मऊगंज : जिले के खटखरी गांव से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है.एक नाबालिग छात्रा ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. वजह — मां द्वारा मोबाइल छीन लेना.लेकिन इस निजी पारिवारिक दर्द को एक प्रशासनिक त्रासदी में तब्दील कर दिया वहां की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था ने.
परिजनों का दावा है कि झगड़े के कुछ देर बाद छात्रा ने खुद को पेड़ से लटका लिया.आनन-फानन में उसे मऊगंज जिला अस्पताल लाया गया. यहां पहुंचने तक उसकी सांसें चल रही थीं, लेकिन अस्पताल में उस वक्त कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था.इमरजेंसी में डॉक्टर न होना किसी भी मरीज के लिए मौत का फरमान बन सकता है — और इस छात्रा के लिए वही हुआ.
हालात यहीं नहीं रुके.छात्रा के शव का पोस्टमार्टम 24 घंटे तक टलता रहा.वजह? जिला अस्पताल में महिला डॉक्टर मौजूद नहीं थी.मजबूरी में रीवा से डॉक्टर को बुलाना पड़ा, तब जाकर अगले दिन पोस्टमार्टम हो सका.एक जिले की राजधानी बने मऊगंज में यह हाल किसी शर्म से कम नहीं.
शर्मनाक स्थिति तब और गहराई जब शव ले जाने के लिए शव वाहन तक नहीं मिला. परिजनों का आरोप है कि शव वाहन चालक ने डीजल के पैसे मांगे.मजबूर होकर उन्होंने बेटी के शव को एक लोडर वाहन में रखकर अंतिम संस्कार के लिए रवाना किया.यह दृश्य उन तमाम सरकारी नारों पर सवाल खड़ा करता है जो ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का ढिंढोरा पीटते हैं.
सवाल बड़ा है — क्या सिर्फ जिला बना देने से जिम्मेदारियां खत्म हो जाती हैं?
जब मऊगंज को जिला बनाया गया, तो लोगों में उम्मीद जगी थी कि अब सुविधाएं मिलेंगी, व्यवस्था सुधरेगी.लेकिन इस घटना ने साबित कर दिया कि सिर्फ नक्शे में नाम बदलने से विकास नहीं होता, उसके लिए ज़मीन पर काम करना पड़ता है.