दोस्त की अंतिम इच्छा पर अर्थी के आगे किया डांस:बोला– उसने कहा था मेरी शव यात्रा में नाचते हुए चलना; चार साल पुरानी चिट्‌ठी दिखाई

मित्रता की ऐसी मिसाल शायद ही कहीं देखने को मिले, जहां एक दोस्त ने अपने मित्र की अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उसकी शव यात्रा में डांस किया हो। मंदसौर जिले के जवासिया गांव में सोहनलाल जैन और अंबालाल प्रजापत की दोस्ती की यह अनूठी कहानी आज चर्चाओं में है।

पंद्रह साल पहले एक छोटी सी चाय की दुकान पर शुरू हुई यह दोस्ती, धीरे-धीरे कृष्ण-सुदामा की मित्रता में बदल गई। सत्संग और भक्ति में डूबी इस जोड़ी ने साबित कर दिया कि सच्ची मित्रता न केवल जीवन में बल्कि मृत्यु के बाद भी निभाई जा सकती है।

साल 2021 में सोहनलाल ने एक पत्र लिखकर अपने दोस्त अंबालाल से एक वादा मांगा था कि उनकी मृत्यु के बाद कोई रोना-धोना नहीं, बल्कि ढोल-नगाड़ों के साथ डांस करते हुए उन्हें अंतिम विदाई दी जाए। कैंसर से जूझ रहे सोहनलाल को मौत का डर नहीं था, उन्हें बस अपने दोस्त से यह वादा चाहिए था।

जब वह दिन आया तो अंबालाल ने दुनिया की परवाह किए बिना, अपने मित्र की अंतिम इच्छा पूरी की। लोगों ने रोका, लेकिन वह नहीं रुके। क्योंकि यह सिर्फ एक वादा नहीं था, यह था सच्ची मित्रता का प्रतीक, जो आज के समय में एक अनमोल संदेश देता है।

 मंदसौर जिले के गांव जवासिया स्थित अंबालाल के घर पहुंची और सोहनलाल के साथ दोस्ती के किस्सों को जाना।

सोहनलाल ने मौत के 4 साल पहले लिखा था दोस्त को पत्र

जवासिया गांव में 30 जुलाई को 71 वर्षीय सोहनलाल जैन की अंतिम यात्रा निकाली गई, जिनका एक दिन पहले कैंसर से निधन हो गया था। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार सुबह गांव की गलियों में बैंड-बाजे के साथ उनके मित्र अंबालाल प्रजापत ने अर्थी के आगे नाचकर उन्हें विदा किया।

सोहनलाल जैन ने 9 जनवरी 2021 को अपने दोस्त अंबालाल प्रजापत को एक पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कहा था, “जब मैं इस दुनिया में न रहूं, तब मेरी अंतिम यात्रा में शामिल होकर मेरी अर्थी के आगे नाचते हुए मुझे विदा करना। रोना-धोना मत करना, सब कुछ खुशी-खुशी होना चाहिए।” यह खत उनके कैंसर के पता चलने के कुछ दिन बाद लिखा गया था।

अपने पत्र में जैन ने लिखा था, ‘मुझसे जाने-अनजाने में गलती हुई हो तो क्षमा करना।’ इस पत्र में उन्होंने अपने मित्र को आखिरी बार ‘राम-राम’ भी कहा था। यह घटना दोस्ती की एक मिसाल बनकर सामने आई है, जहां एक मित्र ने अपने दिवंगत दोस्त की इच्छा को पूरी श्रद्धा से निभाया।

20 साल पहले चाय से शुरू हुई सोहनलाल-अंबालाल की दोस्ती

अंबालाल ने बताया कि सोहनलाल जैन करीब 20 साल पहले सिहोर गांव से जवासिया आए थे और यहां दुकान खोली थी। उस समय से वे रोज उन्हें घर की चाय पिलाते थे। इसी से दोस्ती की शुरुआत हुई।

आगे यह रिश्ता इतना गहरा हो गया कि वे दिन में 2-3 बार मिलते थे और रोज बातें करते थे। अंबालाल और सोहनलाल की यह दोस्ती सत्संग और आध्यात्मिक चर्चाओं से शुरू हुई। धीरे-धीरे प्रभात फेरी में साथ चलने लगे, और यूं दोनों की मित्रता गहरी होती गई।

