दिल्ली हाईकोर्ट ने जासूसी के एक मामले में आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि देश में शांति है, क्योंकि सशस्त्र बल सतर्क रहते हैं. जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने मोहसिन खान को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर भारतीय सेना से संबंधित संवेदनशील जानकारी पाकिस्तान उच्चायोग को भेजने का आरोप है. मोहसिन खान पर आरोप है कि वह एक गुप्त वित्तीय माध्यम के रूप में काम कर रहा था, जो धन की गुप्त आवाजाही की सुविधा देता था, ताकि उनके स्रोत को छुपाया जा सके और पाकिस्तान उच्चायोग के अधिकारियों को संवेदनशील जानकारी भेजने में मदद की जा सके.
कोर्ट ने कहा कि यह देखते हुए कि विचाराधीन अपराध में पूरे देश और भारतीयों की सुरक्षा शामिल है, और आवेदक एक सिंडिकेट का हिस्सा था, जो देश की सुरक्षा के खिलाफ काम कर रहा था, यह कोर्ट आवेदक को जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला नहीं मानता है.
संवेदनशील जानकारी पाकिस्तान भेजने का आरोप
कोर्ट ने कहा कि जासूसी के कथित कृत्यों और विदेशी एजेंसियों को संवेदनशील जानकारी भेजने वाले मामलों में जमानत देने की सीमा अनिवार्य रूप से उच्चतर और कोर्ट को न्याय और देश की सुरक्षा के व्यापक हित को ध्यान में रखकर होना चाहिए, न कि केवल हिरासत में समय बीतने से हो. सुनवाई के द्वारा अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि साक्ष्य प्रथम दृष्टया मोहसिन खान की भारतीय सेना से संबंधित संवेदनशील जानकारी को पाकिस्तान हाई कमीशन तक पहुंचाने की साजिश के अभिन्न अंग और वित्तीय लेनदेन को सुविधाजनक बनाने में केंद्रीय भागीदारी की पुष्टि करते हैं.
भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के खिलाफ अपराध
कोर्ट ने कहा कि यह अपराध केवल किसी व्यक्ति, संस्था या समूह के खिलाफ नहीं था, बल्कि यह भारत की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के विरुद्ध अपराध था. कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि ऐसे कृत्य, जिनमें भारतीय सशस्त्र बलों से संबंधित संवेदनशील और क्लासिफाइड जानकारी कथित रूप से विदेशी संचालकों को भेजी जाती है, राष्ट्रीय सुरक्षा के मूल में आघात करते हैं और इनके साथ नरमी नहीं बरती जा सकती.
कोर्ट ने कहा कि ये पारंपरिक अपराध नहीं हैं – ये ऐसे अपराध हैं जो उन व्यक्तियों पर भरोसा खो देते हैं, जो हमारे सैन्य प्रतिष्ठानों का हिस्सा हैं या उन तक उनकी पहुंच है. यह याद रखना चाहिए कि देश शांति से रहता है क्योंकि इसके सशस्त्र बल सतर्क रहते हैं. यह उनके बिना शर्त कर्तव्य और प्रतिबद्धता में है कि नागरिकों को संवैधानिक व्यवस्था की सुरक्षा और निरंतरता का आश्वासन मिलता है.
भरोसे को तोड़ने की कोशिश
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने निष्कर्ष निकाला कि जब व्यक्ति, वित्तीय प्रलोभन या अन्यथा से प्रेरित होकर, विदेशी एजेंसियों के जरिए से इस भरोसे को तोड़ने की कोशिश करते हैं, तो यह न केवल गंभीर अपराध है, बल्कि राष्ट्र के साथ विश्वासघात भी है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे अपराधों के परिणाम बहुत दूरगामी होते हैं, वे अनगिनत लोगों के जीवन को खतरे में डालते हैं, सैन्य तैयारियों से समझौता करते हैं, और राज्य की संप्रभुता को खतरा पहुंचाते हैं, इसलिए, जमानत देने की शर्तों पर किसी भी तरह से कसौटी पर खरे नहीं उतरते.
राष्ट्रीय हित की बड़ी चिंता
हालांकि सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने तर्क दिया है कि इसे गंभीर नहीं कहा जा सकता, न ही यह हत्या या डकैती है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले में न्यायिक प्रतिक्रिया केवल हिरासत में समय बीतने या प्रक्रियात्मक देरी से निर्देशित नहीं हो सकती, बल्कि राष्ट्रीय हित की बड़ी चिंता से प्रेरित होनी चाहिए.