोग पौधे अपने अंदर और वातावरण से गैस विनिमय के लिए करते हैं. पौधे कार्बन डाइआक्साइड को ग्रहण कर आक्सीजन छोड़ते हैं. ये क्रिया प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) का हिस्सा होती हैं, जो स्टोमेटा के जरिए होती हैं. वहीं अगर वाष्पोत्सर्जन की बात करें, तो इसके जरिए पौधों अपने भीतर का पानी वाष्प के रूप में निकालते हैं.

ये दोंनों क्रियाएं रंध्र (stomata) के जरिए होती हैं. सूखे की स्थिति में पौधे स्टोमेटा बंद कर देते हैं, ताकि पौधे के भीतर पानी का संग्रह रहे. लेकिन भीषण गरमी की स्थिति में पौधे अपने आप को ठंडा रखने के लिए स्टोमेटा (stomata) खोल देते हैं और पौधों के भीतर का पानी वाष्प के रूप में स्टोमेटा (stomata) से बाहर आ जाता है. इन 2 क्रियाओं के जरिए पौधे सूखा और भीषण गरमी से मुकाबला करते हैं.

जब सूखा और भीषण गर्मी साथ हो

डॉ आरती गुप्ता बताती हैं कि “प्रकाश संश्लेषण और वाष्पोत्सर्जन के जरिए पौधे दोनों परिस्थितियों से अलग-अलग तरह से संघर्ष करते हैं. लेकिन पिछले दो तीन दशक से ग्लोबल वार्मिंग के कारण सूखे और भीषण गरमी की परिस्थितियां एक साथ सामने आई है. ऐसे में प्लांट एक साथ इन परिस्थितियों का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं. ऐसी स्थिति में कृषि वैज्ञानिक परेशान हैं कि इन हालातों से कैसे निपटा जाए. हम इसी तरीके पर रिसर्च कर रहे हैं कि अगर पौधे को मजबूत बना दें और उसकी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा दें, तो पौधा इन विपरीत परिस्थितियों से लड़ने में सक्षम होगा.

पौधों के अंदर ये क्षमता मिट्टी के अंदर के पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव के जरिए बढ़ायी जा सकती है. क्योंकि मिट्टी के अंदर कुछ ऐसे बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो पौधों को पोषण प्रदान करने के साथ-साथ उनकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और एक साथ सामने आई अलग-अलग तरह की विपरीत परिस्थितियों से लड़ने में मददगार होते हैं.”

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