Delhi High Court News: वैवाहिक रिश्तों पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. हाई कोर्ट ने कहा कि सिर्फ औरतें ही मानसिक पीड़ा या शारीरिक क्रूरता झेलती हैं, ऐसा जरूरी नहीं है. कई बार वैवाहिक रिश्तों में पुरूषों को भी पीड़ा झेलनी पड़ती है. इसलिए पुरूषों को भी महिलाओं के समान कानून के तहत सुरक्षा पाने का पूरा अधिकार है.
दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने 22 जनवरी को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा, ”शादी के रिश्ते में जिस तरह महिलाओं को हिंसा और क्रूरता से सुरक्षा मिलती है, वैसे ही पुरुषों का भी अधिकार है कि उन्हें महिलाओं की ही तरह समान सुरक्षा मिले.”
जस्टिस शर्मा ने एक महिला की अग्रिम जमानत याचिका पर फैसला सुनाते हुए ये टिप्पणी की. दरअसल महिला के ऊपर आरोप है कि उसने अपने पति के ऊपर मिर्ची पाउडर मिला हुआ उबलता पानी फेंक कर उसे जला दिया था.
सुनवाई के दौरान महिला ने अदालत से उसके प्रति नरम रुख अपनाने को कहा था और ये तर्क दिया था कि वो एक महिला है. इसपर अदालत ने कहा कि ये तर्क एक जेंडर बायस पर आधारित है. दिल्ली हाई कोर्ट ने ये भी कहा है कि किसी जेंडर का सशक्तिकरण और उसकी सुरक्षा किसी दूसरे जेंडर के प्रति निष्पक्षता की कीमत पर नहीं हो सकती.
‘जिंदगी और सम्मान समान रूप से कीमती है’
जस्टिस शर्मा ने अपने ऑर्डर में कहा, ”यदि कोई महिला ऐसी चोट पहुंचाती है, जिससे किसी की जिंदगी को खतरा पैदा हो तो उसके लिए कोई विशेष वर्ग नहीं बनाया जा सकता है. जिंदगी के लिए खतरा पैदा करने वाली शारीरिक चोटों से जुड़े अपराधों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए, भले ही अपराधी मर्द हो या औरत, क्योंकि हर इंसान की जिंदगी और सम्मान, चाहे वह किसी भी जेंडर का हो, एक समान रूप से कीमती है.’
महिला के ऊपर आरोप है कि उसने बीते 1 जनवरी को अपने सोते हुए पति के ऊपर कथित तौर पर मिर्ची मिला हुआ उबलता हुआ पानी डाल दिया थ. इससे उसके पति की छाती आंखों और गर्दन पर गंभीर चोटें आईं. इसके बाद आरोपी महिला ने गंभीर रूप से घायल अपने पति को उसके ही कमरे में बाहर से बंद कर दिया और मौके से फरार गई.
जब ये घटना हुई तो उस वक्त उसकी तीन महीने की बेटी भी उसी कमरे में मौजूद थी, लेकिन उसने बेटी को भी उसी कमरे में ही छोड़ दिया. महिला के ऊपर ये भी आरोप है कि भागते समय उसने अपने पति का मोबाइल फोन भी अपने साथ ले लिया था, ताकि वह किसी से कॉन्टैक्ट न कर सके.
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान आरोपी महिला की तरफ से ये भी दलील रखी गई कि उसे अग्रिम जमानत दी जाए, क्योंकि उसे अपनी तीन महीने की बच्ची की देखभाल करनी है.
आरोपी महिला की दलील को किया खारिज
हाई कोर्ट ने कहा कि आरोपी महिला ने घटना के बाद तीन महीने की बच्ची को बुरी तरह से जल चुके पति के पास छोड़ दिया था और दोनों को कमरे में बंद कर दिया था और पति का फोन भी लेकर मौके से भाग गई थी, इसलिए अदालत ने आरोपी महिला की इस दलील को भी खारिज कर दिया था.
हालांकि महिला की तरफ से सुनवाई के दौरान ये दलील रखी गई थी कि उसका पति उसे कई दिनों से परेशान कर रहा था और उनके बीच झगड़ा तब हुआ था जब उसका पति कुछ दूसरी लड़कियों से बात कर रहा था. हालांकि अदालत ने महिला की इस दलील को खारिज कर दिया था.
हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां एक महिला किसी पुरुष को इतनी गंभीर चोट पहुंचाती है और अपराध की गंभीरता के बावजूद, यदि महिला को केवल उसके जेंडर के आधार पर नरमी दिया जाए तो ये इंजस्टिस होगा.
दिल्ली हाई कोर्ट ने वैवाहिक रिश्तों में पुरुषों द्वारा सहे जाने वाली कठिनाइयों के बारे में कहा कि वैवाहिक जीवन में पत्नियों की ओर से हिंसा का शिकार होने वाले पुरुषों को भी एक अजीब सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. जिसमें उन्हें समाज के सामने शादी के रिश्ते में पीड़ित के रूप में देखे जाने से जुड़ा कलंक शामिल है. ऐसी रूढ़िवादिता एक ऐसी गलत धारणा को बढ़ावा देती है कि पुरुषों को घरेलू रिश्तों में हिंसा का सामना नहीं करना पड़ सकता है.