सोहनलाल, जो उम्र में बड़े थे, अंबालाल के लिए मित्र से बढ़कर गुरु बन गए। वही थे जिन्होंने अंबालाल को भगवान के मार्ग पर चलना सिखाया। दोनों के बीच कभी कोई मतभेद नहीं हुआ। जब भी सत्संग की बातें होतीं, दोनों की आंखें नम हो जातीं।

अंबालाल ने कहा, कृष्ण-सुदामा जैसी मित्रता, तस्वीर की जरूरत नहीं

2021 में कैंसर से जूझ रहे सोहनलाल ने एक पत्र लिखा। उस पत्र में उन्होंने लिखा था कि जब वे दुनिया छोड़कर जाएं, तो अंबालाल उनकी विदाई बैंड-बाजे और नृत्य के साथ करें। सोहनलाल का मानना था कि मृत्यु से डरना नहीं चाहिए, क्योंकि यह तो एक दिन आनी ही है।

जिस दिन सोहनलाल की मृत्यु हुई, उस सुबह दोनों ने साथ में चाय पी थी। अंबालाल के लिए यह क्षण बेहद भावुक था, लेकिन उन्होंने अपने मित्र की अंतिम इच्छा का सम्मान किया। लोगों ने रोका, लेकिन अंबालाल ने अपने मित्र की शव यात्रा के आगे नृत्य किया।

दोनों के पास कोई साथ की तस्वीर नहीं थी, क्योंकि जैसा कि अंबालाल कहते हैं – उनके बीच कृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता थी। तस्वीरों की जरूरत ही नहीं पड़ी, क्योंकि वे एक-दूसरे के दिलों में बसे थे। आज भी अंबालाल सत्संग से जुड़े हैं, अपने मित्र और गुरु की याद में।

अंबालाल ने कहा- लेटर पढ़कर आंखों से आंसू आ गए थे अंबालाल ने बताया कि सोहनलाल लेटर लिखने के बाद उनकी पत्नी को दे गए थे, जब वह घर पहुंचे तो पत्नी ने उन्हें लेटर थमाया। जैसे ही मैंने वह लेटर पड़ा तो आंखों से आंसू बहने लगे थे।

इसके बाद अंबालाल की पत्नी ने सोहनलाल के घर जाकर उनसे कहा कि- आपने ऐसा क्या लिखा है, जो अंबालाल रो रहे हैं। इसके बाद सोहनलाल घर आए और बोले क्यों रो रहा है, इसमें तो यह लिखा है कि मैं दुनिया छोड़ कर जाऊं तो बैंड बाजे और डांस के साथ मेरी विदाई करना।

अंबालाल के मुताबिक जिस दिन सोहनलाल की मौत हुई उस दिन सुबह खेत पर जाने से पहले दोनों की मुलाकात हुई थी। दोनों ने साथ में चाय पी और बातचीत की। जब सोहनलाल की मौत की खबर मिली उन्हें रोना तो आया, लेकिन मन को ठोस बनाए रखा। सोहनलाल की मौत होना दुखद बात थी, लेकिन उन्होंने कहा था तो मुझे डांस करना ही था, चाहे लोग अच्छा कहें या बुरा।

अंबालाल ने बताया कि सोहनलाल अक्सर कहा करते थे कि लोग कुछ भी कहें लेकिन तू मेरी शव यात्रा के आगे डांस करना। आसपास के रहवासियों और सोहनलाल के रिश्तेदारों ने भी उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं रुके और शव यात्रा के आगे डांस करते रहे।

राकेश बोला- पिताजी को दोस्त के जाने का गहरा गम है

अंबालाल के पुत्र राकेश ने बताया कि दोनों शुरू से साथ रहते थे, पास की दुकान में उनकी बैठक थी। सोहनलाल द्वारा अंबालाल को लिखे पत्र का कभी घर में जिक्र नहीं हुआ, जिस दिन मृत्यु हुई उस दिन हमें इसके बारे में सोशल मीडिया के माध्यम से पता चला। डांस से पहले भी पिता जी ने इस संबंध में कोई बात घर में नहीं की।

राकेश ने बताया कि फिलहाल पिताजी की दैनिक दिनचर्या तो वही है, लेकिन उन्हें दोस्त के जाने का गहरा गम है। पिताजी, सोहनलाल को गुरु मानते थे। गांव या आसपास कहीं कथा का प्रोग्राम होता तो दोनों साथ ही जाते थे। दोस्त के जाने के बाद पिताजी अब मायूस रहते हैं।

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