उत्तराखंड इन दिनों मौसम के डबल अटैक की चपेट में है. एक तरफ जहां मानसून ने प्रदेश में तबाही मचाई हुई है. वहीं, दूसरी तरफ तेजी से पिघलते ग्लेशियर सरकार और लोगों के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं. ग्लेशियर पिघलने से कई झीलें खतरनाक रूप से बढ़ रही है. जिससे इनके फटना का खतरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. इस पर एक रिसर्च रिपोर्ट भी सामने आई है, जिसने सभी की चिंता ओर भी बढ़ा दिया है.
उत्तराखंड में मानसूनी प्रकोप लगातार जारी है. प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में लगातार बारिश हो रही है. जिसके चलते कई इलाकों से लैंडलाइड की भी घटनाएं सामने आई हैं. मौसम विभाग ने गुरुवार को देहरादून, टिहरी, बागेश्वर और चंपावत में बारिश का येलो अलर्ट जारी किया है. बीते कई दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश से कई नदियां और नाले उफान पर हैं. सरकार लगातार लोगों से नदी-नालों से दूर रहकर सावधानी बरतने के लिए कह रही है.
तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर
बारिश के साथ-साथ अब तेजी पिघलते ग्लेशियर भी चिंता का सबब बनते जा रहे हैं. देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ मनीष मेहता और उनके छात्र संतोष पेंट और पंकज कुमार ने बीते दिनों हिमालय के ऊंचे क्षेत्र में प्राकृतिक खतरों पर आधारित एक रिसर्च की थी, जिसमें काफी हैरान करने वाली बातें सामने आई हैं. रिसर्च में सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन तेजी से ग्लेशियर और बर्फ पिघल रही है.
25 झीलें खतरनाक स्तर पर
इससे कई ग्लेशियर झीलों का निर्माण हो रहा है. साथ ही पुरानी झीलें का आकार भी बढ़ रहा है. इस समय उत्तराखंड में मौजूद लगभग 1266 ग्लेशियर झीलों की निगरानी वैज्ञानिकों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. वैज्ञानिकों ने 426 ग्लेशियर झीलों की अध्ययन किया है, जो कि 1000 मीटर के दायरे में है. इनमें से 25 झीलों को बेहद खतरनाक माना गाया है. भविष्य में इनके टूटने और फूटने की खतरनाक स्थिति बनी हुई है. जिससे आसपास के इलाके में बाढ़ जैसी आपदा आ सकती है.
बाढ़ का खतरा बढ़ा
सबसे ज्यादा खतरनाक झीलों की बात करें तो यह अलकनंदा घाटी में मौजूद है. यहां करीब 226 झीलें, जिसमें कई खतरनाक स्थिति में हैं. वहीं, सबसे कम संख्या में झीलें पिंडर घाटी में पाई गईं, जहां कोई खतरनाक झील नहीं मिली है. 25 झीलों का खतरनाक इसलिए माना जा रहा है क्योंकि ये ग्लेशियर के बेहद नजदीक है. इसी के चलते इनका आकार तेजी से बढ़ रहा है. इन झीलों से फटने से बाढ़ जैसी भयंकर स्थिति पैदा हो सकती है, जिससे निचले इलाके में भारी तबाही मच सकती है.