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CRPF ने अपने ही सहायक कमांडेंट को मुख्य स्तंभ मानने से किया इनकार, ग्राउंड कमांडरों में नाराजगी

केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ने दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल किए गए एक जवाब में अपने सहायक कमांडेंट्स (ग्राउंड कमांडरों) को फोर्स का मुख्य स्तंभ मानने से इनकार कर दिया है. फोर्स ने कैडर अफसरों की भूमिका को एक सुपरवाइजरी पद माना और कहा कि सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर तक के पांच रैंक को ही बल की रीढ़ और मुख्य स्तंभ माना जाता है. सीआरपीएफ का कहना है कि कैडर अफसरों का कार्य इन रैंकों की निगरानी करना होता है, जबकि ग्राउंड अफसर किसी भी ऑपरेशन का नेतृत्व करते हैं.

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इस जवाब ने उन सहायक कमांडेंट्स को झटका लगा है, जो 15 साल से एक ही पद पर कार्यरत हैं और जिन्होंने अब तक पहला प्रमोशन यानी डिप्टी कमांडेंट का पद भी नहीं प्राप्त किया है. कई कैडर अफसरों ने इस मामले को लेकर अदालतों का रुख किया है, लेकिन उन्हें अभी तक कोई ठोस समाधान नहीं मिला है. सीआरपीएफ के कैडर अफसरों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन, नक्सलवाद से लड़ाई, मणिपुर में उग्रवादियों के खिलाफ संघर्ष और अन्य सुरक्षा अभियानों में ग्राउंड कमांडरों की बड़ी भूमिका होती है. वे केवल सुपरवाइज नहीं करते, बल्कि अग्रिम मोर्चे पर अपने जवानों का नेतृत्व भी करते हैं. इसके बावजूद बल ने उन्हें मुख्य स्तंभ मानने से इनकार कर दिया है.

दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की याचिका

इस मामले में प्रजीत सिंह (2009 बैच के सहायक कमांडेंट) और अन्य कैडर अफसरों ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. उनकी दलील थी कि सीआरपीएफ के कैडर अफसरों को भी अन्य सीएपीएफ बलों की तरह समान पदोन्नति और आर्थिक फायदे मिलें. उनका कहना था कि जैसी अन्य फोर्स के अफसरों को समय पर प्रमोशन मिलती है, उसी प्रकार उन्हें भी प्रमोशन का मौका मिलना चाहिए. इसके लिए उन्होंने नए पदों के बनाने की मांग की थी, जिससे प्रमोशन की प्रक्रिया समयस पर और पारदर्शी तरीके से हो सके.

सीआरपीएफ ने अपने जवाब में क्या कहा

हालांकि, सीआरपीएफ ने अपने जवाब में कहा है कि हर फोर्स की कार्यप्रणाली अलग होती है और इसलिए सभी फोर्स में पदोन्नति के अवसर भी अलग तरह से होते हैं. विभाग ने यह भी कहा कि कैडर अफसरों का पदोन्नति वैकेंसी बेस्ड होता है, जबकि अन्य कर्मचारियों की पदोन्नति में कई नियम होते हैं. विभाग ने यह भी दावा किया कि कैडर अफसरों को चार साल की सेवा के बाद सीनियर टाइम स्केल मिल चुका है और इस मामले में अन्य कैडर अफसरों के लिए स्थिति अलग नहीं है.

कैडर अफसरों ने इस विभागीय जवाब को गैर-जिम्मेदाराना और अव्यावसायिक बताया है. उनका कहना है कि वे जमीनी स्तर पर बल का नेतृत्व करते हैं और उनकी भूमिका को कमतर आंका गया है. उनका तर्क है कि किसी भी ऑपरेशन को ग्राउंड कमांडर ही लीड करते हैं और उनकी जिम्मेदारी को समझा जाए. सीआरपीएफ का यह कदम ग्राउंड कमांडरों के मनोबल को कमजोर करने वाला साबित हो सकता है, क्योंकि यह उनके संघर्ष, बलिदान और सेवा को नकारता है.

लंबे समय से चल रही है ये मांग

सीआरपीएफ के कैडर अफसरों की पदोन्नति की समस्या लंबे समय से चल रही है. कई कैडर अफसरों ने अदालतों का रुख किया है, लेकिन अब तक किसी ठोस समाधान तक नहीं पहुंचा जा सका है. यदि समय पर पदोन्नति की प्रक्रिया नहीं सुधारी जाती, तो यह सीआरपीएफ के भीतर असंतोष को और बढ़ा सकता है. अब यह देखना होगा कि क्या विभाग और सरकार इस समस्या का समाधान निकालते हैं और कैडर अफसरों को उनके उचित अधिकार मिलते हैं या नहीं.

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